विकासशील देश
विकासशील देश (developing country) शब्द का प्रयोग किसी ऐसे देश के लिए किया जाता है जिसके भौतिक सुखों का स्तर निम्न होता है (इस शब्द को लेकर 'तीसरी दुनिया के देशों' के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए)। चूंकि विकसित देश नामक शब्द की कोई भी एक परिभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है, अतः विकास के स्तर इन तथाकथित विकासशील देशों में व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। कुछ विकासशील देशों में, औसत रहन-सहन का मानक भी उच्च होता है।[1][2]
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ऐसे देश जिनकी अर्थव्यवस्था अन्य विकासशील देशों के मुकाबले उन्नत होती है, परन्तु जिन्होंने अभी तक विकसित देश के संकेत नहीं दिए होते हैं, उन्हें नवीन औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में रखा जाता है।[3][4][5][6]
परिभाषा
संपादित करेंसंयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने विकसित देश की निम्न परिभाषा दी है। "एक विकसित देश वह होता है जो अपने सभी नागरिकों को सुरक्षित पर्यावरण में स्वतंत्र और स्वस्थ्य जीवन का आनंद लेने का अवसर देता है।"[7] परन्तु संयुक्त राष्ट्र के सांख्यिकी प्रभाग के अनुसार,
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में "विकसित" और "विकाशील" देशों अथवा क्षेत्रों की उपाधि के लिए स्थापित संविद नहीं है।[2]
और यह इस तथ्य पर ध्यान देता है कि
- उपाधियाँ जैसे "विकसित" और "विकासशील" मात्र सांख्यिकीय सुविधा के लिए बनाई जाती हैं और आवश्यक रूप से किसी देश अथवा क्षेत्र के विकास की प्रक्रिया में किसी विशेष स्थिति पर पहुंचने के निर्णय को नहीं बताती है।[8]
संयुक्त राष्ट्र इस तथ्य पर भी ध्यान देता है कि:
- आम व्यवहार में एशिया में जापान, उत्तरी अमेरिका में कनाडा और संयुक्त राष्ट्र, ओशेनिका में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड और यूरोप को विकसित क्षेत्र माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के आंकड़ों में, दक्षिणी अफ्रीकी सीमा शुल्क संघ को भी विकसित क्षेत्र माना जाता है और इसराइल को विकसित देश माना जाता है, पूर्व यूगोस्लाविया में से बने हुए देशों को विकासशील देशों की श्रेणी में रखा जाता है; और पूर्वी यूरोप के देश और यूरोप में स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (कोड 172) को विकसित अथवा विकासशील देशों के अंतर्गत नहीं गिना जाता है।[2]
21वी सदी में, चार मौलिक एशियन टाइगर्स[9] क्षेत्र (हांगकांग[9][10], सिंगापुर[9][10], दक्षिण कोरिया[9][10][11][12] और ताइवान,) और साइप्रस, माल्टा और स्लोवेनिया को "विकसित देश" माना जाता है।
दूसरी तरफ, अप्रैल 2004 से पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा दिए गए वर्गीकरण के अनुसार, पूर्वी यूरोप के सभी देश (जिसमें केन्द्रीय यूरोपियन देश शामिल हैं और जो अभी भी संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं में "पूर्वी यूरोप समूह" में गिने जाते है) और मध्य एशिया में पूर्व सोवियत संघ (यूएसएसआर) के देश (कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान तुर्कमेनिस्तान) और मंगोलिया, को विकसित अथवा विकासशील देशों में शामिल नहीं किया गया था, बल्कि उन्हें नाम दिया गया था "अवस्थांतर में देश", परन्तु अब व्यापक रूप से उन्हें (अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में) "विकासशील देशों" में गिना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक लचीली वर्गीकरण प्रणाली का प्रयोग करता है जो तीन कारकों पर गौर करती है "(1) प्रति व्यक्ति आय स्तर, (2) निर्यात विविधीकरण,- अतः जिन तेल निर्यातक देशों का सकल घरेलू उत्पाद उच्च है वे उन्नत वर्गीकरण के अंतर्गत नहीं आएंगे क्योंकि उनके निर्यात का लगभग 70% तेल होता है और (3) वैश्विक वित्तीय स्थिति में एकीकरण की दशा.[13]
