सीतामढ़ी (Sitamarhi) भारत के बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल के सीतामढ़ी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2] यह सांस्कृतिक मिथिला क्षेत्र का प्रमुख शहर है जो पौराणिक आख्यानों में सीता की जन्मस्थली के रूप में उल्लिखित है। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।[3]

सीतामढ़ी
Sitamarhi
जानकी स्थान स्थित भव्य मंदिर
जानकी स्थान स्थित भव्य मंदिर
सीतामढ़ी is located in बिहार
सीतामढ़ी
सीतामढ़ी
बिहार में स्थिति
निर्देशांक: 26°44′17″N 85°16′25″E / 26.738056°N 85.273611°E / 26.738056; 85.273611निर्देशांक: 26°44′17″N 85°16′25″E / 26.738056°N 85.273611°E / 26.738056; 85.273611
देश भारत
प्रान्तबिहार
ज़िलासीतामढ़ी ज़िला
शासन
 • विधायकमिथिलेश कुमार
 • सांसदसुनिल कुमार पिंटु
क्षेत्रफल
 • कुल2294 किमी2 (886 वर्गमील)
ऊँचाई56 मी (184 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल34,23,574
 • घनत्व1492 किमी2 (3,860 वर्गमील)
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, मैथिली,बज्जिका
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड843302, 843301, 843331, 843323, 843325, 843327
दूरभाष कोड+91-6226
वाहन पंजीकरणBR-30
वेबसाइटsitamarhi.nic.in



सीता के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा। यह शहर लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर अवस्थित है। रामायण काल में यह मिथिला राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग था। १९०८ ईस्वी में यह मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा बना। स्वतंत्रता के पश्चात 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर यह स्वतंत्र जिला बना। बिहार के उत्तरी गंगा के मैदान में स्थित यह जिला नेपाल की सीमा पर होने के कारण संवेदनशील है। मैैैैैैथिली एवं बज्जिका यहाँ बोली जाती है। लेकिन हिंदी और उर्दू राजकाज़ की भाषा और शिक्षा का माध्यम है। यहाँ की स्थानीय संस्कृति, रामायणकालीन परंपरा तथा धार्मिकता नेपाल के तराई प्रदेश तथा मिथिला के समान है। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वर्तमान समय में यह तिरहुत कमिश्नरी के अंतर्गत बिहार राज्य का एक जिला मुख्यालय और प्रमुख पर्यटन स्थल है।

संक्षिप्त इतिहास

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चित्र:Sitamarhi railway station.jpg
सीतामढ़ी प्रवेश द्वार (रेलवे स्टेशन)

सीतामढी का स्थान हिंदू धर्मशास्त्रों में अन्यतम है। सीतामढ़ी पौराणिक आख्यानों में त्रेतायुगीन शहर के रूप में वर्णित है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री तथा भगवान राम की पत्नी देवी सीता का जन्म पुनौरा में हुआ था। पौराणिक मान्यता के अनुसार मिथिला एक बार दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हो गाय थी। पुरोहितों और पंडितों ने मिथिला के राजा जनक को अपने क्षेत्र की सीमा में हल चलाने की सलाह दी। कहते हैं कि सीतामढ़ी के पुनौरा नामक स्थान पर जब राजा जनक ने खेत में हल जोता था, तो उस समय धरती से सीता का जन्म हुआ था। सीता जी के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा।[4] ऐसी जनश्रुति है कि सीताजी के प्रकाट्य स्थल पर उनके विवाह पश्चात राजा जनक ने भगवान राम और जानकी की प्रतिमा लगवायी थी। लगभग ५०० वर्ष पूर्व अयोध्या के एक संत बीरबल दास ने ईश्वरीय प्रेरणा पाकर उन प्रतिमाओं को खोजा औ‍र उनका नियमित पूजन आरंभ हुआ। यह स्थान आज जानकी कुंड के नाम से जाना जाता है। प्राचीन कल में सीतामढी तिरहुत का अंग रहा है। इस क्षेत्र में मुस्लिम शासन आरंभ होने तक मिथिला के शासकों के कर्नाट वंश ने यहाँ शासन किया। बाद में भी स्थानीय क्षत्रपों ने यहाँ अपनी प्रभुता कायम रखी लेकिन अंग्रेजों के आने पर यह पहले बंगाल फिर बिहार प्रांत का अंग बन गया। 1908 ईस्वी में तिरहुत मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा रहा। स्वतंत्रता पश्चात 11 दिसम्बर 1972 को सीतामढी को स्वतंत्र जिला का दर्जा मिला, जिसका मुख्यालय सीतामढ़ी को बनाया गया।

पौराणिक महत्व

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जनकपुर में स्वयंबर के दौरान भगवान राम के द्वारा शिव धनुष तोड़ने से संबंधित रवी वर्मा की पेंटिंग

