हिन्दू पंचांग

दिनांक गणना हेतु कैलेंडर
(हिन्दू कालदर्शक से अनुप्रेषित)

हिन्दू पञ्चाङ्ग से आशय उन सभी प्रकार के पञ्चाङ्गों से है जो परम्परागत रूप प्राचीन काल से भारत में प्रयुक्त होते आ रहे हैं। पंचांग शब्द का अर्थ है , पाँच अंगो वाला। पंचांग में समय गणना के पाँच अंग हैं : वार , तिथि , नक्षत्र , योग , और करण। [1]

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हिन्दू मापन प्रणाली

ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना के एक समान सिद्धांतों और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं।

भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख पञ्चाङ्ग ये हैं-

  • (१) विक्रमी पञ्चाङ्ग - यह सर्वाधिक प्रसिद्ध पञ्चाङ्ग है जो भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में प्रचलित है।
  • (२) तमिल पञ्चाङ्ग - दक्षिण भारत में प्रचलित है,
  • (३) बंगाली पञ्चाङ्ग - बंगाल तथा कुछ अन्य पूर्वी भागों में प्रचलित है।
  • (४) मलयालम पञ्चाङ्ग - यह केरल में प्रचलित है और सौर पंचाग है।

हिन्दू पञ्चाङ्ग का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से होता आ रहा है और आज भी भारत और नेपाल सहित कम्बोडिया, लाओस, थाईलैण्ड, बर्मा, श्री लंका आदि में भी प्रयुक्त होता है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार ही हिन्दुओं/बौद्धों/जैनों/सिखों के त्यौहार होली, गणेश चतुर्थी, सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि, वैशाखी, रक्षा बन्धन, पोंगल, ओणम ,रथ यात्रा, नवरात्रि, लक्ष्मी पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी, दुर्गा पूजा, रामनवमी, विसु और दीपावली आदि मनाए जाते हैं।

भारतीय पंचांग प्रणाली में एक प्राकृतिक सौर दिन को दिवस कहा जाता है। सप्ताह में सात दिन होते हैं और उनको वार कहा जाता है। दिनों के नाम सूर्य , चन्द्र , और पांच प्रमुख ग्रहों पर आधारित हैं , जैसे नाम यूरोप में भी प्रचलित हैं। [1]


विभिन्न भारतीय भाषाओं में दिनों के नाम
क्रम संस्कृत नाम[2][3] हिंदी
(तद्भव, अर्धतत्सम और दूसरी बोलियाँ)
खगोलीय पिंड/ग्रह अंग्रेज़ी/लैटिन नाम
यवन देव/देवी
असमिया बांग्ला भोजपुरी गुजरती कन्नडा कश्मीरी कोंकणी मलयालम मराठी नेपाली उड़िया पंजाबी सिंधी तमिळ तेलगु
1 रविवार

आदित्य वार

रविवार
(इतवार, ऐंतवार, ऐंत, एतवार)
सूर्य Sunday/dies Solis रोबिबार
দেওবাৰ/ৰবিবাৰ
रोबिबार
রবিবার
एतवार
𑂉𑂞𑂫𑂰𑂩
રવિવાર भानुवार
ಭಾನುವಾರ
आथवार

𑆄𑆡𑆮𑆳𑆫

आयतार नजयार
ഞായർ
रविवार आइतवार रबिबार
ରବିବାର
एतवार
ਐਤਵਾਰ
आचारु آچَرُ या आर्तवारु آرتوارُ‎ न्यायिरु
ஞாயிறு
आदिवारम
ఆదివారం


2 सोमवार सोमवार
(सुम्मार)
चन्द्र Monday/dies Lunae शुमबार
সোমবাৰ
शोमबार
সোমবার
सोमार
𑂮𑂷𑂧𑂰𑂩
સોમવાર सोमवारा
ಸೋಮವಾರ
चंदरीवार
𑆖𑆁𑆢𑆫𑆵𑆮𑆳𑆫
सोमार थिंकल
തിങ്കൾ
सोमवार सोमवार सोमबारा
ସୋମବାର
सोमवार
ਸੋਮਵਾਰ
सुमारु