विश्व बैंक देशों को चार आय समूहों में वर्गीकृत करता है। ये प्रति वर्ष 1 जुलाई को निर्धारित किये जाते हैं। निम्नलिखित आय की श्रेणियों का उपयोग करते हुए 2008 जीएनआई प्रति व्यक्ति के अनुसार अर्थव्यवस्थाओं को विभाजित किया गया था:[14]
- निम्न आय वाले देशों की प्रति व्यक्ति जीएनआई 975 अमेरिकी डॉलर या उससे कम थी।
- निम्न मध्य आय वाले देशों की प्रति व्यक्ति जीएनआई 976 अमेरिकी डॉलर और 3,855 अमेरिकी डॉलर के बीच थी।
- उच्च मध्यम आय वाले देशों की प्रति व्यक्ति जीएनआई 3,856 अमेरिकी डॉलर और 11,905 अमेरिकी डॉलर के बीच थी।
- उच्च आय वाले देशों की प्रति व्यक्ति जीएनआई 11,906 अमेरिकी डॉलर से अधिक थी।
विश्व बैंक सभी निम्न और माध्यम आय वाले देशों को विकासशील देशों की श्रेणी में रखता है परन्तु साथ ही स्वीकार करता है कि, "इस शब्द का प्रयोग सुविधा के लिए किया जा रहा है, हमारा आशय यह नहीं है की इस समूह की सभी अर्थव्यवस्थाएं एक सामान विकास की प्रक्रिया से गुजर रही हैं अथवा अन्य अर्थव्यवस्थाएं विकास की पसंदीदा अथवा अंतिम अवथा पर पहुँच गयीं हैं। आय द्वारा वर्गीकरण आवश्यक रूप से विकास की स्थिति को नहीं दर्शाता है।"[14]
विकासशील देशों में इसकेउद्देश्य एवं सीमाओं की विवेचना कीजिए
संपादित करेंएक देश के विकास को सांख्यिकीय सूचकांक जैसे प्रति व्यक्ति आय (जीडीपी), जीवन प्रत्याशा, साक्षरता दर, इत्यादि द्वारा मापा जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने एचडीआई विकसित किया है, जो कि ऊपर बताये गए सांख्यिकी का एक यौगिक सूचकांक है, जिसका प्रयोग उन देशों में मानव स्तर का विकास नापने के लिए किया जाता है जहां पर आंकड़े उपलब्ध हैं।
सामान्य तौर पर विकासशील देश वे देश होते हैं जिन्होंने अपनी जनसंख्या के सापेक्ष औद्योगीकरण के स्तर को प्राप्त नही किया होता है और जिनमें, अधिकतर, जीवन स्तर निम्न से मध्यम वर्गीय होता है। निम्न आय और उच्च जनसंख्या वृद्धि के बीच एक मजबूत सहसंबंध होता है।
विकासशील देशों के विषय में चर्चा करते समय जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे उनका प्रयोग करने वालों का आशय और विचारों की ओर भी इशारा करते हैं। अन्य शब्द जिनका कभी कभी उपयोग किया जाता है वे हैं कम विकसित देश (एलडीसी), आर्थिक रूप से सबसे कम विकसित देश (एलईडीसी), "अपर्याप्त रूप से विकसित देश" अथवा तीसरी दुनिया के देश और "गैर औद्योगिक देश". इसके विपरीत, इस विस्तृत श्रेणी के अंत में जो देश आते हैं उन्हें विकसित देश, सबसे ज्यादा आर्थिक रूप से विकसित देश (एमईडीसी), प्रथम विश्व के देश और "औद्योगिक देश" कहा जाता है।
विकासशील शब्द के व्यंजनापूर्ण पहलू को कम करने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने आर्थिक रूप से कम विकसित देश (एलईडीसी) नामक शब्द का प्रयोग उन सर्वाधिक गरीब देशों के लिए करना प्रारम्भ कर दिया है जिन्हें किसी भी अर्थ में विकासशील नहीं कह सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है की, एलईडीसी, एलडीसी का सबसे गरीब उपसमूह है।
विकासशील राष्ट्र की अवधारणा, किसी एक नाम से या अन्य नाम से, विविध प्रकार की सैधांतिक प्रणालियों में पाई जाती है - उदाहरण के लिए, उपनिवेशों को स्वतंत्र कराने के सिद्धांतों में, मुक्ति धर्मशास्त्र में, मार्क्सवाद में, साम्राज्यवाद विरोध में और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में.
विकासशील राष्ट्र की अवधारणा, किसी एक नाम से या अन्य नाम से, विविध प्रकार की सैधांतिक प्रणालियों में पाई जाती है - उदाहरण के लिए, उपनिवेशों को स्वतंत्र कराने के सिद्धांतों में, मुक्ति धर्मशास्त्र में, मार्क्सवाद में, साम्राज्यवाद विरोध में और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में.
