पार्वती

हिन्दू धर्म मे वर्णित शक्ति का रूप एवं भगवान शिव जी की पत्नी
(दक्षायनी से अनुप्रेषित)

पार्वती, उमा या गौरी मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, विवाह, संतान की देवी हैं।[1][2][3]देवी पार्वती कई अन्य नामों से जानी जाती है, वह सर्वोच्च हिंदू देवी परमेश्वरी आदि पराशक्ति (शिवशक्ति) की साकार रूप है और शाक्त सम्प्रदाय या हिन्दू धर्म मे एक उच्चकोटि या प्रमुख देवी है और उनके कई गुण,रूप और पहलू हैं। उनके प्रत्येक पहलुओं को एक अलग नाम के साथ व्यक्त किया जाता है, जिससे उनके भारत की क्षेत्रीय हिंदू कहानियों में 10000 से अधिक नाम मिलते हैं। लक्ष्मी और सरस्वती के साथ, वह हिंदू देवी-देवताओं (त्रिदेवी) की त्रिमूर्ति का निर्माण करती हैं।[4] माता पार्वती हिंदू भगवान शिव की पत्नी हैं । वह पर्वत राजा हिमांचल और रानी मैना की बेटी हैं। पार्वती का जन्म स्थान उत्तराखंड के चमोली जिले में माना जाता है जहां उसे नंदा के रूप में पूजा जाता है और इसी कारण वहां हर 12 सालों में नंदा राजजात का आयोजन किया जाता है। [5]पार्वती हिंदू देवताओं गणेश, अशोकसुंदरी‌, ज्योति और मनसा देवी की मां और, कार्तिकेय, अय्यप्पा की सौतेली माता हैं। पुराणों में उन्हें श्री विष्णु की बहन कहाँ गया है। वे ही मूल प्रकृति और कारणरूपा है। [6][7]शिव विश्व के चेतना है तो पार्वती विश्व की ऊर्जा हैं। पार्वती माता जगतजननी अथवा परब्रह्मस्वरूपिणी है।

माता पार्वती(सती/गौरी)
शक्ति, सुंदरता, देवत्व, दिव्य शक्ति, ऊर्जा, सुहाग, सद्भाव, प्रजनन क्षमता, प्रेम , विवाह, संतति की देवी एवम साक्षात् प्रकृति स्वरूपा,शिवानी (शिव की पटरानी),महादेवी, महाकाली, जगजन्नी, जगतमाता

मां पार्वती, कालीघाट चित्रकला में
अन्य नाम आदि पराशक्ति, आदिशक्ति दुर्गा नारायणी, लक्ष्मी, ब्राह्मणी, सरस्वती देवी, सती, गायत्री, शिवानी, शाकम्भरी, चामुंडा, काली, महाकाली, कामाख्या, त्रिपुर सुंदरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, महादेवी, महाविद्या, मातंगी, भगवती, भवानी, शताक्षी देवी, प्रत्यङ्गिरा, महिषासुर मर्दिनी, नवदुर्गा, देवी माँ, शाकम्भरी, शक्ति (देवी), गौरी, वैष्णवी, वैष्णो देवी, कल्याणी, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री
संबंध देवी, शक्ति, आदि शक्ति, आदि पराशक्ति,
निवासस्थान

कैलाश (ससुराल)

हिमालय (पैतृक घर), मनिद्विप
मंत्र

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै॥ ॥ ॐ उमामहेश्वराभ्याम नमः॥ ॥ ॐ महामये विद्माहे शिवप्रियाय धीमहि तन्नो उमा प्रचोद्यात ॥ ॥ ॐ सर्वसमोहन्ये विद्महे विश्वजनन्ये धीमहि तन्नो शक्ति प्रचोद्यात॥ ॥ ॐ नमो देव्ये महादेव्ये शिवाये सततम नमः॥

॥ ॐ नमः प्रकृत्यः भद्राया नियतः प्रणतास्मितः॥
अस्त्र त्रिशूल, पाश, गदा, वज्र , आग की कटोरी , शंख, चक्र भाला, डमरू , खप्पर , कमल , परशु , रस्सी, धनुष बाण, कुंत, मूसल, खड्ग, तलवार, परशु, यम दंड एवं विश्व के समस्त दिव्यास्त्र
युद्ध

महिषासुर एवं देवी के महिषासुरमर्दिनी रूप का युद्ध चंड मुंड एवं देवी के काली रूप का युद्ध धूम्रलोचन एवं देवी के चंडी रूप का युद्ध दुर्गामासुर एवं देवी के दुर्गा रूप का युद्ध