वृहद विष्णु पुराण के वर्णनानुसार सम्राट जनक की हल-कर्षण-यज्ञ-भूमि तथा उर्बिजा सीता के अवतीर्ण होने का स्थान है जो उनके राजनगर से पश्चिम 3 योजन अर्थात 24 मिल की दूरी पर स्थित थी। लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर उस यज्ञ का अनुष्ठान एवं संपादन बताया जाता है। हल-कर्षण-यज्ञ के परिणामस्वरूप भूमि-सुता सीता धारा धाम पर अवतीर्ण हुयी, साथ ही आकाश मेघाच्छन्न होकर मूसलधार वर्षा आरंभ हो गयी, जिससे प्रजा का दुष्काल तो मिटा, पर नवजात शिशु सीता की उससे रक्षा की समस्या मार्ग में नृपति जनक के सामने उपस्थित हो गयी। उसे वहाँ वर्षा और वाट से बचाने के विचार से एक मढ़ी (मड़ई, कुटी, झोपड़ी) प्रस्तुत करवाने की आवश्यकता आ पड़ी। राजाज्ञा से शीघ्रता से उस स्थान पर एक मड़ई तैयार की गयी और उसके अंदर सीता सायत्न रखी गयी। कहा जाता है कि जहां पर सीता की वर्षा से रक्षा हेतु मड़ई बनाई गयी उस स्थान का नाम पहले सीतामड़ई, कालांतर में सीतामही और फिर सीतामढ़ी पड़ा। यहीं पास में पुनौरा ग्राम है जहां रामायण काल में पुंडरिक ऋषि निवास करते थे। कुछ लोग इसे भी सीता के अवतरण भूमि मानते हैं। परंतु ये सभी स्थानीय अनुश्रुतियाँ है।

 
गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस

सीतामढ़ी तथा पुनौरा जहां है वहाँ रामायण काल में घनघोर जंगल था। जानकी स्थान के महन्थ के प्रथम पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्ध पुरुष थे। उन्होने "वृहद विष्णु पुराण" के वर्णनानुसार जनकपुर नेपाल से मापकर वर्तमान जानकी स्थान वाली जगह को ही राजा जनक की हल-कर्षण-भूमि बताई। पीछे उन्होने उसी पावन स्थान पर एक बृक्ष के नीचे लक्षमना नदी के तट पर तपश्चर्या के हेतु अपना आसन लगाया। पश्चात काल में भक्तों ने वहाँ एक मठ का निर्माण किया, जो गुरु परंपरा के अनुसार उस कल के क्रमागत शिष्यों के अधीन आद्यपर्यंत चला आ रहा है। सीतामढ़ी में उर्वीजा जानकी के नाम पर प्रतिवर्ष दो बार एक राम नवमी तथा दूसरी वार विवाह पंचमी के अवसर पर विशाल पशु मेला लगता है, जिससे वहाँ के जानकी स्थान की ख्याति और भी अधिक हो गयी है।[5]

श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड में ऐसा उल्लेख है कि "राजकुमारों के बड़े होने पर आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के निमंत्रण मिलने पर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या का उद्धार किया, यह स्थान सीतामढ़ी से 40 कि. मी. अहिल्या स्थान के नाम पर स्थित है। मिथिला में राजा जनक की पुत्री सीता जिन्हें कि जानकी के नाम से भी जाना जाता है का स्वयंवर का भी आयोजन था जहाँ कि जनकप्रतिज्ञा के अनुसार शिवधनुष को तोड़ कर राम ने सीता से विवाह किया| राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से करवा दिया।" राम सीता के विवाह के उपलक्ष्य में अगहन विवाह पंचमी को सीतामढ़ी में प्रतिवर्ष सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। इसी प्रकार जामाता राम के सम्मान में भी यहाँ चैत्र राम नवमी को बड़ा पशु मेला लगता है।

भौगोलिक स्थिति

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धान की खेती करता किसान

सीतामढ़ी शहर 26.6 ° उत्तर और 85.48° पूर्व में स्थित है। इसकी औसत ऊंचाई 56 मीटर (183 फीट) है। यह शहर लखनदेई नदी के तट पर स्थित है। यह बिहार राज्य का एक जिला मुख्यालय है और तिरहुत कमिश्नरी के अंतर्गत है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 2,669,887 है। क्षेत्रफल 1,200/km2 (3,200/sq mi) है। यह शहर बिहार नेपाल की सीमा पर अवस्थित है। बिहार की राजधानी पटना से इसकी दूरी 135 किलो मीटर है। इसके आसपास की भूमि प्रायः सर्वत्र उपजाऊ एवं कृषियोग्य है। धान, गेंहूँ, दलहन, मक्का, तिलहन, तम्बाकू,सब्जी तथा केला, आम और लीची जैसे कुछ फलों की खेती की जाती है। यहाँ औसत तापमान गृष्म ऋतु में 35-45 डिग्री सेल्सियस तथा जाड़े में 4-15 डिग्री सेल्सियस रहता है। जाड़े का मौसम नवंबर से मध्य फरवरी तक रहता है। अप्रैल में गृष्म ऋतु का आरंभ होता है जो जुलाई के मध्य तक रहता है। जुलाई-अगस्त में वर्षा ऋतु का आगमन होता है जिसका अवसान अक्टूबर में होने के साथ ही ऋतु चक्र पूरा हो जाता है। औसतन 1205 मिलीमीटर वर्षा का का वार्षिक वितरण लगभग 52 दिनों तक रहता है जिसका अधिकांश भाग मानसून से होनेवाला वर्षण है। यह बिहार का संवेदनशील बाढ़ग्रस्त इलाका है। इस शहर के आसपास हिमालय से उतरने वाली कई नदियाँ तथा जलधाराएँ प्रवाहित होती है और अंतत: गंगा में विसर्जित होती हैं। वर्षा के दिनों में इन नदियों में बाढ़ एक बड़ी समस्या के रूप में उत्पन्न हो जाती है। यहाँ मुख्य रूप से हिन्दी और स्थानीय भाषा के रूप में बज्जिका बोली जाती है। बज्जिका भोजपुरी और मैथली का मिलाजुला रूप है। यह बिहार का एक संसदीय क्षेत्र भी है, जिसके अंतर्गत बथनाहा, परिहार, सुरसंड, बाजपट्टी, रुनी सैदपुर और सीतामढ़ी बिधान सभा क्षेत्र आते हैं।[6] यह सीतामढ़ी जिले का मुख्यालय है।