'विकासशील देश', शब्द के प्रयोग की आलोचना भी होती है। इस शब्द के प्रयोग में एक "विकसित देश" के मुकाबले में एक 'विकासशील देश' की हीनता अन्तर्निहित है, जिसे कई देश पसंद नहीं करते हैं। इसमें आर्थिक विकास के परम्परागत पश्चिमी मॉडल को अपनाने की इच्छा छिपी है जिसे कुछ देशों, जैसे की क्यूबा ने, अपनाने से इनकार कर दिया है।
'विकासशील' शब्द में गतिशीलता का भाव छिपा हुआ है और यह इस तथ्य को नहीं स्वीकारता है कि विकास में गिरावट हो रही हो या वह स्थिर हो गया हो, विशेषकर की उन दक्षिणी अफ्रीकी देशों में जो एचआईवी / एड्स से बुरी तरह से प्रभावित हैं। ऐसी स्थितियों में विकासशील देश जैसा शब्द, व्यंजनापूर्ण लग सकता है। इस शब्द में इन देशों के लिए समरूपता अन्तर्निहित है, जो की व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। इस शब्द में इन देशों के लिए समरूपता का भाव छिपा हुआ है जबकी बहुत अमीरों और बहुत गरीबों के धन और (स्वास्थ्य) के स्तर में बहुत अंतर हो सकता है।[उद्धरण चाहिए]
सामान्य तौर पर, विकास के अंतर्गत एक आधुनिक संरचना आती है जो (दोनों, भौतिक और संस्थागत), होती है और जो कम मूल्य वाले क्षेत्रों जैसे कृषि और प्राकृतिक संसाधन निष्कर्षण जैसे क्षेत्रों से हट कर होती है। विकसित देशों में, तुलनात्मक रूप से, आमतौर पर आर्थिक प्रणाली सतत और आत्मनिर्भर तृतीयक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और अर्थव्यवस्था के चतुर्धातुक क्षेत्र और उच्च स्तर के भौतिक मानकों पर आधारित होती है। हालांकि, कई अपवाद उल्लेखनीय हैं, जैसा की कुछ देशों की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान था, उदाहरण के लिए, नॉर्वे, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इत्यादि. अमरीका और पश्चिमी यूरोप में कृषि एक बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है और ये दोनों देश अंतरराष्ट्रीय कृषि बाजार में प्रमुख खिलाड़ी हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक संसाधन निष्कर्षण एक बहुत ही लाभदायक (उच्च मूल्य) उद्योग होता है जैसे की तेल निष्कर्षण।
अविकसित देशों की विशेषताएँ
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों की मुख्य विशेषताओं को निम्नांकित लक्षणों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है जो इन देशों के विकास में बाधा का कार्य करते हैं:
विषम चक्र
संपादित करेंविकास अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अर्द्धविकसित देश ऐसे विषम चक्रों में घिरे रहते हैं जो इन देशों में विकास हेतु बाधा उत्पन्न करते हैं ।
इन चक्रों को निम्न प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है:
- निम्न आय निम्न बचतें → निम्न पूँजी निर्माण → निम्न उत्पादकता → निम्न आय,
- निम्न आय → बाजार का लघु आकार → विनियोग की प्रेरणा का अभाव → वृद्धि की न्यूनता → निम्न आय,
- निम्न आय → निम्न उपभोग → निम्न स्वास्थ्य स्तर → निम्न उत्पादकता → निम्न आय,
- निम्न आय → सरकार का कम आगम → शिक्षा एवं सामाजिक सेवाओं पर कम व्यय → निम्न उत्पादकता → निम्न आय ।
उपर्युक्त वर्णित कुछ विषम चक्रों में विभिन्न चर आपस में इस प्रकार अर्न्तक्रिया करते हैं कि अर्थव्यवस्था पिछड़े स्तर पर ही बनी रहती है इसे निम्न स्तर संतुलन पाश के द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है ।
कृषि पर निर्भरता एवं अनुत्पादक कृषि
संपादित करेंमेयर एवं बाल्डविन के अनुसार- अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था मुख्यतः प्राथमिक अर्थव्यवस्था या कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था होती है अर्थात् आर्थिक व उत्पादक क्रियाओं में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । इन देशों में जनसंख्या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग कृषि क्षेत्र पर निर्भर है । कृषि जीवन निर्वाह का साधन मात्र है । कृषि पर निर्भरता का कारण यह है कि अर्थव्यवस्था के द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्र पूँजी, तकनीक, साहसवृति व उपक्रम प्रवृति के अभाव के कारण अविकसित ही बने रहते हैं ।
