भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी
हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है।
भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा का उल्लेख नहीं है।[1][2] संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। {संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है।
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्यसंपादित करें
हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है। यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे-
- (१) प्रयोग करने वालों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
- (२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।
- (३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
- (४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
- (५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।
इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।
अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषासंपादित करें
- (१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- (२) खण्ड (१) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
- (३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि द्वारा
- (क) अंग्रेजी भाषा का, या
- (ख) अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।
अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देशसंपादित करें
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।
राजभाषा संकल्प, 1968संपादित करें
भारतीय संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) ने १९६८ में 'राजभाषा संकल्प' के नाम से निम्नलिखित संकल्प लिया-[3]
1. जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :
- यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जाएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी।
2. जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 22 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है , और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए :
- यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हो और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें।
3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :
- यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
4. और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए
- यह सभा संकल्प करती है कि-
- (क) कि उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्त्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत होगा; और
- (ख) कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी।
राजभाषा समितियाँसंपादित करें
- संसदीय राजभाषा समिति
- केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्यवन समिति
- नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
संसदीय राजभाषा समितिसंपादित करें
केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्यवन समितिसंपादित करें
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितिसंपादित करें
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग द्वारा नगर राजभाषा कार्यान्वय समितियों (नराकास) की व्यवस्था पूरे देश के विभिन्न स्थानों पर की गई है।
1. गठन : जहां 10 इस कार्यालय हों, नगर राजभाषा कार्यान्वयन यों का गठन किया जा सकता है । समिति का गठन राजभाषा विभाग के क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों से प्राप्त प्रस्तावों के पर भारत सरकार के सचिव(राजभाषा) की से किया जाता है ।
2. अध्यक्षता : इन यों की अध्यक्षता के कार्यालयों/उपक्रमों/बैंं के वरिष्ठतम अधिकारियों में किसी के की जाती है । अध्यक्ष को द्वारा नामित किया जाता है । नामित किए जाने से प्रस्तावित अध्यक्ष से समिति की अध्यक्षता प्राप्त की जाती है ।
3. सदस्यता : के कार्यालय/उपक्रम/बैंक इस के सदस्य होते हैं। उनके वरिष्ठतम अधिकारियों(प्रशासनिक प्रधानों) से यह की जाती है कि वे समिति की बैठकों में नियमित रूप से लें।
4. सदस्य-सचिव : के सचिवालय के समिति के अध्यक्ष अपने कार्यालय के किसी सदस्य कार्यालय से हिंदी उसकी से समिति का सदस्य-सचिव किया जाता है । अध्यक्ष की से समिति के कार्यकलाप सदस्य-सचिव द्वारा किए जाते हैं।
5. बैठकें : इन यों की वर्ष दो बैठकें आयोजित की जाती हैं । प्रत्येक समिति की बैठकें आयोजित करने रखा जाता है जिसमें प्रत्येक समिति की बैठक एक किया जाता है । इन बैठं के आयोजन संबंधी समिति के के समय दी जाती है निर्धारित महीनों में समिति को अपनी बैठकें करनी होती हैं।