शुंभ निशुंभ एवं देवी के कौशीकी रूप का युद्ध
दिवस सोमवार और शुक्रवार
जीवनसाथी शिव
माता-पिता
  • हिमावन (पिता)
  • मैनावती (माता)
भाई-बहन

विष्णु छोटे भाई

माता गंगा छोटी बहन

अदिति पूर्व जन्म में माता सती की बड़ी बहन

दिति पूर्व जन्म में माता सती की बड़ी बहन

कद्रु पूर्व जन्म में माता सती की बड़ी बहन

विनीता पूर्व जन्म में माता सती की बड़ी बहन
संतान कार्तिकेय, अशोकसुन्दरी , अय्यप्पा , देवी ज्योति , मनसा देवी और गणेश
सवारी शेर , सिंह
शास्त्र वेद, श्री देवी भागवत पुराण, काली पुराण, तंत्र चुरामणि, देवी महातम्यम, रामायण, श्री दुर्गा सप्तशती, श्री चंडी पाठ, शिव महापुराण, विष्णु पुराण, गणेश पुराण, स्कंद पुराण, उपनिषद, श्री पार्वती महात्मय , श्री माता पार्वती चालीसा, श्री 52 शक्ति पीठ महात्म्य एवं अन्य कई धार्मिक ग्रंथ और किंवदंतियां
त्यौहार गंगौर, महाशिवरात्रि, दुर्गाष्टमी, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, हरितालिका तीज, श्रावण, गौरी पूजन, तीज, काली पूजा, गौरी तृतीय, शीतलाष्टमी,
 
शिव-पार्वती

ललिता सहस्रनाम में पार्वती (ललिता के रूप में) के 1,000 नामों की सूची है। [8] पार्वती के सबसे प्रसिद्ध दो में से एक उमा और अपर्णा हैं।[9] स्कन्द पुराण के अनुसार,देवी पार्वती के द्वारा दुर्गमसुर को मारने के बाद देवी पार्वती का नाम दुर्गा पड़ा। उमा नाम का उपयोग सती (शिव की पहली पत्नी, जो पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ है) के लिए किया जाता है, रामायण में देवी पार्वती को उमा नाम से भी संबोधित किया गया है,देवी पार्वती को अपर्णा के रूप में संदर्भित किया जाता है ('जो सबका भरण पोषण करती है')। देवी पार्वती अंबिका ('प्रिय मां'), शक्ति ('शक्ति'), माताजी ('पूज्य माता'), माहेश्वरी ('महान देवी'), दुर्गा (अजेय), भैरवी ('क्रूर'), भवानी ('उर्वरता') आदि नामों से जानी जाती हैं। पार्वती प्रेम और भक्ति की देवी हैं, या कामाक्षी; प्रजनन, बहुतायत और भोजन / पोषण की देवी अन्नपूर्णा कहा गया है । [10]देवी पार्वती एक क्रूर महाकाली भी है जो तलवार उठाती है, गंभीर सिर की माला पहनती है, और अपने भक्तों की रक्षा करती है और दुनिया और प्राणियों की दुर्दशा करने वाली सभी बुराईयों को नष्ट करती है। देवी पार्वती को स्वर्ण, गौरी, काली या श्यामा के रूप में संबोधित किया जाता है, इनका एक शांत रूप गौरी है, तो दूसरा भयंकर रूप काली है।

इतिहास में पार्वती

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देवी पार्वती की इंडोनेशिया के राष्ट्रीय संग्रहालय में मूर्ति