कृषि में कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत उच्च होने के बावजूद कुल राष्ट्रीय आय में इसका योगदान अल्प ही बना रहता है । अर्द्धविकसित देशों में कृषि क्षेत्र में उत्पादकता वृद्धि से संबंधित सुधारों का लाभ भी वस्तुत: बड़े व समृद्ध किसान या कुलक वर्ग ही उठा पाता है, क्योंकि वह आवश्यक आदाओं; जैसे- खाद, बीज, सिंचाई सुविधा, साख व विपणन सुविधाओं को अपनी सामर्थ्यानुसार जुटाने में सफल होते हैं । निर्धन कृषक इन सुविधाओं से सचित ही रहते हैं । यह भी देखा गया है कि कृषि जोतों के निर्माण विकास एवं सुधार में ही अधिकांश राष्ट्रीय साधन गतिशील कर दिये जाते हैं ।
धीमी एवं असंतुलित औद्योगिक वृद्धि
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों में औद्योगिक क्षेत्र में धीमी व असंतुलित वृद्धि होती है। इसका कारण है पूँजी, साहसवृति व नवप्रवर्तन योग्यता का अभाव, बेहतर व कारगर तकनीक का प्रयोग सम्भव न होना, औद्योगिक सुरक्षा का अभाव, प्रबंधकों व श्रमिक वर्ग के मध्य अच्छे संबंध विद्यमान न होना । इसके साथ ही औद्योगिक नेतृत्व की कमी होती है ।
अर्द्धविकसित देशों के निवासी आधुनिक क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक नहीं रहते, कारण यह है कि वह एक बंधे बंधाए जीवन के आदी होते हैं, उनकी इच्छाएँ सीमित होते हैं वह गाँव से बाहर जाकर जोखिम नहीं लेना चाहते । इसके साथ ही वह उद्योग की गतिविधियों से अपरिचित व अप्रशिक्षित होते हैं । विकास की आरंभिक अवस्थाओं में औद्योगिक क्षेत्र में जाने के प्रति ग्रामीण जन उत्सुक नहीं होते ।
निम्न श्रम उत्पादकता
संपादित करेंनिम्न श्रम उत्पादकता अर्द्धविकास का लक्षण एवं कारक है। अर्द्धविकसित देशों में कृषि व गैर कृषि क्षेत्र में श्रम उत्पादकता का स्तर अल्प होता है। इन देशों में जनसंख्या की वृद्धि के साथ भूमि पर दबाव बढ़ता चला जाता है। यद्यपि इसे सुधरी तकनीक, खादों के बेहतर प्रयोग, सिंचाई की बेहतर सुविधाओं के द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
श्रम उत्पादकता के न्यून होने का मुख्य कारण श्रमिकों का जीवन-स्तर निम्न होना है, इससे उन्हें समुचित पोषण नहीं प्राप्त होता उनके आवास, स्वास्थ्य, साफ-सफाई की दशा हीन होती है । कार्य करने की प्रेरणाओं के अभाव कुशलता निर्माण के सीमित अवसर, पूँजी की न्यूनता व संस्थागत प्रबंधों की दुर्बल दशा से अल्प उत्पादन की प्रवृतियाँ दिखायी देती है ।
पूँजी निर्माण की निम्न दरें
संपादित करेंप्रो. रागनर नर्क्से ने 'प्रॉबुलेम्स ऑफ कैपितल फॉर्मेशन इन अन्डरदेवेलप्ड कन्ट्रीज' (अल्पविकसित देशों में पूंजी-निर्माण की समस्या) में लिखा है कि एक अर्द्धविकसित देश वह है जहाँ जनसंख्या व प्राकृतिक संसाधनों के सापेक्ष पूँजी की कमी विद्यमान होती है। इनके अनुसार, अर्द्धविकास एवं धीमा औद्योगीकरण किसी सीमा तक पूँजी के अभाव से संबंधित है फिर भी पूंजी विकास के लिए आवश्यक लेकिन समर्थ दशा नहीं होती।
डा. आस्कर लांगे के अनुसार अर्द्धविकसित देशों में पूँजीगत वस्तुओं का स्टाक कुल उपलब्ध श्रम शकित को उत्पादन की आधुनिक तकनीक के आधार पर रोजगार प्रदान करने में समर्थ नहीं होता । स्पष्ट है कि इन देशों के विकास की मुख्य बाधा विनियोग हेतु बचतों की न्यूनता है।
अर्द्धविकसित देशों में उत्पादक क्रियाओं में विनियोग करने की प्रवृति न्यून होती है । नर्क्से के अनुसार इन देशों में उच्च वर्ग के द्वारा भी स्वर्ण, विलासिता व वास्तविक सम्पत्ति के क्रय व सट्टेबाजी में बचतों का अनुत्पादक उपभोग किया जाता है ।