6. प्रतिनिधित्व : इन समितियों की बैठकों में नगर विशेष में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों/उपक्रमों/बैंकों आदि के प्रशासनिक प्रधान भाग लेते हैं। राजभाषा विभाग (मुख्यालय) एवं इसके क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय के अधिकारी भी इन बैठकों में राजभाषा विभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। नगर स्थित केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद की शाखाओं में से किसी एक प्रतिनिधि एवं हिन्दी शिक्षण योजना के किसी एक अधिकारी को भी बैठक में आमन्त्रित किया जाता है।
7. उद्देश्य : के देश भर फैले हुए कार्यालयों/उपक्रमों में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने राजभाषा के कार्यान्वयन के आ रही कठिनाइयों को ने संयुक्त की आवश्यकता महसूस की गई वे मिल बैठकर सभी कार्यालय/उपक्रम/बैंक आदि कर सकें । फलतः राजभाषा कार्यान्वयन समितियों के का लिया गया। इन समितियों के गठन का उद्देश्य केंद्रीय सरकार के कार्यालयों/उपक्रमों/बैंकों आदि में राजभाषा नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा, इसे बढ़ावा और इसके मार्ग में आई कठिनाइयों को है।
राजभाषा हिन्दी की विकास-यात्रासंपादित करें
स्वतंत्रता पूर्वसंपादित करें
1833-86 : गुजराती के महान कवि श्री नर्मद (1833-86) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा।
1872 : आर्य समाज के संस्थापक महार्षि दयानंद सरस्वती जी कलकत्ता में केशवचन्द्र सेन से मिले तो उन्होने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि आप संस्कृत छोड़कर हिन्दी बोलना आरम्भ कर दें तो भारत का असीम कल्याण हो। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा हिन्दी हो गयी और शायद इसी कारण स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भाषा भी हिन्दी ही रखी। (देखें, आर्यसमाज की हिन्दी-सेवा)
1873: महेन्द्र भट्टाचार्य द्वारा हिन्दी में पदार्थ विज्ञान (material science) की रचना
१८७५ : सत्यार्थ प्रकाश की रचना। यह आर्यसमाज का आधार ग्रन्थ है और इसकी भाषा हिन्दी है।
1877 : श्रद्धाराम फिल्लौरी ने भाग्यवती नामक हिन्दी उपन्यास की रचना की।
1893 : काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना
1918 : मराठी भाषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से घोषित किया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी।
1918 : इंदौर में सम्पन्न आठवें हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था - मेरा यह मत है कि हिन्दी को ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करें। हिन्दी सब समझते हैं। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्त्तव्यपालन करना चाहिए।[4]
1918 : महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना
1930 का दशक : हिन्दी टाइपराइटर का विकास (शैलेन्द्र मेहता)
1935 : मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रूप में सी० राजगोपालाचारी ने हिन्दी शिक्षा को अनिवार्य कर दिया।
स्वतंत्रता के बादसंपादित करें
- 14.9.1949
संविधान सभा ने हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इस दिन को अब हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- 26.1.1950
संविधान लागू हुआ। तदनुसार उसमें किए गए भाषाई प्रावधान (अनुच्छेद 120, 210 तथा 343 से 351) लागू हुए।
- 1952
शिक्षा मंत्रालय द्वारा हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण ऐच्छिक तौर पर प्रारम्भ किया गया।
- 27.5.1952
राज्यपालों/उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा व भारतीय अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप के अतिरिक्त अंकों के देवनागरी स्वरूप का प्रयोग प्राधिकृत किया गया।
- जुलाई, 1955
हिन्दी शिक्षण योजना की स्थापना। केन्द्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों, संबद्ध व अधीनस्थ कर्मचारियों को सेवाकालीन प्रशिक्षण।
- 7.6.1955
बी.जी. खेर आयोग का गठन (संविधान के अनुच्छेद 344 (1) के अन्तर्गत)
- अक्तूबर,1955
गृह मंत्रालय के अन्तर्गत हिन्दी शिक्षण योजना प्रारम्भ की गई।
- 3.12.1955
संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के परन्तुक द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए संघ के कुछ कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का प्रयोग किए जाने के आदेश जारी किए गए।
- 31.7.1956
खेर आयोग की रिपोर्ट राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत की गई।
- 1957
खेर आयोग की रिपोर्ट पर विचार हेतु तत्कालीन गृह मंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत की अध्यक्षता में संसदीय समिति का गठन।
- 8.2.1959