गंगा के उत्तरी मैदान में बसे सीतमढी जिला की समुद्रतल से औसत ऊँचाई लगभग ८५ मीटर है। २२९४ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला इस जिले की सीमा नेपाल से लगती है। अंतरराष्ट्रीय सीमा की कुल लंबाई ९० किलोमीटर है। दक्षिण, पश्चिम तथा पुरब में इसकी सीमा क्रमश: मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण एवं शिवहर तथा दरभंगा एवं मधुबनी से मिलती है। उपजाऊ समतल भूमि होने के बावजूद यहाँ की नदियों में आनेवाली सालाना बाढ के कारण यह भारत के पिछड़े जिले में एक है।

सीतामढी में औसत सालाना वर्षा 1100 मि•मी• से 1300 मि•मी• तक होती है। यद्यपि अधिकांश वृष्टि मानसून के दिनों में होता है लेकिन जाड़ॅ के दिनों में भी कुछ वर्षा हो जाती है जो यहाँ की रबी फसलों के लिए उपयुक्त है। वार्षिक तापान्तर 32 से• से 41 से• के बीच रहता है। हिमालय से निकटता के चलते वर्षा के दिनों में आ‍द्रता अधिक होती है जिसके फलस्वरूप भारी ऊमस रहता है।

मृदा एवं जलस्रोत

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धान, गेहूँ, मक्का, दलहन, तिलहन, गन्ना, तम्बाकू आदि।

प्रशासनिक विभाजन

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बिहार के जिले

सीतामढी जिले में 3 अनुमंडल,17 प्रखंड एवं 17 राजस्व सर्किल है। सीतामढी नगर परिषद के अलावे जिले में 4 नगर पंचायत हैं। जिले के 273 पंचायतों के अंतर्गत 835 गाँव आते हैं। जिले का मुख्यालय एवं प्रशासनिक विभाजन इस प्रकार है:-

भाषा-बोली

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मैथिली यहाँ की बोली है लेकिनमैथिली हिंदी और उर्दू राजकाज़ की भाषा और शिक्षा का माध्यम है तथा बज्जिका यहाँ की अन्य भाषा है। यहाँ की स्थानीय संस्कृति, रामायणकालीन परंपरा तथा धार्मिकता नेपाल के तराई प्रदेश तथा मिथिला के समान है।

जनसंख्या एवं जीवन स्तर

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वर्ष 2011की जनगणना के अनुसार इस जिले की जनसंख्या:[7] 3,419,622 है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 3.29% है। जनंख्या का घनत्व 899 है जो राष्ट्रीय औसत से काफी आगे हैं। राज्य की जनसंख्या में बारहवें स्थान पर आनेवाले इस जिले की दशकीय वृद्धि दर 27.47 है। साक्षरता की दर मात्र53.53% है।
[8]

  • सीतामढ़ी शहर की जनसंख्या का अवलोकन करें तो यह स्थिति उभरकर आती है।[8]
विवरण वास्तविक जनसंख्या नर महिला
2011 105924 56,526 49,398
  • सीतामढ़ी जिले का समग्र अवलोकन किया जाये तो निम्नलिखित स्थिति उभर कर आती है।[8]
विवरण वास्तविक जनसंख्या नर महिला जनसंख्या वृद्धि एरिया वर्ग॰ मी घनत्व वर्ग की॰मी॰ बिहार जनसंख्या के अनुपात (प्रति 1000) लिंग अनुपात बाल लिंग अनुपात (0-6 महीने)
2001 2682720 1417611 1265109 32.58% 2294 1,170 3.23% 892 924
2011 3423574 1803252 1620322 27.62% 2294 1,492 3.29% 899 930
विवरण औसत साक्षरता पुरुष साक्षरता महिला साक्षरता कुल बच्चों की आबादी (0-6 महीने) पुरुष जनसंख्या (0-6 महीने) महिला आबादी (0-6 महीने) साक्षरों की संख्या पुरुष साक्षरों की संख्या महिला साक्षरों की संख्या बाल अनुपात (0-6 महीने) लड़कों के अनुपात (0-6 महीने) लड़कियों के अनुपात (0-6 महीने)
2001 38.46 49.36 26.13 556,582 289,273 267,309 817,711 556,936 260,775 20.75% 20.41% 21.13%
2011 52.05 60.64 42.41 663,227 343,555 319,672 1436794 885,188 551,606 19.37% 19.05% 19.73%


2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले में पुरुष और महिला आबादी क्रमश: 1803252 और 1620322 तथा कुल आबादी 3423574 है, जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में, पुरुषों की संख्या 1417611 और महिलाओं की संख्या 1,265,109 थी, जबकि कुल आबादी 2682720 थी। एक अनुमान के मुताबिक सीतामढ़ी जिले की आबादी महाराष्ट्र की कुल आबादी का 3.29 प्रतिशत माना गया है। जबकि 2001 की जनगणना में, सीतामढ़ी जिले का यह आंकड़ा महाराष्ट्र की आबादी का 3.23 प्रतिशत पर था।[8]

सीतामढ़ी जिले की जनसंख्या
जनगणना जनसंख्या
२००१26,82,720
२०११34,23,57427.6%
  • शहरी क्षेत्र:- 1,53,313
  • देहाती क्षेत्र:- 25,29,407
  • कुल जनसंख्या:- 34,23,574
  • स्त्री-पुरूष अनुपातः- 899 प्रति 1000