जोखिम एवं अनिश्चितता वाले क्षेत्रों में पूँजी गतिशील नहीं हो पाती मुद्रा एवं पूँजी बाजार के अविकसित होने के कारण बचतों को विनियोग हेतु वित्तीय रूप से गतिशील करना संभव नहीं बन पाता । इसी कारण बेंजामिन हिगिन्स लिखते है कि विकास बिना पूँजी संचय के संभव नहीं बन पाता ।
आय व सम्पत्ति वितरण में असमानताएँ
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों में आय एवं सम्पत्ति के वितरण में असमानताएँ विद्यमान होती है अर्थात् समाज के एक छोटे वर्ग के पास देश की सम्पत्ति व संसाधनों का अधिकांश भाग विद्यमान होता है तथा समाज का अधिकांश भाग जीवन निर्वाह स्तर पर गुजारा करता है ।
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कोई भी देश आय के वितरण में पूर्ण समानता के करीब नहीं आ सकता लेकिन विकसित देशों में सरकार करों के द्वारा तथा सुदृढ़ श्रम संघों की कार्यवाहियों से आय के स्तर अधिक समान रखने के लिए प्रयासरत रहती हैं । कम विकसित देशों में कर एवं श्रम संघों की गतिविधियाँ इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं कर पातीं ।
विभिन्न आर्थिक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि जिनकी आय उच्च है वहीं समाज में अधिक बचत करते है ऐसे में निर्धन वर्ग की बचतें नहीं के बराबर होती है तथा मध्य वर्ग की बचतें अति अल्प होती हैं। स्पष्ट है कि अर्द्धविकसित देशों में आय वितरण उच्च विषमता युक्त होता है।
अर्न्तसंरचना का अभाव
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों में सामाजिक उपरिमदों तथा विद्युत यातायात संवाद वहन के साधनों जिन्हें अग्रिम शृंखला कहा जाता है का अभाव होता है । अरचना के निर्माण हेतु भारी विनियोग की आवश्यकता होती है लेकिन इन देशों में पूँजी का अभाव इसके निर्माण हेतु अवरोध उत्पन्न करता है । अर्न्तसंरचना विकास हेतु निजी विनियोगी इच्छुक नहीं होता, क्योंकि इससे प्राप्त लाभ अपरोक्ष होते है तथा इनकी प्रवृत्ति अनिश्चित होती है । समस्या तो यह है कि इन देशों में सरकार राजनीतिक अस्थायित्व से ग्रस्त होती है व उनमें विकास की प्रतिबद्धता न्यून होती है ।
बाजार की अपूर्णताएँ
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों में बाजार की अपूर्णताएँ विद्यमान होने से अभिप्राय यह है कि उत्पादन के साधनों में गतिशीलता का अभाव होता है, श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण का अदा निम्न होने के कारण उत्पादन के साधनों का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण माँग के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पाता कीमतों में तीव उच्चावचन की प्रवृत्ति पायी जाती है। उत्पादन में प्राय: एकाबिकार की स्थिति दिखायी देती है। वस्तु की गुणवत्ता पर नियंत्रण नहीं होता। इस प्रकार संसाधनों का अल्प शोषण बाजार की अपूर्णताओं के कारण होता है जिससे अर्द्धविकसित देश सीमित उत्पादन ही कर पाते है।
द्वैत अर्थव्यवस्था
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों की द्वैत प्रकृति से अभिप्राय है कि इन देशों में एक और सापेक्षिक रूप से बड़ा घरेलू क्षेत्र विद्यमान होता है और दूसरी ओर आधुनिक क्षेत्र संकुचित होता है। प्रो.जे.एच. बूके के अनुसार- अर्थव्यवस्था का धरेलू क्षेत्र सीमित आवश्यकताओं से एवं पूँजीवादी या आधुनिक क्षेत्र असीमित आवश्यकताओं की प्रवृति का प्रदर्शन करता है । इन दोनों क्षेत्रों की सामाजिक संरचना व संस्कृति में भिन्नता विद्यमान होती है। बूके इसे 'सामाजिक द्वैतता' के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं ।
प्रो. बेंजामिन हिंगिन्स ने अर्द्धविकसित देशों में साधन अनुपातों की समस्या को ध्यान में रखते हुए तकनीकी द्वेतता का विश्लेषण प्रस्तुत किया उनके अनुसार- अर्द्धविकसित देशों में रोजगार अवसरों की सीमितता अल्प समर्थ माँग के कारण नहीं बल्कि इन अर्थव्यवस्थाओं की द्वैत प्रवृत्ति के कारण होती है अर्थात् समृद्ध व निर्धन क्षेत्रों में उत्पादन फलन भिन्न होते है तथा साधन बहुलताओं में अंतर विद्यमान होता है । अर्द्धविकसित देशों में द्वैतता की प्रवृत्तियों की व्याख्या प्रो. आर्थर लेविस व एच. डब्ल्यू सिंगर द्वारा की गयी ।