سُومَرُ

थिंगल
திங்கள்
सोमवारम
సోమవారం
3 मङ्गलवार या
भौम वार
मंगलवार
(मंगल )
मंगल Tuesday/dies Martis मोंगोलबार
মঙলবাৰ/মঙ্গলবাৰ
मोंगोलबार মঙ্গলবার मङर
𑂧𑂑𑂩
મંગળવાર मंगलवार
ಮಂಗಳವಾರ
बोमवार

𑆧𑆾𑆩𑆮𑆳𑆫

अथवा

बोवार 𑆧𑆾𑆮𑆳𑆫

मंगळार चोव्वा
ചൊവ്വ
मंगळवार मङ्गलवार मंगलबार
ମଙ୍ଗଳବାର
मंगलवार
ਮੰਗਲਵਾਰ
मँगालु

مَنگلُ

या अंगारो

اَنڱارو

चेव्वाई
செவ்வாய்
मंगलवारम
మంగళవారం
4 बुधवार या
सौम्य वार
बुधवार
(बुध)
बुध Wednesday/dies Mercurii बुधबार
বুধবাৰ
बुधबार
বুধবার
बुध
𑂥𑂳𑂡
બુધવાર बुधवार
ಬುಧವಾರ
बुधवार

𑆧𑆶𑆣𑆮𑆳𑆫

बुधवार बुधान
ബുധൻ
बुधवार बुधवार बुधबार
ବୁଧବାର
बुधवार
ਬੁੱਧਵਾਰ
बुधारू

ٻُڌَرُ

या

अरबा اَربع

बुधन
புதன்
बुधवारम
బుధవారం
5 गुरुवार
बृहस्पतिवार
गुरुवार


बृहस्पतिवार
(बृहस्पत, बिरस्पत, बिस्पत, बीफय, बिफैया)

बृहस्पति/गुरु Thursday/dies Jupiter बृहोस्पतिवार
বৃহস্পতিবাৰ
बृहोस्पतिवार
বৃহস্পতিবার
बियफे/बिफे
𑂥𑂱𑂨𑂤𑂵/𑂥𑂱𑂤𑂵
ગુરુવાર गुरुवार
ಗುರುವಾರ
बृहस्वार

𑆧𑆸𑆲𑆱𑇀𑆮𑆳𑆫

भीरेस्तार व्याझम
വ്യാഴം
गुरुवार बिहीवार गुरुबार
ଗୁରୁବାର
वीरवार
ਵੀਰਵਾਰ
विस्पति

وِسپَتِ‎

या ख़मीसा خَميِسَ‎

वियाझन
வியாழன்
बृहस्पतिवारम
గురువారం, బృహస్పతివారం, లక్ష్మీవారం
6 शुक्रवार शुक्रवार
(सुक्कर)
शुक्र Friday/dies Veneris शुक्रबार
শুকুৰবাৰ/শুক্রবাৰ
शुक्रबार
শুক্রবার
सूक
𑂮𑂴𑂍
શુક્રવાર शुक्रवारा
ಶುಕ್ರವಾರ
शोकुरवार

𑆯𑆾𑆑𑆶𑆫𑆮𑆳𑆫

शुक्रार वेल्ली
വെള്ളി
शुक्रवार शुक्रवार ଶୁକ୍ରବାର सुक्करवार
ਸ਼ੁੱਕਰਵਾਰ
सुकरु

شُڪرُ

या

जुमो

جُمعو

वेल्ली
வெள்ளி
शुक्रवारम
శుక్రవారం
7 शनिवार/

शनिश्चरवार/स्थावर

शनिवार
शनिश्चरवार

(शनिचर, सनीचर) थावर

शनि Saturday/dies Saturnis शोनिबार
শনিবাৰ
शोनिबार
শনিবার
सनिच्चर
𑂮𑂢𑂱𑂒𑂹𑂒
શનિવાર सनिवार
ಶನಿವಾರ
बतिवार