पर्वती शब्द वैदिक साहित्य में प्रयोग नही किया जाता था। इसके बजाय, अंबिका, रुद्राणी का प्रयोग किया गया है।[11] उपनिषद काल (वेदांत काल) के दूसरे प्रमुख उपनिषद केनोपनिषद में देवी पार्वती का जिक्र मिलता है,वहाँ उन्हें हेमवती उमा नाम से जाना जाता है [11]तथा वहां पर उन्हें ब्रह्मविद्या भी जानने को मिलता है और इन्हें दुनिया की माँ की तरह दिखाया गया है।[12] यहां देवी पार्वती को सर्वोच्च परब्रह्म की शक्ति, या आवश्यक शक्ति के रूप में प्रकट किया गया है। उनकी प्राथमिक भूमिका एक मध्यस्थ के रूप में है, जो अग्नि, वायु और वरुण को ब्रह्म ज्ञान देती है, जो राक्षसों के एक समूह की हालिया हार के बारे में घमंड कर रहे थे।[13] देवी का सती-पार्वती नाम महाकाव्य काल (400 ईसा पूर्व -400 ईस्वी) में प्रकट होता है,जहाँ वह शिव की पत्नी है।[11] वेबर का सुझाव है कि जैसे शिव विभिन्न वैदिक देवताओं रुद्र और अग्नि का संयोजन है, वैसे ही पुराण पाठ में पार्वती रुद्र की पत्नियों की एक संयोजन है। दूसरे शब्दों में, पार्वती की प्रतीकात्मकता और विशेषताएं समय के साथ उमा, हेमावती, अंबिका,गौरी को एक पहलू में और अधिक क्रूर, विनाशकारी काली, नीरति के रूप में विकसित हुईं।[12][14][15]

शारीरिक रूप और प्रतीक

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देवी पार्वती को आमतौर पर निष्पक्ष, सुंदर और परोपकारी के रूप में दर्शाया जाता है।[16][17]वह आमतौर पर एक लाल पोशाक (अक्सर एक साड़ी) पहनती है ।और क्रोध अवस्था मे काली के रूप में भी दर्शाया गया है। जब शिव के साथ चित्रित किया जाता है, तो वह आमतौर पर दो भुजाओं के साथ दिखाई देती है, लेकिन जब वह अकेली हो तो उसे चार हाथों में चित्रित किया जा सकता है। इन हाथों में त्रिशूल, दर्पण, माला, फूल (जैसे कमल) हो सकते हैं। प्राचीन मंदिरों में, पार्वती की मूर्ति अक्सर एक बछड़े या गाय के पास चित्रित होती है - भोजन का एक स्रोत। उनकी मूर्ति के लिए कांस्य मुख्य धातु रहा है, जबकि पत्थर आम सामग्री रहा है। [3]

देवी पार्वती के अन्य रूप

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देवी पार्वती दुर्गा के रूप में

कई हिंदू कहानियां पार्वती के वैकल्पिक पहलुओं को प्रस्तुत करती हैं, जैसे कि क्रूर, हिंसक पहलू। उनका रूप एक क्रोधित, रक्त-प्यासे, उलझे हुए बालों वाली देवी, खुले मुंह वाली और एक टेढ़ी जीभ के साथ किया गया है। इस देवी की पहचान आमतौर पर भयानक महाकाली (समय) के रूप में की जाती है।[18] लिंग पुराण के अनुसार, पार्वती ने शिव के अनुरोध पर एक असुर (दानव) दारुक को नष्ट करने के लिए अपने नेत्र से काली को प्रकट किया। दानव को नष्ट करने के बाद भी, काली के प्रकोप को नियंत्रित नहीं किया जा सका। काली के क्रोध को कम करने के लिए, शिव उनके पैरों के नीचे जा कर सो गए,जब काली का पैर शिव के छाती पर पड़ा तो काली का जीभ शर्म से बाहर निकल आया, और काली शांत हो गई।[19] स्कंद पुराण में, पार्वती एक योद्धा-देवी का रूप धारण करती हैं और दुर्ग नामक एक राक्षस को हरा देती हैं जो भैंस का रूप धारण करता है। इस पहलू में, उन्हें दुर्गा के नाम से जाना जाता है।[20]

देवी भागवत पुराण के अनुसार, पार्वती अन्य सभी देवियो की वंशावली हैं। इन्हें कई रूपों और नामों के साथ पूजा जाता है। देवी पार्वती का रूप या अवतार उसके भाव पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए:

दुर्गा पार्वती का एक भयानक रूप है, और कुछ ग्रंथों में लिखा है कि पार्वती ने राक्षस दुर्गमासुर का वध किया था और इसी कारण वे दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हुई थीं। नवदुर्गा नामक नौ रूपों में दुर्गा की पूजा की जाती है। नौ पहलुओं में से प्रत्येक में पार्वती के जीवन के एक बिंदु को दर्शाया गया है। वह दुर्गा के रूप में भी राक्षस महिषासुर, शुंभ और निशुंभ के वध के लिए भी पूजी जाती हैं। वह बंगाली राज्यों में अष्टभुजा दुर्गा, और तेलुगु राज्यों में कनकदुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं।

