भारतीय रेल पत्रिका रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा प्रकाशित मासिक हिंदीपत्रिका है। इस पत्रिका का पहला अंक १५ अगस्त१९६० को प्रकाशित हुआ था और इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। इस पत्रिका का उद्देश्य भारतीय रेलवे में कार्यरत लोगों में साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाना, लेखकों को प्रोत्साहित करना, भारतीय रेल से संबंधित जानकारी और सूचनाओं का प्रकाशन करना तथा हिंदी का विकास करना था। इस वर्ष २००९ में यह पत्रिका अपनी गौरवशाली यात्रा के स्वर्ण जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है। बीते पांच दशकों में इस पत्रिका ने रेल कर्मियों के साथ अन्य पाठक वर्ग में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की है। इसकी साज-सज्जा, विषय सामग्री और मुद्रण में भी निखार आया है। इसके पाठकों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। रेलों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है। विस्तार से पढ़ें...
शंकर अन्तर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालयनई दिल्ली में स्थित है। इस संग्रहालय की स्थापना मशहूर कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई-(१९०२-१९८९) ने की थी। यहाँ विभिन्न परिधानों में सजी गुड़ियों का संग्रह विश्व के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है। यह संग्रहालय बहादुर शाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट के भवन में स्थित है। इस गुड़िया घर के निर्माण के पीछे एक रोचक घटना है। जवाहरलाल नेहरू जब देश के प्रधानमंत्री थे तो देश के प्रसिद्ध कार्टूनिष्ट के० शंकर पिल्लै उनके साथ जाने वाले पत्रकारों के दल के सदस्य थे। वे हर विदेश यात्रा में नेहरू जी के साथ जाया करते थे। कार्टूनिष्ट के० शंकर पिल्लै की रुचि गुड़ियों में थी। वे प्रत्येक देश की तरह-तरह की गुड़ियाँ एकत्र किया करते थे। धीरे-धीरे उनके पास ५०० तरह की गुड़ियाँ इकट्ठी हो गईं। वे चाहते थे कि इन गुड़ियों को देश भर के बच्चे देखें। उन्होंने जगह-जगह अपने कार्टूनों की प्रदर्शनी के साथ-साथ इन गुड़ियों की भी प्रदर्शनी लगाई। विस्तार से पढ़ें...
तितलीकीट वर्ग का एक प्रचलित तथा लोकप्रिय प्राणी है जो बहुत सुन्दर तथा आकर्षक होती है। दिन के समय जब यह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती है और मधुपान करती है तब इसके रंग-बिरंगे पंख बाहर दिखाई पड़ते हैं। इसके शरीर के मुख्य तीन भाग हैं सिर, वक्ष तथा उदर। इनके दो जोड़ी पंख तथा तीन जोड़ी सन्धियुक्त पैर होते हैं अतः यह एक कीट है। इसके सिर पर एक जोड़ी संयुक्त आँखे होती हैं तथा मुँह में घड़ी के स्प्रिंग की तरह प्रोवोसिस नामक खोखली लम्बी सूँड़नुमा जीभ होती है जिससे यह फूलों का रस (नेक्टर) चूसती है। ये एन्टिना की मदद से किसी वस्तु एवं उसकी गंध का पता लगाती है। तितली एकलिंगी प्राणी है अर्थात नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं। मादा तितली अपने अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है। अण्डे से कुछ दिनों बाद एक छोटा-सा कीट निकलता है जिसे कैटरपिलर लार्वा कहा जाता है। विस्तार से पढ़ें...
मालाबार केरल राज्य मे अवस्थित पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम तट के समानांतर एक संकीर्ण तटवर्ती क्षेत्र है। जब स्वतंत्र भारत में छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर १ जुलाई, १९४९ को त्रावनकोर-कोचीन राज्य बना दिया गया, किंतु मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के तहत त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार को मिलाकर १ नवंबर, १९५६ को केरल राज्य बनाया गया। केरल के अधिकांश द्वीप जो त्रावणकोर-मालाबार राज्य में आते थे, अब एर्नाकुलम जिले में आते हैं। मालाबार क्षेत्र के अंतर्गत पर्वतों का अत्यधिक आर्द्र क्षेत्र आता है। वनीय वनस्पति में प्रचुर होने के साथ-साथ इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों, जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी, और चाय, रबड़ तथा काजू का उत्पादन किया जाता है। मालाबार क्षेत्र केरल का बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र माना जाता है। यहाँ उच्चकोटि के कागज का भी निर्माण होता है। विस्तार से पढ़ें...
रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए। आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरकउपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। विस्तार से पढ़ें...