संविधान के अनुच्छेद 344 (4) के अन्तर्गत संसदीय समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत की गई।
- सितम्बर, 1959
संसदीय समिति की रिपोर्ट पर संसद में बहस। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा आश्वावासन दिया गया कि अंग्रेजी को सह-भाषा के रूप में प्रयोग में लाए जाने हेतु कोई व्यावधान उत्पन्न नहीं किया जाएगा और न ही इसके लिए कोई समय-सीमा ही निर्धारित की जाएगी। भारत की सभी भाषाएं समान रूप से आदरणीय हैं और ये हमारी राष्ट्रभाषाएं हैं।[5]
- 1960
हिन्दी टंकण, हिन्दी आशुलिपि का अनिवार्य प्रशिक्षण आरम्भ किया गया।
- 27.4.1960
संसदीय समिति की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति के आदेश जारी किए गए जिनमें हिन्दी शब्दावलियों का निर्माण, संहिताओं व कार्यविधिक साहित्य का हिंदी अनुवाद, कर्मचारियों को हिंदी का प्रशिक्षण, हिंदी प्रचार, विधेयकों की भाषा, उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों की भाषा आदि मुद्दे हैं।
- 10.5.1963
अनुच्छेद 343(3) के प्रावधान व श्री जवाहर लाल नेहरू के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए राजभाषा अधिनियम बनाया गया। इसके अनुसार हिन्दी संघ की राजभाषा व अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप में प्रयोग में लाई गई।
- 5.9.1967
प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय हिन्दी समिति का गठन किया गया। यह समिति सरकार की राजभाषा नीति के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निदेश देने वाली सर्वोच्च समिति है। इस समिति में प्रधानमंत्री जी के अलावा नामित केन्द्रीय मंत्री, कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री, सांसद तथा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के विद्वान सदस्य के रूप में शामिल किए जाते हैं।
- 16.12.1967
संसद के दोनों सदनों द्वारा राजभाषा संकल्प पारित किया गया जिसमें हिन्दी के राजकीय प्रयोजनों हेतु उत्तरोत्तर प्रयोग के लिए अधिक गहन और व्यापक कार्यक्रम तैयार करने, प्रगति की समीक्षा के लिए वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने, हिन्दी के साथ-साथ 8वीं अनुसूची की अन्य भाषाओं के समन्वित विकास के लिए कार्यक्रम तैयार करने, त्रिभाषा सूत्र का अपनाये जाने, संघ सेवाओं के लिए भर्ती के समय हिन्दी व अंग्रेजी में से किसी एक के ज्ञान की आवश्यकता अपेक्षित होने तथा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उचित समय पर परीक्षा के लिए संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की बात कही गई है। (संकल्प 18.8,1968 को प्रकाशित हुआ)
- 1967
सिंधी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित की गई।
- 8.1.1968
राजभाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन किए गए। तदनुसार धारा 3 (4) में यह प्रावधान किया गया कि हिंदी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण संघ सरकार के कर्मचारी प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें तथा केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं हैं, उनका कोई अहित न हो। धारा 3 (5) के अनुसार संघ के राजकीय प्रयोजनों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए आवश्यक है कि सभी राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा (जिनकी राजभाषा हिंदी नहीं है) ऐसे संकल्प पारित किए जाएं तथा उन संकल्पों पर विचार करने के पश्चात अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त करने के लिए संसद के हरेक सदन द्वारा संकल्प पारित किया जाए।
- 1968
राजभाषा संकल्प 1968 में किए गए प्रावधान के अनुसार वर्ष 1968-69 से राजभाषा हिन्दी में कार्य करने के लिए विभिन्न मदों के लक्ष्य निर्धारित किए गए तथा इसके लिए वार्षिक कार्यक्रम तैयार किया गया।
- 1.3.1971
केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो का गठन।
- 1973
केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के दिल्ली स्थिति मुख्यालय में एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना।
- 1974
तीसरी श्रेणी के नीचे के कर्मचारियों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों तथा कार्य प्रभारित कर्मचारियों को छोड़कर केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के साथ-साथ केन्द्र सरकार के स्वामित्व एवं नियंत्रणाधीन निगमों, उपक्रमों, बैंकों आदि के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए हिन्दी भाषा, टंकण एवं आशुलिपि का अनिवार्य प्रशिक्षण।
- जून, 1975
राजभाषा से संबंधित संवैधानिक, विधिक उपबंधों के कार्यान्वयन हेतु राजभाषा विभाग का गठन किया गया।
- 1976
राजभाषा नियम बनाए गए।