जन प्रतिनिधि

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सीतामढ़ी जिले में एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र और उसके अंतर्गत आठ विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमश: सीतामढ़ी, रुन्नी सैदपुर, बाजपट्टी, रीगा, बथनाहा, बेलसंड, परिहार एवं सुरसंड हैं। जन प्रतिनिधियों का विवरण इसप्रकार है:

  • सांसद (सीतामढ़ी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) - श्री सुनील कुमार पिंटू (भा.ज.पा)
  • विधायक (सीतामढ़ी)- श्री मिथिलेश कुमार बीजेपी
  • विधायक (रुन्नी सैदपुर)- श्रीमती मंगीता देवी RJD
  • विधायक (बाजपट्टी)- श्रीमती रंजू गीता JDU
  • विधायक (रीगा) - श्री मोतीलाल प्रसाद BJP
  • विधायक (बथनाहा) - श्री दिनकर राम BJP
  • विधायक (बेलसंड) - श्री मति सुनीता सिंह चौहान JDU
  • विधायक (परिहार) - श्री मति गायत्री देवी BJP
  • विधायक (सुरसंड) -सैयद अबु दोजाना CONG I

प्रमुख पर्यटन स्थल

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  • जानकी स्थान मंदिर: सीतामढी रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने जानकी मंदिर में स्थापित भगवान श्रीराम, देवी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियाँ है। यह सीतामढ़ी नगर के पश्चिमी छोर पर अवस्थित है। जानकी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह पूजा स्थल हिंदू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए अति पवित्र है। जानकी स्थान के महन्थ के प्रथम पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्ध पुरुष थे। उन्होने "वृहद विष्णु पुराण" के वर्णनानुसार जनकपुर नेपाल से मापकर वर्तमान जानकी स्थान वाली जगह को ही राजा जनक की हल-कर्षण-भूमि बताई। पीछे उन्होने उसी पावन स्थान पर एक बृक्ष के नीचे लक्षमना नदी के तट पर तपश्चर्या के हेतु अपना आसन लगाया। पश्चात काल में भक्तों ने वहाँ एक मठ का निर्माण किया, जो गुरु परंपरा के अनुसार उस कल के क्रमागत शिष्यों के अधीन आद्यपर्यंत चला आ रहा है। यह सीतामढ़ी का मुख्य पर्यटन स्थल है।
  • बाबा परिहार ठाकुुुर : सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर प्रखंड परिहार में परिहार दक्षिणी में में स्थित है बाबा परिहार ठाकुर का मंदिर। यहां की मान्यता है कि जो भी बाबा परिहार ठाकुर के मंदिर में आता है वह खाली हाथ वापस नहीं लौटता ।
  • उर्बीजा कुंड:सीतामढ़ी नगर के पश्चिमी छोर पर उर्बीजा कुंड है। सीतामढी रेलवे स्टेशन से डेढ किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थल हिंदू धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए अति पवित्र है। ऐसा कहा जाता है कि उक्त कुंड के जीर्णोद्धार के समय, आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व उसके अंदर उर्बीजा सीता की एक प्रतिमा प्राप्त हुयी थी, जिसकी स्थापना जानकी स्थान के मंदिर में की गयी। कुछ लोगों का कहना है कि वर्तमान जानकी स्थान के मंदिर में स्थापित जानकी जी की मूर्ति वही है, जो कुंड की खुदाई के समय उसके अंदर से निकली थी।[9]
  • पुनौरा और जानकी कुंड :यह स्थान पौराणिक काल में पुंडरिक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। कुछ लोगों का यह भी मत है कि सीतामढी से ५ किलोमीटर पश्चिम स्थित पुनौरा में हीं देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावे यहाँ पवित्र कुंड है।
  • हलेश्वर स्थान:सीतामढी से ३ किलोमीटर उत्तर पूरव में इस स्थान पर राजा जनक ने पुत्रेष्टि यज्ञ के पश्चात भगवान शिव का मंदिर बनवाया था जो हलेश्वर स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
  • पंथ पाकड़:सीतामढी से ८ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बहुत पुराना पाकड़ का एक पेड़ है जिसे रामायण काल का माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी सीता को जनकपुर से अयोध्या ले जाने के समय उन्हें पालकी से उतार कर इस वृक्ष के नीचे विश्राम कराया गया था।
  • बगही मठ:सीतामढी से ७ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित बगही मठ में १०८ कमरे बने हैं। पूजा तथा यज्ञ के लिए इस स्थान की बहुत प्रसिद्धि है।
  • देवकुली (ढेकुली):ऐसी मान्यता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी का यहाँ जन्म हुआ था। सीतामढी से १९ किलोमीटर पश्चिम स्थित ढेकुली में अत्यंत प्राचीन शिवमंदिर है जहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है।
  • गोरौल शरीफ:सीतामढी से २६ किलोमीटर दूर गोरौलशरीफ बिहार के मुसलमानों के लिए बिहारशरीफ तथा फुलवारीशरीफ के बाद सबसे अधिक पवित्र है।
  • जनकपुर:सीतामढी से लगभग ३५ किलोमीटर पूरब एन एच १०४ से भारत-नेपाल सीमा पर भिट्ठामोड़ जाकर नेपाल के जनकपुर जाया जा सकता है। सीमा खुली है तथा यातायात की अच्छी सुविधा है इसलिए राजा जनक की नगरी तक यात्रा करने में कोई परेशानी नहीं है। यह वहु भूमि है जहां राजा जनक के द्वारा आयोजित स्वयंबर में शिव के धनुष को तोड़कर भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह रचाया था।
  • राम मंदिर(सुतिहारा): सीतामढी से लगभग १८ किलोमीटर पूरब एन एच १०४ से जाया जा सकता है।