समर्थ व कुशल प्रशासन व संगठनात्मक ढांचे का अभाव
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों में सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता का अभाव होता है। मिचेल पी टोडारो के अनुसार- इन देशों का एक मुख्य लक्षण सापेक्षिक रूप से दुर्बल प्रशासनिक मशीनरी है।
वस्तुत: इन देशों में प्रबन्ध व संगठनात्मक कुशलताओं की कमी होती है। कार्य से संबंधित नियम कानून व उनका निष्पादन अस्पष्ट व ढीले-ढाले होते हैं । तुरन्त निर्णय नहीं लिये जाते । नौकरशाही के प्रबंध जटिल होते हैं जिससे भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है। इन्हीं कारणों से गुन्नार मिर्डल इन देशों को 'नरम राज्य' की संज्ञा देते हैं ।
अनार्थिक संस्कृति
संपादित करेंसामान्यतः अर्द्धविकसित देशों में भौतिक समृद्धि को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। इसी कारण अधिक आय प्राप्त करने की इच्छा व मनोवृत्ति विद्यमान नहीं होती । अनावश्यक उपभोग उचित नहीं माना जाता। व्यक्ति भाग्य व नियति को महत्वपूर्ण मानते हैं जिसका प्रभाव कार्य करने की स्थितियों पर पड़ता है।
मध्य वर्ग का कम या अस्तित्वहीन होना
संपादित करेंअर्द्धविकसित देशों में प्राय: मध्य वर्ग की अनुपस्थिति दिखायी देती है । इसका मुख्य कारण यह है कि आय का मुख्य स्रोत कृषि क्षेत्र होता है । सामान्यत: कृषि भूमि धनी वर्ग के नियंत्रण व स्वामित्व में होती है व सामान्य कृषक के पास इतनी अल्प भूमि होती है कि उससे जीवन निर्वाह ही कठिनाई से हो पाता है । इन देशों में होने वाले औद्योगिक विकास समस्या को और अधिक जटिल करता है। उद्योग अपनी शैशव अवस्था में होते है ।
अत: इनके द्वारा अधिक रोजगार का सृजन नहीं किया जाता । अत: जनसंख्या का बहुल भाग भूमि के असमान वितरण व सहायक उद्योग धंधों व संकुचित औद्योगिक क्षेत्र में समुचित अवसरों की कमी का अनुभव करता है । ऐसे में निर्धन वर्ग का बाहुल्य रहता है । मध्य वर्ग तब अस्तित्व में आता है जब लघुभूमि जोत विद्यमान होती है तथा सहायक उद्योगों व उद्योग व सेवा क्षेत्र का विस्तार होने लगता है ।
आर्थिक निर्भरता
संपादित करेंअधिकांश अर्द्धविकसित देश लंबे समय तक गुलामी व औपनिवेशिक उत्पीड़न के शिकार रहे हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के उपरान्त भी यह आर्थिक रूप से विकसित देशों पर निर्भर रहे हैं। अल्पविकसित देशों द्वारा विकसित देशों का दृष्टिकोण एवं मूल्यों को अपनाया गया है। प्राय: इन देशों ने विकसित देशों के विकास मॉडलों का ही अनुसरण किया है । यद्यपि कम विकसित देशों द्वारा विकसित देशों की शिक्षा व्यवस्था स्वास्थ्य प्रणाली व प्रशासनिक संरचना को अपनाया जा रहा है लेकिन गुणवत्ता व क्षमता उपयोग की दृष्टि से वह अभी बहुत पीछे है ।
विदेशी व्यापार उन्मुखता
संपादित करेंअर्द्धविकसित देश सामान्यत: विदेश व्यापार उन्मुख होते हैं। प्रायः इनके द्वारा कच्चे माल व प्राथमिक वस्तुओं का निर्यात एवं उपभोक्ता वस्तुओं व पूँजीगत वस्तुओं व मशीनरी का आयात किया जाता है। निर्यातों पर निर्भर होने के कारण अर्द्धविकसित देशों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है । निर्यात क्षेत्र हेतु अधिक उत्पादन करने पर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों का समुचित विकास नहीं हो पाता ।
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्राथमिक वस्तुओं के निर्यात में व्याप्त प्रतिद्वन्दिता के कारण अर्द्धविकासत देशों को अधिक निर्यात मूल्य भी प्राप्त नहीं हो पाता। वहीं इन्हें विनिर्मित वस्तुओं, पूँजीगत यन्त्र उपकरण व विनिर्मित वस्तुओं के आयात का उच्च मूल्य चुकाना पड़ता है। अर्द्धविकसित देशों की व्यापार शर्त प्रायः विपरीत रहती है तथा इन्हें भुगतान संतुलन के असाम्य से पीड़ित रहना पड़ता है ।