𑆧𑆠𑆴𑆮𑆳𑆫

शेनवार शनि
ശനി
शनिवार शनिवार सनीबार
ଶନିବାର
सनिवार
ਸ਼ਨੀਵਾਰ

या
सनिच्चरवार
ਸ਼ਨਿੱਚਰਵਾਰ या
सनिवार
ਸਨੀਵਾਰ

चनचरु

ڇَنڇَرُ‎

या शनचरु


شَنسچَرُ

शनि
சனி
शनिवारम
శనివారం

शनिवार के लिए थावर राजस्थानी और हरयाणवी में प्रचलित है। थावर को स्थावर का तद्भव माना जाता है। रविवार के लिए आदित्यवार के तद्भव आइत्तवार ,इत्तवार,इतवार अतवार , एतवार इत्यादि प्रचलित हैं।

काल गणना - घटि, पल, विपल

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हिन्दू समय गणना में समय की अलग अलग माप इस प्रकार हैं। एक सूर्यादय से दूसरे सूर्योदय तक का समय दिवस है , एक दिवस में एक दिन और एक रात होते हैं। दिवस से आरम्भ करके समय को साठ साठ के भागों में विभाजित करके उनके नाम रखे गए हैं ।

१ दिवस = ६० घटी (६० घटि २४ घंटे के बराबर है या १ घटी = २४ मिनट , घटि को देशज भाषा में घडी भी कहा जाता है )

१ घटी = ६० पल (६० पल २४ मिनट के बराबर है या १ पल = २४ सेकेण्ड)

१ पल = ६० विपल (६० विपल २४ सेकेण्ड के बराबर है , १ विपल = ०.४ सेकेण्ड)

१ विपल = ६० प्रतिविपल [1]

इसके अतिरिक्त

१ पल = ६ प्राण ( १ प्राण = ४ सेकेण्ड )


इस प्रकार एक दिवस में ३६०० पल होते हैं। एक दिवस में जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है तो उसके कारण सूर्य विपरीत दिशा में घूमता प्रतीत होता है। ३६०० पलों में सूर्य एक चक्कर पूरा करता है , इस प्रकार ३६०० पलों में ३६० अंश। १० पल में सूर्य का जितना कोण बदलता है उसे १ अंश कहते है।

तिथि, पक्ष और माह

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हिन्दू पंचांगों में मास, माह व महीना चन्द्रमा के अनुसार होता है। अलग अलग दिन पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा के भिन्न भिन्न रूप दिखाई देते हैं। जिस दिन चन्द्रमा पूरा दिखाई देता है उसे पूर्णिमा कहते हैं। पूर्णिमा के उपरांत चन्द्रमा घटने लगता है और अमावस्या तक घटता रहता है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता और फिर धीरे धीरे बढ़ने लगता है और लगभग चौदह व पन्द्रह दिनों में बढ़कर पूरा हो जाता है। इस प्रकार चन्द्रमा के चक्र के दो भाग है। एक भाग में चन्द्रमा पूर्णिमा के उपरांत अमावस्या तक घटता है , इस भाग को कृष्ण पक्ष कहते हैं। इस पक्ष में रात के आरम्भ मे चाँदनी नहीं होती है। अमावस्या के उपरांत चन्द्रमा बढ़ने लगता है। अमावस्या से पूर्णिमा तक के समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं। पक्ष को साधारण भाषा में पखवाड़ा भी कहा जाता है। चन्द्रमा का यह चक्र जो लगभग २९.५ दिनों का है चंद्रमास व चन्द्रमा का महीना कहलाता है । दूसरे शब्दों में एक पूर्ण चन्द्रमा वाली स्थिति से अगली पूर्ण चन्द्रमा वाली स्थिति में २९.५ का अन्तर होता है।[1]

चंद्रमास २९.५ दिवस का है , ये समय तीस दिवस से कुछ ही घटकर है। इस समय के तीसवें भाग को तिथि कहते हैं। इस प्रकार एक तिथि एक दिन से कुछ मिनट घटकर होती है। पूर्ण चन्द्रमा की स्थिति (जिसमे स्थिति में चन्द्रमा सम्पूर्ण दिखाई देता हो ) आते ही पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाती है और कृष्ण पक्ष की पहली तिथि आरम्भ हो जाती है। दोनों पक्षों में तिथियाँ एक से चौदह तक बढ़ती हैं और पक्ष की अंतिम तिथि अर्थात पंद्रहवी तिथि पूर्णिमा व अमावस्या होती है।

तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।

माह के अंत के दो प्रचलन है। कुछ स्थानों पर पूर्णिमा से माह का अंत करते हैं और कुछ स्थानों पर अमावस्या से। पूर्णिमा से अंत होने वाले माह पूर्णिमांत कहलाते हैं और अमावस्या से अंत होने वाले माह अमावस्यांत कहलाते हैं। अधिकांश स्थानों पर पूर्णिमांत माह का ही प्रचलन है। चन्द्रमा के पूर्ण होने की सटीक स्थिति सामान्य दिन के बीच में भी हो सकती है और इस प्रकार अगली तिथि का आरम्भ दिन के बीच से ही सकता है। [1]

तारामंडल में चन्द्रमा के पथ को २७ भागों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक भाग को नक्षत्र कहा गया है। दूसरे शब्दों में चन्द्रमा के पथ पर तारामंडल का १३ अंश २०' का एक भाग नक्षत्र है। [1] हर भाग को उसके तारों को जोड़कर बनाई गई एक काल्पनिक आकृति के नाम से जाना जाता है।

# नाम स्वामी ग्रह पाश्चात्य नाम मानचित्र स्थिति
1 अश्विनी (Ashvinī) केतु β and γ Arietis   00AR00-13AR20
2 भरणी (Bharanī) शुक्र (Venus) 35, 39, and 41 Arietis   13AR20-26AR40
3 कृत्तिका (Krittikā) रवि (Sun) Pleiades   26AR40-10TA00
4 रोहिणी (Rohinī) चन्द्र (Moon) Aldebaran   10TA00-23TA20
5 मॄगशिरा (Mrigashīrsha) मंगल (Mars) λ, φ Orionis   23TA40-06GE40
6 आद्रा (Ārdrā) राहु Betelgeuse   06GE40-20GE00
7 पुनर्वसु (Punarvasu) बृहस्पति(Jupiter) Castor and Pollux   20GE00-03CA20
8 पुष्य (Pushya) शनि (Saturn) γ, δ and θ Cancri   03CA20-16CA40
9 अश्लेशा (Āshleshā) बुध (Mercury) δ, ε, η, ρ, and σ Hydrae   16CA40-30CA500
10 मघा (Maghā) केतु Regulus   00LE00-13LE20
11 पूर्वाफाल्गुनी (Pūrva Phalgunī) शुक्र (Venus) δ and θ Leonis   13LE20-26LE40
12 उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalgunī) रवि Denebola   26LE40-10VI00
13 हस्त (Hasta) चन्द्र α, β, γ, δ and ε Corvi   10VI00-23VI20
14 चित्रा (Chitrā) मंगल Spica   23VI20-06LI40
15 स्वाती(Svātī) राहु Arcturus   06LI40-20LI00
16 विशाखा (Vishākhā) बृहस्पति α, β, γ and ι Librae   20LI00-03SC20
17 अनुराधा (Anurādhā) शनि β, δ and π Scorpionis   03SC20-16SC40
18 ज्येष्ठा (Jyeshtha) बुध α, σ, and τ Scorpionis   16SC40-30SC00
19 मूल (Mūla) केतु ε, ζ, η, θ, ι, κ, λ, μ and ν Scorpionis   00SG00-13SG20
20 पूर्वाषाढा (Pūrva Ashādhā) शुक्र δ and ε Sagittarii   13SG20-26SG40
21 उत्तराषाढा (Uttara Ashādhā) रवि ζ and σ Sagittarii   26SG40-10CP00
22 श्रवण (Shravana) चन्द्र α, β and γ Aquilae   10CP00-23CP20
23 श्रविष्ठा (Shravishthā) or धनिष्ठा मंगल α to δ Delphinus   23CP20-06AQ40
2 4शतभिषा (Shatabhishaj) राहु γ Aquarii   06AQ40-20AQ00
25 पूर्वभाद्र्पद (Pūrva Bhādrapadā) बृहस्पति α and β Pegasi   20AQ00-03PI20
26 उत्तरभाद्रपदा (Uttara Bhādrapadā) शनि γ Pegasi and α Andromedae   03PI20-16PI40
27 रेवती (Revatī) बुध ζ Piscium   16PI40-30PI00