महाकाली पार्वती का सबसे क्रूर रूप है,यह समय और परिवर्तन की देवी के रूप में, साहस और अंतिम सांसारिक प्रलय का प्रतिनिधित्व करती है। काली, दस महाविद्याओं में से एक देवी हैं,जो नवदुर्गा की तरह हैं जो पार्वती की अवतार हैं। काली को दक्षिण में भद्रकाली और उत्तर में दक्षिणा काली के रूप में पूजा जाता है। पूरे भारत में उन्हें महाकाली के रूप में पूजा जाता है। वह त्रिदेवियों में से एक देवी है और त्रिदेवी का स्रोत भी है। वह परब्रह्म की पूर्ण शक्ति है, क्योंकि वह सभी प्राण ऊर्जाओं की माता है। वह आदिशक्ति का सक्रिय रूप है। वह तामस गुण का प्रतिनिधित्व करती है, और वह तीनो गुणों से परे है, महाकाली शून्य अंधकार का भौतिक रूप है जिसमें ब्रह्मांड मौजूद है, और अंत में महाकाली सबकुछ अपने भीतर घोल लेती है। वह त्रिशक्ति की "क्रिया शक्ति" हैं, और अन्य शक्ति का स्रोत है। वह कुंडलिनी शक्ति है जो हर मौजूदा जीवन रूप के मूल में गहराई से समाया रहता है।

देवी पार्वती का उपनिषद (वेदांत) में वर्णन

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108 उपनिषदों में से दूसरे सबसे प्रमुख उपनिषद "केनोपनिषद" के तृतिया और चतुर्थ खण्ड में देवी पार्वती का वर्णन है,यहाँ पर इन्हें हैमवती उमा नाम से पुकारा गया है। [11] जहाँ पर वो ब्रह्मविद्या, परब्रह्म की शक्ति और सांसारिक माँ के रूप में दिखाई गई हैं।[12] और इनको परब्रह्म और देवो के बीच मे मध्यास्था करते हुए दिखया गया है।

 
केनोपनिषद के कुछ पांडुलिपि
  • कथा

परब्रह्म ने देवताओं को अपने द्वारा विजय दिलवाई । परब्रह्म की उस विजय से देवताओं को अहंकार हो गया । वे समझने लगे कि यह हमारी ही विजय है । हमारी ही महिमा है । यह जानकर परब्रह्म देवताओं के सामने यक्ष के रूप में प्रकट हुए । और वे (देवता) परब्रह्म को ना जान सके कि ‘यह यक्ष कौन है’? तब उन्होंने (देवों ने) अग्नि से कहा कि, ‘हे जातवेद ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । अग्नि ने कहा – ‘बहुत अच्छा’। अग्नि यक्ष के समीप गया । परब्रह्म ने अग्नि से पूछा – ‘तू कौन है’ ? अग्नि ने कहा – ‘मैं अग्नि हूँ, मैं ही जातवेदा हूँ’। ऐसे तुझ अग्नि में क्या सामर्थ्य है ?’ अग्नि ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे जलाकर भस्म कर सकता हूँ’। तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे जला’ । अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को जलाने में समर्थ न होकर वह लौट गया । वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका ।

तब उन्होंने ( देवताओं ने) वायु से कहा – ‘हे वायु ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । वायु ने कहा – ‘बहुत अच्छा’ । वायु यक्ष के समीप गया । उसने वायु से पूछा – ‘तू कौन है’ । वायु ने कहा – ‘मैं वायु हूँ, मैं ही मातरिश्वा हूँ’ । ‘ऐसे तुझ वायु में क्या सामर्थ्य है’ ? वायु ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे ग्रहण कर सकता हूँ’। तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे ग्रहण कर’ । अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को ग्रहण करने में समर्थ न होकर वह लौट गया । वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका ।

तब उन्होंने (देवताओं ने) इन्द्र से कहा – ‘हे मघवन् ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । इन्द्र ने कहा – ‘बहुत अच्छा’ । इंद्र खुद यक्ष के समीप गया । उसके सामने यक्ष (परब्रह्म) अन्तर्धान हो गए । वह इन्द्र उसी आकाश में अतिशय शोभायुक्त देवी हेमवती उमा (पार्वती) को देखा और उनके पास आ पहुँचा, और उनसे पूछा कि ‘यह यक्ष कौन था’ ॥ देवी पार्वती ने स्पष्ट कहा की– वह यक्ष ‘ब्रह्म है’ । ‘उस ब्रह्म की ही विजय में तुम इस प्रकार महिमान्वित हुए हो’ । तब से ही इन्द्र ने यह जाना कि ‘यह ब्रह्म है’ । इस प्रकार ये देव – जो कि अग्नि, वायु और इन्द्र हैं, अन्य देवों से श्रेष्ठ हुए । उन्होंने ही इस ब्रह्म का समीपस्थ स्पर्श किया और उन्होंने ही सबसे पहले देवी के द्वारा जाना कि ‘यह ब्रह्म है’। इसी प्रकार इन्द्र अन्य सभी देवों से अति श्रेष्ठ हुआ । उसने ही इस ब्रह्म का सबसे समीपस्थ स्पर्श किया । उसने ही सबसे पहले जाना कि ‘यह ब्रह्म है’॥[21]