ऐतिहासिक स्थल:

  • बगही मठ: यह मठ 10वीं शताब्दी का है। यह मठ अपनी सुंदर वास्तुकला और प्राचीन मूर्तियों के लिए जाना जाता है।
  • पंथ पाकड़: यह पेड़ 1000 साल से भी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने इस पेड़ के नीचे विश्राम किया था।
  • ढेकुली: यह स्थान महाभारत से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी का यहाँ जन्म हुआ था।[10]

प्राकृतिक स्थल:

  • लखनदेई नदी: यह नदी सीतामढ़ी से होकर बहती है। यह नदी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती है।
  • सीतामढ़ी वन्यजीव अभयारण्य: यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के जानवरों और पक्षियों का घर है।

अन्य प्रमुख स्थल

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  • बोधायन सरः संस्कृत वैयाकरण पाणिनी के गुरू महर्षि बोधायन ने इस स्थान पर कई काव्यों की रचना की थी। लगभग ४० वर्ष पूर्व देवरहा बाबा ने यहाँ बोधायन मंदिर की आधारशिला रखी थी। और फिर आगे चलकर पंडित विश्वनाथ झा ने गांव वालों के सहयोग से यहाँ मंदिर कि स्थापना की! यह स्थान सीतामढ़ी से 15 किलोमीटर की दूरी पर है!
  • शुकेश्वर स्थानः यहाँ के शिव जो शुकेश्वरनाथ कहलाते हैं, हिंदू संत सुखदेव मुनि के पूजा अर्चना का स्थान है।
  • सभागाछी ससौला: सीतामढी से २० किलोमीटर पश्चिम में इस स्थान पर प्रतिवर्ष मैथिल ब्राह्मण का सम्मेलन होता है और विवाह तय किए जाते हैं।
  • वैष्णो देवी मंदिर: शहर के मध्य में स्थित भव्य वैष्णो देवी मंदिर हैं जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने जाते हैं। यह भी यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इसके अलावा शहर का सबसे पुराना सनातन धर्म पुस्तकालय है जहां दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह है।[11]
  • सीतामढ़ी संग्रहालय: इस संग्रहालय में सीतामढ़ी के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं।
  • सीतामढ़ी कला एवं संस्कृति केंद्र: यहाँ विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।

साहित्य में सीतामढ़ी

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह `दिनकर'

यदि साहित्यिक दृष्टि से आँका जाये तो यह स्पष्ट विदित होगा कि सीतामढ़ी जिला ने अनेक विलक्षण प्रतिभा पुत्रों को अवतरित किया है। यह वही पावन भूमि है जहां से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह `दिनकर' का द्वंद्वगीत गुंजा था तथा बिहार के पंत नाम से चर्चित आचार्य जय किशोर नारायण सिंह ने अपनी सर्जन धर्मिता को धार दी। हिन्दी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान सांवलिया बिहारी लाल वर्मा ने "विश्व धर्म दर्शन" देकर धर्म-संस्कृति के शोधार्थियों के लिए प्रकाश का द्वार खोल दिया था। गाँव-गंवई भाषा में जनता के स्तर की कवितायें लिखकर नाज़िर अकवरावादी को चुनौती देने वाले आशु कवि बाबा नरसिंह दास का नाम यहाँ आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है। इसके अलावा रामवृक्ष बेनीपुरी के जीवन का वहुमूल्य समय यहीं व्यतीत हुआ था। साहित्य मर्मज्ञ लक्षमी नारायण श्रीवास्तव, डॉ रामाशीष ठाकुर, डॉ विशेश्वर नाथ बसु, राम नन्दन सिंह, पंडित बेणी माधव मिश्र, मुनि लाल साहू, सीता राम सिंह, रंगलाल परशुरामपुरिया, हनुमान गोएन्दका, राम अवतार स्वर्ङकर, पंडित उपेन्द्रनाथ मिश्र मंजुल, पंडित जगदीश शरण हितेन्द्र, ऋषिकेश, राकेश रेणु, राकेश कुमार झा, बसंत आर्य, राम चन्द्र बिद्रोही, माधवेन्द्र वर्मा, उमा शंकर लोहिया, गीतेश, इस्लाम परवेज़, बदरुल हसन बद्र, डॉ मोबिनूल हक दिलकश आदि सीतामढ़ी की साहित्यिक गतिविधियों में समय-समय पर जीवंतता लाने में सक्रिय रहे हैं।

इसके अलावा वैद्यनाथ प्रसाद गुप्त "चर्चरीक", मदन साहित्य भूषण, राम चन्द्र आशोपुरी, मुन्नी लाल आर्य शास्त्री, परम हंश जानकी बल्लभ दास, योगेंद्र रीगावाल, संत रस्तोगी, नरेंद्र कुमार, सीता राम दीन, आचार्य सारंग शास्त्री, डॉ मदन मोहन वर्मा पूर्णेंदू, डॉ वीरेंद्र वसु, डॉ कृष्ण जीवन त्रिवेदी, डॉ महेंद्र मधुकर, डॉ पदमाशा झा और डॉ शंभूनाथ सिंह नवगीत सम्मान पाने वाले बिहार के पहले नवगीतकार राम चन्द्र चंद्रभूषण आदि सीतामढ़ी के दीप्तिमान रत्न सिद्ध हुये हैं। शमशेर जन्म शती काव्य सम्मान से अलंकृत अंतर्जाल की वहुचर्चित कवयित्री रश्मि प्रभा का जन्म भी सीतामढ़ी में ही हुआ है।[12]