खाद्य एवं कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है, जो कृषि उत्पादन, वानिकी और कृषि विपणन संबंधी शोध विषय का अध्ययन का कार्य तथा संबंधी ज्ञान और जानकारियों के आदान-प्रदान करता है। विकासशील देशों में कृषि के विकास में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। एफ़.ए.ओ विकासशील देशों को बदलती तकनीक जैसे कृषि, पर्यावरण, पोषक तत्व और खाद्य सुरक्षा के बारे में जानकारी देता है। इसकी स्थापना १६ अक्तूबर, १९४५ को हुई थी और इसका मुख्यालय रोम में स्थित है। वर्तमान में १९१ राष्ट्र इसके सदस्य हैं, जिसमें यूरोपियाई समुदाय एवं फैरो द्वीपसमूह भी सम्मिलित हैं, जो एसोसियेट सदस्य हैं। एफ.ए.ओ के प्रथम महानिदेशक ब्रिटेन के जॉन ओर थे। इसके वर्तमान महानिदेशक सेनेगल के जैक्स डियोफ हैं। इस संगठन के आठ विभाग हैं, प्रशासन एवं वित्त, आर्थिक और सामाजिक, फिशरीज, वानिकी, सामान्य विषय और सूचना, सतत विकास, कृषि और उपभोक्ता सुरक्षा और तकनीकी सहयोग हैं। एफएओ का आम वित्त-पोषण उसके सदस्यों द्वारा वहन किया जाता है। विस्तार में...
विष्णु प्रभाकर ( २१ जून१९१२-११ अप्रैल२००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक के रूप में विख्यात हुए। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विस्तार से पढ़ें
अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन या केन्द्र (संक्षेप में आईएसएस, अंग्रेज़ी: International Space Stationइंटर्नॅशनल् स्पेस् स्टेशन्, ISS) बाहरी अन्तरिक्ष में अनुसंधान सुविधा या शोध स्थल है जिसे पृथ्वी की निकटवर्ती कक्षा में स्थापित किया जा रहा है। इस परियोजना का आरंभ १९९८ में हुआ था और यह २०११ तक बन कर तैयार होगा। वर्तमान समय तक आईएसएस अब तक बनाया गया सबसे बड़ा मानव निर्मित उपग्रह होगा। आईएसएस कार्यक्रम विश्व की कई स्पेस एजेंसियों का संयुक्त उपक्रम है। इसे बनाने में संयुक्त राज्य की नासा के साथ रूस की रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी (आरकेए), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए), कनाडा की कनेडियन स्पेस एजेंसी (सीएसए) और यूरोपीय देशों की संयुक्त यूरोपीयन स्पेस एजेंसी (ईएसए) काम कर रही हैं। इनके अतिरिक्त ब्राजीलियन स्पेस एजेंसी (एईबी) भी कुछ अनुबंधों के साथ नासा के साथ कार्यरत है। इसी तरह इटालियन स्पेस एजेंसी (एएसआई) भी कुछ अलग अनुबंधों के साथ कार्यरत है। पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित होने के बाद आईएसएस को नंगी आंखों से देखा जा सकेगा। विस्तार से पढ़ें...
इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड (आईएमएफ) एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जो अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का काम करती है। यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक और तकनीक सहायता देती है। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने के साथ-साथ विकास को सुगम करने में सहायता करता है। इसका मुख्यालय वांशिगटन डी.सी, संयुक्त राज्य में है। इस संगठन के प्रबंध निदेशक डॉमनिक स्ट्रॉस है। आईएमएफ की विशेष मुद्रा एसडीआर (स्पेशल ड्राइंग राइट्स) है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त के लिए कुछ देशों की मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है, इसे एसडीआर कहते हैं। एसडीआर में यूरो, पाउंड, येन और डॉलर हैं। आईएमएफ की स्थापना १९४४ में की गई थी। विभिन्न देशों की सरकार के ४५ प्रतिनिधियों ने अमेरिका के ब्रिटेन बुड्स में बैठक कर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समझोते की रूपरेखा तैयार की। २७ दिसंबर, १९४५ को २९ देशों के समझोते पर हस्ताक्षर करने के बाद आईएमएफ की स्थापना हुई। आईएमएफ के कुल १८६ सदस्य देश हैं। विस्तार से पढ़ें...
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (अंग्रेज़ी:सर्वाइकल कैंसर) महिलाओं की एक बीमारी है। यह गर्भाशय में कोशिकाओं की अनियमित वृद्धि होने के कारण होती है। अधिकांश सर्वाइकल कैंसर के मामले फ्लैटंड और स्क्वैम्श कोशिकाओं की बढ़ोतरी के कारण होती है। शेष दस प्रतिशत मामले ग्लैंडुलर, म्युकस आदि के कारण होते हैं। सर्वाइकल कैंसर की कैंसर से पहले वाली स्थिति को डिस्प्लेसिया कहा जाता है। इस स्थिति में इसका सौ प्रतिशत इलाज संभव है। किंतु जब यह बीमारी कैंसर बन जाती है, तो इसे कार्कीनोमा कहा जाता है। ऐसे विषाणु के संक्रमण की वजह से, जिससे एचपीवी (ह्यूमन पेपीलोमा) हो जाए, तो इससे डिस्प्लेसिया और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे साथी, जिसने कई लोगों के संग संभोग किया हो; के साथ संभोग करने से इस कैंसर की संभावना बहुत बढ़ जाती है। जिन महिलाओं का तंत्रिका तंत्र कमजोर होता है, साथ ही जिन महिलाओं का अंग प्रत्यारोपण हुआ हो, उन्हें ये बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है। विस्तार से पढ़ें...