इसके अलावा और भी कई उपनिषदों में देवी पार्वती का वर्णन मिलता है जहाँ देवी कुछ अलग नाम से भी जानी जाती है।

पूर्वजन्म की कथा

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पार्वती पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं तथा उस जन्म में भी वे भगवान शंकर की ही पत्नी थीं। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में, अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण, स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर दिया था। भगवान शंकर को जब ये बात पता चली तो उन्होंने वीरभद्र के रूप में दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया। भगवान शिव सती के शव को लेकर तांडव करने लगे। उसी समय भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के इक्यावन भाग कर दिया। जहां जहां माता सती के ये ये अंग गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। अगले जन्म में माता सती पार्वती बनकर हिमनरेश हिमवान के घर अवतरित हुईं।

पार्वती की तपस्या

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उमा की शिव पूजा

पार्वती को भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये वन में तपस्या करने चली गईं। अनेक वर्षों तक कठोर उपवास करके घोर तपस्या की तत्पश्चात वैरागी भगवान शिव ने उनसे विवाह करना स्वीकार किया।

पार्वती की परीक्षा

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भगवान शंकर ने पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेने के लिये सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। उन्होंने पार्वती के पास जाकर उसे यह समझाने के अनेक प्रयत्न किये कि शिव जी औघड़, अमंगल वेषधारी और जटाधारी हैं और वे तुम्हारे लिये उपयुक्त वर नहीं हैं। उनके साथ विवाह करके तुम्हें सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। किन्तु पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रहीं। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्हें सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद देकर शिव जी के पास वापस आ गये। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुन कर भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न हुये।

सप्तऋषियों ने शिव जी और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया।

शिव जी के साथ विवाह

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देवी पार्वती का शिव के साथ विवाह की कलाकृति

निश्चित दिन शिव जी बारात ले कर हिमालय के घर आये। वे बैल पर सवार थे। उनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में डमरू था। उनकी बारात में समस्त देवताओं के साथ उनके गण भूत, प्रेत, पिशाच आदि भी थे। सारे बाराती नाच गा रहे थे। सारे संसार को प्रसन्न करने वाली भगवान शिव की बारात अत्यंत मन मोहक थी, ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह समारोह शुरू हो गया।[22] शिव और पार्वती का विवाह उत्तराखंड के त्रियुगीनारायण में हुआ जहां नारायण ने पार्वती का भाई बनकर सभी रीति रिवाज निभाये और ब्रह्मा इस विवाह के पुरोहित बने। आज भी त्रियुगीनारायण मंदिर में वो अखंड अग्नि कुंड लगातार प्रज्वलित है। इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो गया और पार्वती को साथ ले कर शिव जी अपने धाम कैलाश पर्वत पर सुख पूर्वक रहने लगे।

देवी पार्वती को समर्पित त्यौहार

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  • हरतालिका तीज

हरतालिका तीज को हरतालिका व्रत या तीजा भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है।

सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।


  • नवरात्रि

पार्वती की श्रद्धा में एक और लोकप्रिय त्योहार नवरात्रि है, जिसमें नौ दिनों तक उनकी सभी रूपो की पूजा की जाती है। पूर्वी भारत में विशेष रूप से बंगाल, ओडिशा, झारखंड और असम के साथ-साथ भारत के कई अन्य हिस्सों जैसे कि गुजरात में उनके नौ रूप यानी शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।[23]

और भी कई स्थानीय त्यौहार है जो देवी पार्वती को समर्पित है।

प्रमुख मंदिर

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पार्वती अक्सर शिव के साथ पूरे दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के शिव मंदिरों में मौजूद रहती हैं। कुछ स्थान जैसे शक्ति पीठ को उनके ऐतिहासिक महत्व और हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में उनकी उत्पत्ति के बारे में बताया गया है और विशेष माना गया है।[24]