अपने सीतामढ़ी प्रवास में कुछ साहित्यकारों ने यहाँ की साहित्यिक गतिविधियों में प्राण फूंकने का कार्य किया था, जिनमें सर्व श्री पांडे आशुतोष, तिलक धारी साह, ईश्वर चन्द्र सिन्हा, श्री राम दुबे, अदालत सिंह अकेला, हरिकृष्ण प्रसाद गुप्ता अग्रहरि, हृदयेश्वर आदि। यहाँ की दो वहुचर्चित साहित्यिक प्रतिभाओं क्रमश: आशा प्रभात [13] और रवीन्द्र प्रभात ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस शहर का नाम रोशन किया है।[14] देश के जानेमाने आलोचक, 'दलित साहित्य का समाजशास्त्र' (भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली) और 'भारत में पिछड़ा वर्ग आन्दोलन और परिवर्तन का नया समाजशास्त्र' (ज्ञान बुक्स, नई दिल्ली)[15] के लेखक प्रो. (डा.) हरिनारायण ठाकुर भी सीतामढ़ी जिले के ही हैं। दोनों पुस्तकें देश के केन्द्रीय विवि सहित लगभग सभी विश्वविद्यालय के कोर्स में पढाई जाती हैं। उनका घर मेजरगंज प्रखंड के खैरवा गाँव में है। मुजफ्फरपुर के रामदयालु सिंह कालेज में प्रोफेसर के पद पर काम करने के बाद बी.आर. अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुज़. और एल.एन. मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कई-कई कालेजों के वे प्रिंसिपल रहे हैं। सम्प्रति वे महारानी जानकी कुंवर कालेज, बेतिया में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।[16]

चीनी उद्योग, चावल, तेल मिल

मुख्य भोजन

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सीता की जन्मस्थली और मिथिला संस्कृति के प्रभाव के कारण सीतामढ़ी और इसके आसपास ज्यादातर भोजन में शाकाहारी ही पसंद किया जाता है, लेकिन मांस-मछली भी स्वीकार्य है। भोजन में मुख्य रूप से दाल, भात, रोटी, सब्जी, अचार, पापड़ पसंद किया जाता है। यहाँ बिहारी भोजन ,सत्तू के प्रचलन के रूप में यहाँ लिट्टी-चोखा का भी बहुत महत्व है। यहाँ के लोग बहुत धार्मिक है।

लोक संस्कृति

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सीतामढी की माटी में तिरहुत और मिथिला क्षेत्र की संस्कृति की गंध है। इस भूभाग को देवी सीता की जन्मस्थली तथा विदेह राज का अंग होने का गौरव प्राप्त है। लगभग २५०० वर्ष पूर्व महाजनपद का विकास होनेपर यह वैशाली के गौरवपूर्ण बज्जिसंघ का हिस्सा रहा। लोग बज्जिका में बात करते हैं लेकिन मधुबनी से सटे क्षेत्रों में मैथिली का भी पुट होता है। मुस्लिम परिवारों में उर्दू में प्रारंभिक शिक्षा दी जाती है किंतु सरकारी नौकरियों में प्रधानता न मिलने के कारण अधिकांश लोग हिंदी या अंग्रेजी को ही शिक्षा का माध्यम बनाते हैं।

शादी-विवाह
हिंदू प्रधान समाज होने के कारण यहाँ जाति परंपराएँ प्रचलन में है। अधिकांश शादियाँ माता-पिता द्वारा अपनी जाति में ही तए किए जाते हैं। मुस्लिम समाज में भी शादी तय करने के समय जाति भेद का ख्याल रखा जाता है।
लोक कलाएँ
शादी-विवाह या अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों पर वैदेही सीता के भगवान श्रीराम से विवाह के समय गाए गए गीत अब भी यहाँ बड़े ही रसपूर्ण अंदाज में गाए जाते हैं। कई गीतों में यहाँ आनेवाली बाढ की बिभीषिका को भी गाकर हल्का किया जात है। जटजटनि तथा झिझिया सीतामढी जिले का महत्वपूर्ण लोकनृत्य है। जट-जटिन नृत्य राजस्थान के झूमर के समान है। झिझिया में औरतें अपने सिर पर घड़ा रखकर नाचती हैं और अक्सर नवरात्र के दिनों में खेला जाता है। कलात्मक डिजाईन वाली लाख की चूड़ियों के लिए सीतामढी शहर की अच्छी ख्याति है।

लोकगीत/लोकनृत्य

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चित्र:Loka-geet.jpg
लोकगीत की धून पर लोकनृत्य का प्रतकात्मक चित्र

सोहर, जनेऊ के गीत, संमरि लग्न, गीत, नचारी, समदाउनि, झूमर तिरहुति, बरगमनी, फाग, चैतावर, मलार, मधु श्रावणी, छठ के गीत, स्यामाचकेवा, जट जटिन ओर बारहमासा यहाँ के मुख्य लोकगीत हैं।