अर्द्धविकसित देशों में जनसंख्या की शुद्धि दर उच्च रही है । अत: आर्थिक विकास की संभावनाओं के बावजूद जीवन-स्तर में परिवर्तन नहीं हो पाया । सामान्यत: इन देशों में जन्म व मृत्यु दरें ऊँची रहती हैं तथा मृत्यु दर के सापेक्ष जन्म दर अधिक होती है । अत: जनसंख्या विस्फोट की समस्या उत्पन्न होती है ।
अर्द्धविकसित देशों में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात विकसित देशों के सापेक्ष अल्प रहा है । इससे आर्थिक विकास की गति अवरूद्ध होती है । इन देशों में भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ा है लेकिन विभिन्न देशों में इसकी प्रवृतियों भिन्न रही है । उदाहरण के लिए- हांगकांग व सिंगापुर में जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग कि.मी. क्रमश: 3981 प्रति वर्ग कि.मी. है तो जाम्बिया व माली में केवल 6 व 4, मात्र इन प्रवृतियों के आधार पर इन देशों में उत्पादन हेतु उपयोग में लायी गयी भूमि के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की सूची
संपादित करेंअंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट अप्रैल 2010 के अनुसार, निम्नलिखित को उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्था माना गया है।[15]
- Afghanistan
- Albania
- Algeria
- Angola
- Antigua and Barbuda
- Argentina
- Armenia
- Azerbaijan
- The Bahamas
- Bahrain
- Bangladesh
- Barbados
- Belarus
- Belize
- Benin
- Bhutan
- Bolivia
- Botswana
- Bosnia and Herzegovina
- Brazil
- Bulgaria
- Burkina Faso
- Burma
- Burundi
- Cameroon
- Cape Verde
- Central African Republic
- Chad
- Chile
- China
- Colombia
- Comoros
- Democratic Republic of the Congo
- Republic of the Congo
- Costa Rica
- Côte d'Ivoire
- Croatia
- Djibouti
- Dominica
- Dominican Republic
- Ecuador
- Egypt
- El Salvador
- Equatorial Guinea
- Eritrea
- Estonia
- Ethiopia
- Fiji
- Gabon
- The Gambia
- Georgia
- Ghana
- Grenada
- Guatemala
- Guinea
- Guinea-Bissau
- Guyana
- Haiti
- Honduras
- Hungary
- Indonesia
- India
- Iran
- Iraq
- Jamaica
- Jordan
- Kazakhstan
- Kenya
- Kiribati
- Kuwait
- Kyrgyzstan
- Laos
- Latvia
- Lebanon
- Lesotho
- Liberia
- Libya
- Lithuania
- Macedonia
- Madagascar
- Malawi
- Malaysia
- Maldives
- Mali
- Marshall Islands[16]
- Mauritania
- Mauritius
- Mexico
- Federated States of Micronesia[16]
- Moldova
- Mongolia
- Montenegro
- Morocco
- Mozambique
- Namibia
- Nauru
- Nepal
- Nicaragua
- Niger
- Nigeria
- Oman
- Pakistan
- Palau[16]
- Panama
- Papua New Guinea
- Paraguay
- Peru
- Philippines
- Poland
- Qatar
- Romania
- Russia
- Rwanda
- Saudi Arabia
- Samoa
- São Tomé and Príncipe
- Senegal
- Serbia
- Seychelles
- Sierra Leone
- Solomon Islands
- South Africa
- Somalia
- Sri Lanka
- Saint Kitts and Nevis
- Saint Lucia
- Saint Vincent and the Grenadines
- Sudan
- Suriname
- Swaziland
- Syria
- Tajikistan
- Tanzania
- Thailand
- Timor-Leste
- Togo
- Tonga
- Trinidad and Tobago
- Tunisia
- Turkey
- Turkmenistan
- Tuvalu
- Uganda
- Ukraine
- United Arab Emirates
- Uruguay
- Uzbekistan
- Vanuatu
- Venezuela
- Vietnam
- Yemen
- Zambia
- Zimbabwe
वे विकासशील देश जो आईएमएफ द्वारा सूचीबद्ध नहीं किये गए हैं।
संपादित करेंउन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की सूची (चार एशियन टाइगर्स और नए यूरो देश) जिन्हें अब उन्नत अर्थव्यवस्था माना जाता है।
संपादित करें- Hong Kong (1997 के बाद)
- Singapore (1997 के बाद)