 
कामाख्या शक्तिपीठ मंदिर, असम
  • 51 शक्तिपीठ के नाम
क्रम सं० स्थान अंग या आभूषण शक्ति भैरव
1 हिंगुल या हिंगलाज, कराची, पाकिस्तान से लगभग 125 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व में ब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग) कोट्टरी भीमलोचन
2 शर्कररे, कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के निकट, इसके अलावा नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर, हि.प्र. भी बताया जाता है। आँख महिष मर्दिनी क्रोधीश
3 सुगंध, बांग्लादेश में शिकारपुर, बरिसल से 20 कि॰मी॰ दूर सोंध नदी तीरे नासिका सुनंदा त्रयंबक
4 अमरनाथ, पहलगाँव, काश्मीर गला महामाया त्रिसंध्येश्वर
5 ज्वाला जी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश जीभ सिधिदा (अंबिका) उन्मत्त भैरव
6 जालंधर, पंजाब में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब बांया वक्ष त्रिपुरमालिनी भीषण
7 अम्बाजी मंदिर, गुजरात हृदय अम्बाजी बटुक भैरव
8 गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल, निकट पशुपतिनाथ मंदिर दोनों घुटने महाशिरा कपाली
9 मानस, कैलाश पर्वत, मानसरोवर, तिब्बत के निकट एक पाषाण शिला दायां हाथ दाक्षायनी अमर
10 बिराज, उत्कल, उड़ीसा नाभि विमला जगन्नाथ
11 गण्डकी नदी नदी के तट पर, पोखरा, नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर मस्तक गंडकी चंडी चक्रपाणि
12 बाहुल, अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल से 8 कि॰मी॰ बायां हाथ देवी बाहुला भीरुक
13 उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल 16 कि॰मी॰ दायीं कलाई मंगल चंद्रिका कपिलांबर
14 माताबाढ़ी पर्वत शिखर, निकट राधाकिशोरपुर गाँव, उदरपुर, त्रिपुरा दायां पैर त्रिपुर सुंदरी त्रिपुरेश
15 छत्राल, चंद्रनाथ पर्वत शिखर, निकट सीताकुण्ड स्टेशन, चिट्टागौंग जिला, बांग्लादेश दांयी भुजा भवानी चंद्रशेखर
16 त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गाँव, बोडा मंडल, जलपाइगुड़ी जिला, पश्चिम बंगाल बायां पैर भ्रामरी अंबर
17 कामगिरि, कामाख्या, नीलांचल पर्वत, गुवाहाटी, असम योनि कामाख्या उमानंद
18 जुगाड़्या, खीरग्राम, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल दायें पैर का बड़ा अंगूठा जुगाड्या क्षीर खंडक
19 कालीपीठ, कालीघाट, कोलकाता दायें पैर का अंगूठा कालिका नकुलीश
20 प्रयाग, संगम, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश हाथ की अंगुली ललिता भव
21 जयंती, कालाजोर भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला, बांग्लादेश बायीं जंघा जयंती क्रमादीश्वर
22 किरीट, किरीटकोण ग्राम, लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन, मुर्शीदाबाद जिला, पश्चिम बंगाल से 3 कि॰मी॰ दूर मुकुट विमला सांवर्त
23 मणिकर्णिका घाट, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश मणिकर्णिका विशालाक्षी एवं मणिकर्णी काल भैरव
24 कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर, कुमारी मंदिर, तमिल नाडु पीठ श्रवणी निमिष
25 कुरुक्षेत्र, हरियाणा एड़ी सावित्री स्थाणु
26 मणिबंध, गायत्री पर्वत, निकट पुष्कर, अजमेर, राजस्थान दो पहुंचियां गायत्री सर्वानंद