'नचारी' गीत प्राय: शिवचरित्र से भरा रहता है। जैसे - 'उमाकर बर बाउरि छवि घटा, गला माल बघ छाल बसन तन बूढ़ बयल लटपटा'। विद्यापति रचित नचारियाँ खूब गाई जाती हैं। 'समदाउनि' प्रमुख बिदा गीत है। जब लड़की ससुराल जाने लगती है तो यह गाया जाता है जो अत्यधिक करुण होता है। सीता के देश में इस गीत से यही करुणा उत्पन्न होती है जो कभी जनक के घर से उमड़ी थी, यथा, 'बड़ रे जतन हम सिया जी के पोसलों से हो रघुबंसी ने जाय आहे सखिया'। इस गीत की बहुत सी धुनें होती हैं। 'झूमर' गीत मुख्य रूप से शृंगारिक होता है और धुनों के अनुसार कई प्रकार से गाया जाता है। मैथिली क्षेत्र के झूमरों की खास विशेषता है कि उनमें अधिकांश संदेशसूचक होते हैं। हिंडोला के झूमर बहुत सरस होते हैं, जैसे 'छोटका देवर रामा बड़ा रे रंगिलवा, रेसम के डोरियवा देवरा बान्हथि हिंडोरवा'। कुछ में स्त्री पुरुष के प्रश्नोत्तर होते हैं। 'तिरहुति' गीत स्त्रियों द्वारा फागुन में गाया जाता है। पहले यह गीत छह पदों का होता था, फिर आठ का हुआ और अब तो काफी लंबा होने लगा है। उसे साहित्य में तथा लोकजीवन में मान्यता भी मिल गई है। इसमें प्राय: विरह भावनाएँ होती हैं : 'मोंहि तेजि पिय मोरा गेलाह विदेस'। साहब राम, नंदलाल, भानुनाथ, रमापति, धनवति, कृष्ण, बुद्धिलाल, चंद्रनाथ, हर्षनाथ एवं बबुज ने नामक प्राचीन लोककवियों के तिरुहुति खूब गाए जाते हैं।

बटगमनी (पथ पर गमन करनेवाली) मुख्य रूप से राह का गीत है। मेले ठेले में जाती ग्राम्याएँ, नदी किनारे से लौटती हुई पनिहारिनें प्राय: बटगमनी गाया करती हैं। इस गीत का एक नाम सजनी भी है। इसमें संयोग और वियोग दोनों भावनाएँ होती हैं। गीत की पंक्ति है - 'जखन गगन धन बरसल सजनि गे सुनि हहरत जिव मोर'। पावस ऋतु में स्त्रियाँ बिना बाजे के और पुरुष बाजे के साथ मलार गाते हैं। जैसे - कारि कारि बदरा उमड़ि गगन माझे लहरि बहे पुरवइया। मधुश्रावणी गीत इसी नाम के त्योहार के समय गाया जाता है जो श्रावण शुक्ल तृतीया को पड़ता है।

छठ के गीत पूर्णत: धार्मिक गीत हैं और सौभाग्य तथा पतिप्रेम के दायक है। स्त्रियाँ गाती हैं - 'नदिया के तीरे तीरे बोअले में राइ। छठी माई के मृगा चरिय चरि जाइ।' स्याम चकेवा एक खेल गीत है जो कार्तिक शुक्ल सप्तमी से कार्तिक पूर्णिमा तक खेल में गाया जाता है। स्यामा बहन और चकेवा भाई के अतिरिक्त इस खेल के चंगुला, सतभइया, खंडरित्र, झाँझी बनतीतर कुत्ता और वृंदावन नामक छह और पात्र हैं। खेल भाई बहन के विशुद्ध प्रेम का पोषक है। बहनें गाती हैं - 'किनकर हरिअर हरिअर दिभवा गे सजनी। जट जटिन एक अभिनय गीत है। जट (पुरुष पात्र) एक तरफ और जटिन (स्त्री पात्र) दूसरी ओर सज-धजकर खड़ी होती हैं। दोनों ओर प्रधान पात्रों के पीछे पंक्तिबद्ध स्त्रियाँ खड़ी हो जाती हैं। इसके बाद जट जटिन का सवाल जवाब गीतों के माध्यम से आरंभ हो जाता है। ये गीत शरद निशा में गाए जाते हैं।

शिक्षण संस्थान

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  • प्राथमिक विद्यालय- 1479
  • मध्य विद्यालय- 619
  • उच्च विद्यालय- 64
  • बुनियादी विद्यालय- 9
  • डिग्री कॉलेज- 25
  • संस्कृत विद्यालय- 20
  • प्रोजेक्ट बालिका विद्यालय -17
  • मदरसा -26
  • अन्य प्रमुख विद्यालय- सूर्यवंशी चौधरी अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान सीतामढ़ी, जवाहर नवोदय विद्यालय खैरबी सीतामढ़ी, केन्द्रीय विद्यालय जवाहरनगर सुतिहारा सीतामढ़ी, जानकी विद्या निकेतन,हेलेंस् स्कूल, विलियेट पब्लिक स्कूल,अनुसूचित जाति आवासीय विद्यालय आदि

सीतामढ़ी जिले के स्वतंत्रता सेनानी

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केरल की पूर्व राज्यपाल राम दुलारी सिन्हा व अन्य
  • राम चरित्र राय यादव - बिहार विधान सभा के पूर्व सदस्य , पूर्व विधायक, सुरसंड, सीतामढ़ी, स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राजनीतिज्ञ व समाजवादी नेता थे. वह 1951-1952 में भारत के पहले आम चुनाव के दौरान बिहार के सीतामढी के सुरसंड निर्वाचन क्षेत्र से विधायक थे, जो भारत को आजादी मिलने के बाद हुआ था।
  • ठाकुर युगल किशोर सिंह - पूर्व सांसद एवं स्वतंत्रता सेनानी
  • राम दुलारी सिन्हा - पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल एवं स्वतंत्रता सेनानी
  • कुलदीप नारायण यादव - पूर्व विधायक एवं स्वतंत्रता सेनानी
  • फुलदेव ठाकुर - स्वतंत्रता सेनानी
  • गंगा ठाकुर - सुतिहारा
  • शहीद रामफल मंडल - बाजपट्टी