योग और करण

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चन्द्रमा और सूर्य दोनों मिलकर जितने समय में एक नक्षत्र के बराबर दूरी (कोण) तय करते हैं उसे योग कहते हैं, क्योंकि ये चन्द्रमा और सूर्य की दूरी का योग है । ज्योतिष में ग्रहों की विशेष स्थितियों को भी योग कहा जाता है वह एक भिन्न विषय है। एक तिथि का आधा समय करण है।

चन्द्रमास और ग्रहण

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सूर्य और चंद्र ग्रहण का सम्बन्ध सूर्य और चन्द्रमा की पृथ्वी के सापेक्ष स्थितियों से है। सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या को ही आरम्भ होते है और चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा को ही आरम्भ होते हैं। एक पूर्ण सूर्य ग्रहण की सहायता से अमावस्या तिथि के अंत को समझना सरल है। पूर्ण सूर्य ग्रहण का आरम्भ अमावस्या तिथि में होता है , जब सूर्य ग्रहण पूर्ण होता है तब अमावस्या तिथि का अंत होता है और उसके बाद अगली तिथि आरम्भ हो जाती है जिसमे सूर्य ग्रहण समाप्त हो जाता है। दो सूर्य ग्रहणों या दो चंद्र ग्रहणों के बीच का समय एक या छह चंद्रमास हो सकता हैं। ग्रहणों के समय का अध्ययन चंद्रमासों में करना सरल है क्योकि ग्रहणों के बीच की अवधि को चंद्रमासों में पूरा पूरा विभाजित किया जा सकता है

महीनों के नाम

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इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्रायः रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है। [4][5]


महीने (संस्कृत) महीने (हिन्दी) महीने (भोजपुरी) महीने (बंगाली) महीने (असमिया) पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा का नक्षत्र[6]
चैत्र चैत 𑂒𑂶𑂞

चैत

চৈত্র
चोइत्रो
চ’ত
सौत
चित्रा, स्वाति
वैशाख बैसाख 𑂥𑂶𑂮𑂰𑂎

बैसाख

জ্যৈষ্ঠ
बोइशाख
ব’হাগ
বৈশাখ
विशाखा, अनुराधा
ज्येष्ठ जेठ 𑂔𑂵𑂘

जेठ

জ্যৈষ্ঠ
जोईष्ठो
জেঠ
जेठ
ज्येष्ठा, मूल
आषाढ असाढ़ 𑂄𑂮𑂰𑂜

आसाढ़

আষাঢ়
आषाढ़
আহাৰ
आहार
पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़
श्रावण सावन 𑂮𑂰𑂫𑂢

सावन

শ্রাবণ
सार्बोन
শাওণ
शाऊन
श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा
भाद्रपद, भाद्र भादों 𑂦𑂰𑂠𑂷

भादो

ভাদ্র
भाद्रो
ভাদ
भादौ
पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र
आश्विन, अश्वयुज आसिन, असोज, क्वार 𑂄𑂮𑂱𑂢/𑂍𑂳𑂄𑂩

आसिन/कुआर

আশ্বিন
आश्विन
আহিন
अहिन
रेवती, अश्विनी, भरणी
कार्तिक कातिक 𑂍𑂰𑂞𑂱𑂍

कातिक

কার্তিক
कार्तिक
কাতি
काति
कृतिका, रोहिणी
मार्गशीर्ष, अग्रहायण मँगसिर, अगहन 𑂃𑂏𑂯𑂢

अगहन

অগ্রহায়ণ
ओग्रोह्योन
আঘোণ
अगहन
मृगशिरा, आर्द्रा
पौष पूस 𑂣𑂴𑂮

पूस

পৌষ
पौष
পোহ
पूह
पुनवर्सु, पुष्य
माघ माघ 𑂧𑂰𑂐

माघ

মাঘ
माघ
মাঘ
माघ
अश्लेषा, मघा
फाल्गुन फागुन 𑂤𑂰𑂏𑂳𑂢

फागुन

ফাল্গুন
फाल्गुन
ফাগুন
फागुन
पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त
 