- South Korea (1997 के बाद)
- Taiwan (1997 के बाद)
- Cyprus (2001 के बाद)
- Slovenia (2007 के बाद)
- Malta (2008 के बाद)
- Czech Republic (2009 के बाद)
- Slovakia (2009 के बाद)
टाईपोलॉजी और देशों के नाम
संपादित करेंदेशों को अक्सर मोटे तौर पर विकास की चार श्रेणियों में रखा जाता है। प्रत्येक वर्ग में वे देश शामिल हैं जिन्हें उनसे सम्बंधित लेखों में सूचीबद्ध किया गया है। "विकासशील राष्ट्र" नामक शब्द किसी विशिष्ट, समान समस्या को निर्धारित करने के लिए कोई लेबल नहीं है।
- नव औद्योगीकृत देश (एनआईसी) वे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्थाएं विकासशील देशों से अधिक उन्नत और विकसित हैं, परन्तु जिन्होंने अभी भी विकसित देश होने के सभी संकेत नहीं दिए हैं।[3][4][5][6] एनआईसी विकसित और विकासशील देशों के बीच एक वर्ग है। इसमें ब्राजील, चीन, भारत, मलेशिया, मैक्सिको, फिलीपींस,दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड और [तुर्की|टर्की] शामिल है।
- उन्नत उभरते हुए बाज़ार हैं[17]: ब्राजील, हंगरी, मैक्सिको, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका और ताइवान.
- जिन देशों में लम्बे समय से गृह युद्ध चल रहा है अथवा वृहत स्तर पर क़ानून भंग हुआ है (विफल राष्ट्र) (उदाहरणतः लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सोमालिया) अथवागैर विकासोन्मुखी तानाशाही [[उत्तर कोरिया|(उत्तर कोरिया,]] म्यांमार और [[ज़िम्बाबवे|जिम्बाब्वे]]).
- कुछ विकासशील देश विश्व बैंक के द्वारा विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में रखे गए हैं जैसे एंटीगुआ और बारबुडा, बहामा, बहरीन,बारबाडोस, ब्रुनेई, भूमध्य रेखीय (इक्वेटोरियल) गिनी,कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और त्रिनिदाद और टोबैगो.
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Sullivan, Arthur (2003). Economics: Principles in Action. Upper Saddle River, New Jersey 07458: Prentice Hall. पृ॰ 471. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-13-063085-3. मूल से 20 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2011. नामालूम प्राचल
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की उपेक्षा की गयी (|author=
सुझावित है) (मदद)सीएस1 रखरखाव: स्थान (link) - ↑ अ आ इ "Composition of macro geographical (continental) regions, geographical sub-regions, and selected economic and other groupings (footnote C)". संयुक्त राष्ट्र Statistics Division. revised 17 अक्टूबर 2008. मूल से 17 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 दिसंबर 2008.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ अ आ Mankiw, N. Gregory (4th Edition 2007). Principles of Economics. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-32-422472-9.
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- ↑ "Q. How does the WEO categorize advanced versus emerging and developing economies?". International Monetary Fund. मूल से 30 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि July 20, 2009.
- ↑ अ आ "How we Classify Countries". World Bank. मूल से 20 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि September 25, 2010.
- ↑ आईएमएफ द्वारा दी गयी उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की सूची. Archived 2011-05-20 at the वेबैक मशीनविश्व आर्थिक आउटलुक डाटाबेस, अप्रैल 2010. Archived 2011-05-20 at the वेबैक मशीन
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- ↑ http://www.ftse.com/Indices/FTSE_Emerging_Markets/index.jsp Archived 2011-05-16 at the वेबैक मशीन.
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- [विकसित देश]