यातायात तथा संचार सुविधाएं

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  • सड़क: सीतामढी से गुजरने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग 77 हाजीपुर से सोनबरसा तक तथा राष्ट्रीय राजमार्ग 104 सुरसंड, भिट्ठामोड़, चोरौत होते हुए जयनगर तक जाती है। राजकीय राजमार्ग 52 पुपरी होते सीतामढी को मधुबनी से जोड़ती है। इसके अलावे जिले के सभी भागों में पक्की सड़कें जाती है। पटना से यहाँ सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग 77 से पहुंचा जा सकता है। पटना से यहाँ की दूरी 105 किलो मीटर तथा मुजफ्फरपुर से 53 किलोमीटर है।
  • रेल मार्गः सीता़मढी जंक्शन पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र में पड़ता है। यह जंक्शन समस्तीपुर तथा गोरखपुर रेल खंड पर अबस्थित है। साथ में सीतामढी से मुज़फ्फरपुर तक रेल लाइन है है तथा दिल्ली को जानेवाली लिच्छवी एक्सप्रेस सीतामढी से चलती है। तथा यहाँ से कलकाता,मुंबई.सिकंदराबाद,नागपुर,जबलपुर,धनबाद,रायपुर और न्यू जलपाईगुड़ी के लिए भी ट्रेन है तथा अजमेर और वैष्णोदेवी कटरा के लिए भी ट्रेन है जो अबतक चालू नहीं हो सकी है।
  • हवाई मार्गः यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा 130 किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी पटना में है।
  • दूरभाष सेवाएँ: सूचना क्षेत्र में क्रांति होने का फायदा सीतामढी को भी मिला है। बी एस एन एल सहित अन्य मोबाईल कंपनियाँ जिले के हर क्षेत्र में अपनी पहुँच रखती है। बेसिक फोन (लैंडलाईन) तथा इंटरनेट की सेवा सिर्फ बी एस एन एल प्रदान करती है।
  • डाक व्यवस्था: सभी प्रखंड में डाकघर की सेवा उपलब्ध है। सीतामढी शहर तथा बड़े बाजारों में निजी कूरियर कंपनियाँ कार्यरत है जो ज्यादातर स्थानीय व्यापारियों के काम आती है। सीतामढ़ी में कहाँ ठहरें:
    • सीतामढ़ी में विभिन्न प्रकार के होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
    • आप सीतामढ़ी में पर्यटन विभाग द्वारा संचालित धर्मशालाओं में भी ठहर सकते हैं। सीतामढ़ी जाने का सबसे अच्छा समय:
    • सीतामढ़ी जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है।
    • इस समय मौसम सुखद होता है और पर्यटन के लिए अनुकूल होता है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect Archived 2017-01-18 at the वेबैक मशीन," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
  2. "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
  3. [जानकी उत्पत्ति महात्म्य, लेखक : राम स्वार्थ सिंह पूनम, पृष्ठ संख्या:24]
  4. [राष्ट्रीय सहारा, हिंदी दैनिक, नयी दिल्ली, पृष्ठ संख्या -1 (उमंग),26 सितंबर 1994, शीर्षक -सीतामढ़ी : एक गौरवशाली अतीत ]
  5. [मिथिला का इतिहास, लेखक : डॉ राम प्रकाश शर्मा, प्रकाशक : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विषविद्यालय, दरभंगा, पृष्ठ संख्या : 460]
  6. "BRAND BIHAR DOT COM". मूल से 16 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
  7. "Census Statistics for Bihar". gov.bih.nic.in. मूल से 23 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
  8. सीतामढ़ी जिला: जनगणना 2011 डेटा Archived 2014-08-08 at the वेबैक मशीन(अँग्रेजी में)
  9. [मिथिला का इतिहास, लेखक : डॉ राम प्रकाश शर्मा, प्रकाशक : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा, पृष्ठ संख्या : 460]
  10. "सीता की जन्म धरती सीतामढ़ी, आएं तो इन जगहों पर जरूर घूमें". प्रभात खबर. 3 अगस्त 2023. अभिगमन तिथि 6 मई 2024.
  11. आज, राष्ट्रीय हिंदी दैनिक, पटना संस्करण,14.11.1994, पृष्ठ संख्या :9, आलेख शीर्षक : साहित्य में सीतामढ़ी
  12. "रश्मि प्रभा - कविता कोश". www.kavitakosh.org. मूल से 17 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
  13. "आशा प्रभात के नाम एक और उपलब्धि". Dainik Jagran. मूल से 6 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
  14. आज, राष्ट्रीय हिंदी दैनिक, पटना संस्करण,14.11.1994, पृष्ठ संख्या :9, आलेख शीर्षक : साहित्य में सीतामढ़ी, लेखक: रवीन्द्र प्रभात
  15. ठाकुर, हरिनारायण (2009, कई संस्करण). भारत में पिछड़ा वर्ग आन्दोलन और परिवर्तन का नया समाजशास्त्र. नई दिल्ली: ज्ञान बुक्स (कल्पज पब्लिकेशन), नई दिल्ली. पृ॰ 210. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8178357410. मूल से 28 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अक्तूबर 2018. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  16. ठाकुर, हरिनारायण (2009, संस्करण- 2010, 2014 अब पेपर बैक प्रेस में). दलित साहित्य का समाजशास्त्र. भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली. पपृ॰ प्रथम संस्करण-554, अन्य संस्करण-600. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-1734-9. मूल से 19 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अक्तूबर 2018. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)