- 1976
संसदीय राजभाषा समिति का गठन। तब से अब तक समिति ने अपनी रिपोर्ट के 8 भाग प्रस्तुत किए हैं जिनमें से प्रथम 7 पर राष्ट्रपति के आदेश जारी हो गए हैं। आठवें खण्ड में की गई संस्तुतियों पर मंत्रालयों व राज्य सरकारों की टिप्पणी प्राप्त की जा रही है।
- 1977
श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन विदेश मंत्री ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को हिंदी में संबोधित किया।
- 1981
केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का गठन किया गया।
- 25.10.1983
केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों, विभागों, सरकारी उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों में यांत्रिक और इलेक्ट्रानिक उपकरणों द्वारा हिन्दी में कार्य को बढ़ावा देने तथा उपलब्ध द्विभाषी उपकरणों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से राजभाषा विभाग में तकनीकी कक्ष की स्थापना की गई।
- 21.8.1985
केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान का गठन कर्मचारियों/अधिकारियों को हिन्दी भाषा, हिन्दी टंकण और हिन्दी आशुलिपि के पूर्णकालिक गहन प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए किया गया।
- 1986
कोठारी शिक्षा आयोग की रिपोर्ट। 1968 में पहले ही यह सिफारिश की जा चुकी थी कि भारत में शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएं होनी चाहिए। उच्च शिक्षा के माध्यम के संबंध में नई शिक्षा नीति (1986) के कार्यान्वयन - कार्यक्रम में कहा गया -
- स्कूल स्तर पर आधुनिक भारतीय भाषाएं पहले ही शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयुक्त हो रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि विश्वविद्यालय के स्तर पर भी इन्हें उत्तरोत्तर माध्यम के रूप में अपना लिया जाए। इसके लिए अपेक्षा यह है कि राज्य सरकारें, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से परामर्श करके, सभी विषयों में और सभी स्तरों पर शिक्षण माध्यम के रूप में उत्तरोत्तर आधुनिक भारतीय भाषाओं को अपनाएं।
- 1986-87
इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्रारम्भ किए गए।
- 9.10.1987
राजभाषा नियम, 1976 में संशोधन किए गए।
- 1988
विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली में तत्कालीन विदेश मंत्री श्री नरसिंह राव जी हिंदी में बोले।
- 1992
कोंकणी, मणिपुरी व नेपाली भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित की गई।
- 14.9.1999
संघ की राजभाषा हिंदी की स्वर्ण जयंती मनाई गई।
- 20.10.2000
राष्ट्रीय ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार वर्ष 2001-02 से आरंभ करने की घोषणा की गई जिसमें निम्न पुरस्कार राशियां हैं :-
- (1) प्रथम प्ररस्कार - 100000 रुपये
- (2) द्वितीय प्ररस्कार - 75000 रुपये
- (3) तृतीय पुरस्कार - 50000 रुपये
- (4) 10 सांत्वना पुरस्कार - 100000 रुपये
- 2.9.2003
डॉ॰ सीता कान्त महापात्र की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जो संविधान की आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को सम्मिलित किए जाने तथा आठवीं अनुसूची में सभी भाषाओं को संघ की राजभाषा घोषित किए जाने की साध्यता परखने पर विचार करेगी। समिति ने 14.6.2004 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की।
- 11.9.2003
मंत्रिमंडल ने एन.डी.ए. तथा सी.डी.एस. की परीक्षाओं में प्रश्न पत्रों को हिंदी में भी तैयार करने का निर्णय लिया।
- 14.9.2003
कंप्यूटर की सहायता से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए राजभाषा विभाग ने कंप्यूटर प्रोग्राम (लीला हिंदी प्रबोध, लीला हिंदी प्रवीण, लीला हिंदी प्राज्ञ) तैयार करवा कर सर्व साधारण द्वारा उसका निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया है।
- 8.1.2004
बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा गया।
- 22.7.2004
केन्द्रीय सरकार की राजभाषा नीति के अनुपालन/कार्यान्वयन के लिए न्यूनतम हिन्दी पदों के मानक पुनः निर्धारित।
- 6.9.2004
मातृभाषा विकास परिषद् द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह पाया कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के गठन का उद्देश्य हिंदी एवं अन्य आधुनिक भाषाओं के लिए तकनीकी शब्दावली में एकरूपता अपनाया जाना है। यह एकरूपता तकनीकी शब्दावली के प्रयोग के लिए आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय ने निदेश दिया कि आयोग द्वारा बनाई गई तकनीकी शब्दावली भारत सरकार के अंतर्गत एन.सी.ई.आर.टी तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं द्वारा तैयार की जा रही पाठय पुस्तकों में प्रयोग में लाई जाए।