27 श्री शैल, जैनपुर गाँव, 3 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व सिल्हैट टाउन, बांग्लादेश गला महालक्ष्मी शंभरानंद
28 कांची, कोपई नदी तट पर, 4 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व बोलापुर स्टेशन, बीरभुम जिला, पश्चिम बंगाल अस्थि देवगर्भ रुरु
29 कमलाधव, शोन नदी तट पर एक गुफा में, अमरकंटक, मध्य प्रदेश बायां नितंब काली असितांग
30 शोन्देश, अमरकंटक, नर्मदा के उद्गम पर, मध्य प्रदेश दायां नितंब नर्मदा भद्रसेन
31 रामगिरि, चित्रकूट, झांसी-माणिकपुर रेलवे लाइन पर, उत्तर प्रदेश दायां वक्ष शिवानी चंदा
32 वृंदावन, भूतेश्वर महादेव मंदिर, निकट मथुरा, उत्तर प्रदेश केश गुच्छ/
चूड़ामणि
उमा भूतेश
33 शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर, 11 कि॰मी॰ कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग, तमिल नाडु ऊपरी दाड़ नारायणी संहार
34 पंचसागर, अज्ञात निचला दाड़ वाराही महारुद्र
35 करतोयतत, भवानीपुर गांव, 28 कि॰मी॰ शेरपुर से, बागुरा स्टेशन, बांग्लादेश बायां पायल अर्पण वामन
36 श्री पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, अन्य मान्यता: श्रीशैलम, कुर्नूल जिला आंध्र प्रदेश दायां पायल श्री सुंदरी सुंदरानंद
37 विभाष, तामलुक, पूर्व मेदिनीपुर जिला, पश्चिम बंगाल बायीं एड़ी कपालिनी (भीमरूप) शर्वानंद
38 प्रभास, 4 कि॰मी॰ वेरावल स्टेशन, निकट सोमनाथ मंदिर, जूनागढ़ जिला, गुजरात आमाशय चंद्रभागा वक्रतुंड
39 भैरवपर्वत, भैरव पर्वत, क्षिप्रा नदी तट, उज्जयिनी, मध्य प्रदेश ऊपरी ओष्ठ अवंति लंबकर्ण
40 जनस्थान, गोदावरी नदी घाटी, नासिक, महाराष्ट्र ठोड़ी भ्रामरी विकृताक्ष
41 सर्वशैल/गोदावरीतीर, कोटिलिंगेश्वर मंदिर, गोदावरी नदी तीरे, राजमहेंद्री, आंध्र प्रदेश गाल राकिनी/
विश्वेश्वरी
वत्सनाभ/
दंडपाणि
42 बिरात, निकट भरतपुर, राजस्थान बायें पैर की अंगुली अंबिका अमृतेश्वर
43 रत्नावली, रत्नाकर नदी तीरे, खानाकुल-कृष्णानगर, हुगली जिला पश्चिम बंगाल दायां स्कंध कुमारी शिवा
44 मिथिला, जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट, भारत-नेपाल सीमा पर बायां स्कंध उमा महोदर
45 नलहाटी, नलहाटि स्टेशन के निकट, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल पैर की हड्डी कलिका देवी योगेश
46 कर्नाट, अज्ञात दोनों कान जयदुर्गा अभिरु
47 वक्रेश्वर, पापहर नदी तीरे, 7 कि॰मी॰ दुबराजपुर स्टेशन, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल भ्रूमध्य महिषमर्दिनी वक्रनाथ
48 यशोर, ईश्वरीपुर, खुलना जिला, बांग्लादेश हाथ एवं पैर यशोरेश्वरी चंदा
49 अट्टहास, 2 कि॰मी॰ लाभपुर स्टेशन, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल ओष्ठ फुल्लरा विश्वेश
50 नंदीपुर, चारदीवारी में बरगद वृक्ष, सैंथिया रेलवे स्टेशन, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल गले का हार नंदिनी नंदिकेश्वर
51 लंका, स्थान अज्ञात, (एक मतानुसार, मंदिर ट्रिंकोमाली में है, पर पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है। एक स्तंभ शेष है। यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है) पायल इंद्रक्षी राक्षसेश्वर