इण्डोनेशिया के शिलालेखों पर शक संवत् का वर्णन मिलता है। [7][8]

आमतौर पर प्रचलित भारतीय वर्ष गणना प्रणालियों में प्रत्येक को सम्वत कहा जाता है। हिन्दू , बौद्ध , और जैन परम्पराओं में कई सम्वत प्रचलित हैं जिसमे विक्रमी सम्वत , शक संवत् , प्राचीन शक संवत् प्रसिद्ध हैं। [9]

हिन्दी वार्तालाप में गैर भारतीय प्रणालियों के लिए भी संवत् शब्द का प्रयोग हो सकता है । हर संवत् में वर्तमान वर्ष का अंक ये बताता है कि सम्वत शुरू हुए कितने वर्ष हुए हैं । जैसे विश्व भर में प्रचलित ईस्वी संवत् का ये 2024 वर्ष है। हिन्दू त्यौहार हिन्दू पंचाग के अनुसार होते हैं। हिन्दू पंचांगों में की संवत् प्रचलित हैं , जिनमे हिंदी भाषी क्षेत्रों में विक्रम संवत् प्रचलित है। विक्रम संवत् का आरम्भ मार्च या अप्रेल में होता है। इस वर्ष लगभग मार्च/अप्रैल 2024 से फरवरी/मार्च 2025 तक विक्रमी सम्वत 2081 है। [10]

संवत् या तो कार्तिक कृष्ण पक्ष से आरम्भ होते हैं या चैत्र कृष्ण पक्ष से। कार्तिक से आरम्भ होने वाले संवत् को कर्तक संवत् कहते हैं। संवत् में अमावस्या को अंत होने वाले माह (अमावस्यांत माह ) या पूर्णिमा को अंत होने वाले माह (पूर्णिमांत) माह कहा जाता है। किसी संवत् में पूर्णिमांत माह का प्रयोग होता है और किसी में अमावस्यांत का। भारत के अलग अलग स्थानों पर एक ही नाम की संवत् परम्परा में पूर्णिमांत या अमावस्यांत माह का प्रयोग हो सकता है। विक्रम संवत् का आरम्भ चैत्र माह के कृष्ण पक्ष से होता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष दिवाली से आरम्भ होता है , इस दिन से वर्ष का आरंभ होने वाले संवत् को विक्रम संवत् (कर्तक ) कहा जाता है।

संवत् के अनुसार एक वर्ष की अवधि को भी संवत् कहा जा सकता है , जैसे:- संवत् १६८० में तुलसीदास जी की मृत्यु हुई।

इन्हे भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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हिंदू 'पंचांग' की अवधारणा


  1. Robert Swell and Sankar Dikshit (1896). Indian Calendar (PDF). Swan Sonechhin. अभिगमन तिथि 30 अक्टूबर 2021.
  2. Muriel Marion Underhill (1991). The Hindu Religious Year. Asian Educational Services. पपृ॰ 24–25. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-206-0523-7.
  3. Roshen Dalal (2010). Hinduism: An Alphabetical Guide. Penguin Books. पृ॰ 89. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-14-341421-6.
  4. Nachum Dershowitz; Edward M. Reingold (2008). Calendrical Calculations. Cambridge University Press. पपृ॰ 123–133, 275–311. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-88540-9.
  5. B. Richmond (1956). Time Measurement and Calendar Construction. Brill Archive. पपृ॰ 80–82. अभिगमन तिथि 2011-09-18.
  6. Underhill. "Hindu Religious Year" (PDF).
  7. Colette Caillat; J. G. de Casparis (1991). Middle Indo-Aryan and Jaina Studies. BRILL. पृ॰ 36. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 90-04-09426-1.
  8. Andrea Acri (2016). Esoteric Buddhism in Mediaeval Maritime Asia: Networks of Masters, Texts, Icons. ISEAS-Yusof Ishak Institute. पपृ॰ 256–258. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-981-4695-08-4.
  9. Richard Salomon (1998). Indian Epigraphy: A Guide to the Study of Inscriptions in Sanskrit, Prakrit, and the other Indo-Aryan Languages. Oxford University Press. पपृ॰ 181–183. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-535666-3.
  10. drikpanchang. "माह पंचाग में संवत्".