- 14.9.2004
कंप्यूटर की सहायता से तमिल, तेलुगु, मलयालम तथा कन्नड़ भाषाओं के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करवा कर उसके निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
- 20.6.2005
525 हिंदी फोंट, फोंट कोड कनवर्टर, अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश, हिंदी स्पेल चेकर को निशुल्क प्रयोग के लिए वेब साइट पर उपलब्ध करा दिया गया।
- 8.8.2005
'राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तकलेखन पुरस्कार' का नाम बदल कर 'राजीव गांधी राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तकलेखन पुरस्कार' कर दिया गया तथा पुरस्कार राशि बढ़ा कर निम्न प्रकार कर दी गई :-
- प्रथम पुरस्कार - रू० 2 लाख
- द्वितीय पुरस्कार - रू० 1.25 लाख
- तृतीय पुरस्कार - रू० 0.75 लाख
- सांत्वना पुरस्कार (10) - प्रत्येक को 10 हजार रूपए
- 14.9.2005
कंप्यूटर की सहायता से बांगला भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया गया।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर प्रशासनिक एवं वित्तिय क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
- 14.9.2006
कंप्यूटर की सहायता से उड़िया, असमी, मणिपुरी तथा मराठी भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर लघु उद्योग एवं कृषि क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
- 14.9.2007
कंप्यूटर की सहायता से नेपाली, पंजाबी, कश्मीरी तथा गुजराती भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर सूचना-प्रौद्योगिकी एवं स्वास्थ्य सुरक्षा क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
श्रुतलेखन-राजभाषा (हिंदी स्पीच से हिंदी टेक्सट) अंतिम वर्जन जन-प्रयोग के लिए मार्किट में बिक्री के लिए उपलब्ध है।
- अप्रैल, २०१७
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 'संसदीय राजभाषा समिति' की इस सिफारिश को 'स्वीकार' कर लिया कि राष्ट्रपति और ऐसे सभी मंत्रियों और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देना चाहिए और बयान जारी करने चाहिए, जो हिंदी पढ़ और बोल सकते हों। इस समिति ने हिंदी को और लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर 6 साल पहले 117 सिफारिशें दी थीं।[6]
- मई, २०१८
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने हिन्दी माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा की अनुमति दी।[7]
- १७ जुलाई, २०१९
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने सभी निर्णयों का हिन्दी या अन्य पाँच भारतीय भाषाओं (असमिया, कन्नड, मराठी, ओडिया एवं तेलुगु ) में अनुवाद प्रदान करना आरम्भ किया।
सन्दर्भसंपादित करें
- ↑ Khan, Saeed (25 January 2010). "There's no national language in India: Gujarat High Court". The Times of India. Ahmedabad: The Times Group. मूल से 18 March 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 May 2014.
- ↑ "Hindi, not a national language: Court". The Hindu. Ahmedabad: Press Trust of India. 25 January 2010. मूल से 4 July 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2014.
- ↑ राजभाषा संकल्प, 1968
- ↑ महात्मा गांधी ने इन्दौर में देखा था हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का सपना
- ↑ सरकारी काम से हिन्दी को मिटाने में थी नेहरू की सबसे अग्रणी भूमिका (हिन्दी मिडिया डॉट इन)
- ↑ आधिकारिक भाषाओं पर संसदीय समिति की सिफारिश राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वीकार की
- ↑ अब हिन्दी में भी होगी इंजीनियरिंग की पढ़ाई, एआईसीटीई की पहल पर सरकार ने दी हरी झंडी
इन्हें भी देखेंसंपादित करें
बाहरी कड़ियाँसंपादित करें
- राजभाषा हिंदी के संदर्भ में घटनाक्रम
- संघ की राजभाषा के संदर्भ में घटनाक्रम
- हिन्दी राजभाषा सम्बन्धी प्रमुख बातें
- राजभाषा सम्बन्धी संवैधानिक उपबंध
- राष्ट्रभाषा से राजभाषा की यात्रा में हिंदी
- राजभाषा - संवैधानिक/वैधानिक प्रावधान
- राजभाषा हिन्दी: दशा एवं दिशा (प्रोफेसर महावीर सरन जैन)
- राजभाषा हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी)
- राजभाषा हिन्दी : विवेचना और प्रयुक्ति (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ किशोर वासवानी)
- राजभाषा सहायिका (गूगल पुस्तक ; लेखक - अवधेश मोहन गुप्त)
- हिन्दी की भूमिकाएँ (गूगल पुस्तक)
- राजभाषा हिन्दी और उसका विकास (गूगल पुस्तक ; डॉ हीरालाल बछोतिया)
- भारत सरकार का राजभाषा विभाग
- संसदीय राजभाषा समिति
- राजभाषा नीति पर प्रश्न एवं उत्तर (बंगलुरू नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति)
- हमारी हिंदी पर यह एतराज क्यों? -रमेश नैयर