देवी पार्वती भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर

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उमा या दुर्गा की मूर्ति के रूप में देवी पार्वती दक्षिण पूर्व एशिया में पाई गई हैं। 8वीं शताब्दी की पार्वती कम्बोडिया (बाएं) और 14 वीं शताब्दी की पार्वती जावा (द्वीप),इंडोनेशिया

देवी पार्वती की प्रतिमा या मूर्तिकला, दक्षिण एशिया के मंदिरों और साहित्य में पाई गई हैं। उदाहरण के लिए, कम्बोडिया में खमेर के प्रारंभिक शैव शिलालेख, जो पांचवीं शताब्दी ईस्वी के आस पास के समय की है, उनमें पार्वती (उमा) और शिव का उल्लेख है। [25] कई प्राचीन और मध्यकालीन युग के कंबोडियन मंदिर, पत्थर की कला और नदी तल की नक्काशी पाई गई है जो पार्वती और शिव को समर्पित हैं। [26][27] बोइसेलियर ने वियतनाम में उमा के साक्ष्य की खोज चम्पा युग के मंदिरों में की है। [28] शिव के साथ पार्वती को उमा के रूप में समर्पित दर्जनों प्राचीन मंदिर इंडोनेशिया और मलेशिया के द्वीपों में पाए गए हैं। दुर्गा के रूप में पार्वती का अवतार दक्षिण-पूर्व एशिया में भी पाया गया है। [29]जावा (द्वीप) में कई मंदिर शिव-पार्वती को समर्पित हैं जो पहली सहस्राब्दी ईस्वी की दूसरी छमाही से हैं और कुछ बाद की शताब्दियों के। [30] माँ दुर्गा के चिह्न और पूजा के साक्ष्य 10 वीं से 13 वीं शताब्दी के बीच की मिली है। [31]

बाहरी कड़ियाँ

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उमा संहिता

  1. H.V. Dehejia, Parvati: Goddess of Love, Mapin, ISBN 978-8185822594
  2. James Hendershot, Penance, Trafford, ISBN 978-1490716749, pp 78
  3. Suresh Chandra (1998), Encyclopedia of Hindu Gods and Goddesses, ISBN 978-8176250399, pp 245–246
  4. Frithjof Schuon (2003), Roots of the Human Condition, ISBN 978-0941532372, pp 32
  5. H.V. Dehejia, Parvati: Goddess of Love, Mapin, ISBN 978-8185822594, pp 11
  6. Edward Washburn Hopkins, Epic Mythology, p. 224, गूगल बुक्स पर, pp. 224–226
  7. William J. Wilkins, Uma – Parvati Archived 2016-04-10 at the वेबैक मशीन, Hindu Mythology – Vedic and Puranic, Thacker Spink London, pp 295
  8. name=Keller and Ruether (2006), Encyclopedia of Women and Religion in North America, Indiana University Press, ISBN 978-0253346858, pp 663
  9. Gopal, Madan (1990). K.S. Gautam (संपा॰). India through the ages. Publication Division, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India. पृ॰ 68.
  10. Kinsley pp. 142–143
  11. Kinsley p.36
  12. John Muir, Original Sanskrit Texts on the Origin and History of the People of India, p. 422, गूगल बुक्स पर, pp 422–436
  13. Kena Upanisad, III.1–-IV.3, cited in Müller and in Sarma, pp. xxix-xxx.
  14. Weber in Hindu Mythology, Vedic and Puranic By William J. Wilkins p.239
  15. Tate p.176
  16. Wilkins pp.247
  17. Harry Judge (1993), Devi, Oxford Illustrated Encyclopedia, Oxford University Press, pp 10
  18. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Kinsley p.46 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  19. Kennedy p.338
  20. Kinsley p.96
  21. https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6
  22. "जानिए भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह कथा". आज तक. अभिगमन तिथि 2020-12-22.
  23. S Gupta (2002), Festivals of India, ISBN 978-8124108697, pp 68–71
  24. Steven Leuthold (2011), Cross-Cultural Issues in Art: Frames for Understanding, Routledge, ISBN 978-0415578004, pp 142–143
  25. Sanderson, Alexis (2004), "The Saiva Religion among the Khmers, Part I.", Bulletin de Ecole frangaise d'Etreme-Orient, 90–91, pp 349–462
  26. Michael Tawa (2001), At Kbal Spean, Architectural Theory Review, Volume 6, Issue 1, pp 134–137
  27. Helen Jessup (2008), The rock shelter of Peuong Kumnu and Visnu Images on Phnom Kulen, Vol. 2, National University of Singapore Press, ISBN 978-9971694050, pp. 184–192
  28. Jean Boisselier (2002), "The Art of Champa", in Emmanuel Guillon (Editor) – Hindu-Buddhist Art in Vietnam: Treasures from Champa, Trumbull, p. 39
  29. Hariani Santiko (1997), The Goddess Durgā in the East-Javanese Period, Asian Folklore Studies, Vol. 56, No. 2 (1997), pp. 209–226
  30. R Ghose (1966), Saivism in Indonesia during the Hindu-Javanese period Archived 26 दिसम्बर 2014 at the वेबैक मशीन, Thesis, Department of History, University of Hong Kong
  31. Peter Levenda (2011), Tantric Temples: Eros and Magic in Java, ISBN 978-0892541690, pp 274