क्रेडिट कार्ड या उधार कार्ड एक छोटा प्लास्टिक कार्ड है, जो एक विशिष्ठ भुगतान प्रणाली के उपयोगकर्ताओं को जारी किए जाते है। इस कार्ड के द्वारा धारक इस वादे के साथ वस्तुएं और सेवायें खरीद सकते हैं कि, बाद मे वो इन वस्तुओं और सेवाओं का भुगतान करेगा। कार्ड का जारीकर्ता, कार्ड के द्वारा उपभोक्ता को उधार की सीमा देता है जिसके अन्तर्गत एक उपयोगकर्ता खरीदी हुई वस्तुओं के भुगतान के लिए पैसे प्राप्त कर सकता है, और नकद भी निकाल सकता है। क्रेडिट कार्ड आधुनिक युग में क्रेडिट कार्ड दैनिक आवश्यकता बन गया है। खरीदारी से लेकर कई जरूरी कार्यो में लोग क्रेडिट कार्ड का प्रयोग करते हैं, लेकिन एक तरफ जहां यह सुविधा कई अर्थों में लोगों के लिए लाभप्रद है, तो इसके कई नुकसान भी देखने में आ रहे हैं। आजकल कई क्रेडिट कार्ड कंपनियों ने मोबाइल फोन के जरिये भी क्रेडिट कार्ड का काम चलाने का प्रावधान किया है। उनके अनुसार ये लेनदेन पूरी तरह सुरक्षित है, और इसके लिए एक पिन संख्या की आवश्यकता होती है। विस्तार में...
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आधुनिक संचार तकनीक है, जिसके माध्यम से दो या इससे अधिक स्थानों से एक साथ ऑडियो-वीडियो माध्यम से कई लोग जुड़ सकते हैं। इसे वीडियो टेलीकॉन्फ्रेंस भी कहा जाता है। इसका प्रयोग खासकर किसी बैठक या सम्मेलन के लिए तब किया जाता है, जब कई लोग अलग-अलग स्थानों में बैठे हों। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग माध्यम से अभिलेखों और कम्प्यूटर पर चल रही सूचनाओं का आदान-प्रदान भी किया जा सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में वीडियो कैमरा या वेब कैम, कम्प्यूटर मॉनिटर, टेलीविजन या प्रोजेक्टर, माइक्रोफोन, लाउडस्पीकर और इंटरनेट की आवश्यकता होती है। जिन देशों में टेलीमेडिसिन और टेलीनर्सिग को मान्यता प्राप्त है, वहां लोग आपातकाल में नर्स और डॉक्टरों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं। यह सेवा आजकल भारत संचार निगम लिमिटेड ने अपनी ३-जी दूरभाष सेवा में भी देनी आरंभ की है। विस्तार में...
सेरेब्रल पाल्सी एक मानसिकरोग होता है। यह रोग विकसित होते मस्तिष्क की मोटर कंट्रोल सेंटर के खराब होने के कारण होता है। यह बीमारी मुख्यत: गर्भधारण (७५ प्रतिशत), बच्चे के जन्म के समय (लगभग ५ प्रतिशत) और तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को होती है। सेरेब्रल पाल्सी पर अभी शोध चल रहा है, क्योंकि वर्तमान उपलब्ध शोध सिर्फ पैडियाट्रिक रोगियों पर केन्द्रित है। इस बीमारी की वजह से संचार में समस्या, संवेदना, पूर्व धारणा, वस्तुओं को पहचानना और अन्य व्यवहारिक समस्याएं आती है। इस बीमारी के बारे में पहली बार अंग्रेजी सर्जन विलियम लिटिल ने १८६० में पता लगाया था। इस रोग के मुख्य कारणो में बच्चे के मस्तिष्क के विकास में व्यवधान आने या मस्तिष्क में चोट होते हैं। विस्तार में...
वर्तनी का अर्थ भाषा में किसी शब्द को वर्णों से व्यक्त करने की क्रिया को कहते हैं। हिंदी भाषा का पहला और बड़ा गुण ध्वन्यात्मकता है, जिससे इसमें उच्चरित ध्वनियों को व्यक्त करना बड़ा सरल है। हिंदी में वर्तनी की आवश्यकता काफी समय तक नहीं समझी गई; जबकि अंग्रेजी व उर्दू आदि अन्य कई भाषाओं में इसका महत्त्व था। किंतु क्षेत्रीय व आंचलिक उच्चारण के प्रभाव, अनेकरूपता, भ्रम, परंपरा के निर्वाह आदि के कारण जब यह लगा कि एक ही शब्द की कई वर्तनियाँ मिलती हैं तो इनको व्यक्त करने के लिए किसी सार्थक शब्द की तलाश हुई। इस कारण से मानकीकरण की आवश्यकता महसूस की गई। इस अर्थ में वर्तनी शब्द मान्य हो गया और केंद्रीय हिंदी निदेशालय, ने इस शब्द को मान्यता दी, एवं एकरूपता की दृष्टि से कुछ नियम भी स्थिर किए हैं। हिन्दी के, कई राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप भारत के भीतर, बाहर इसे सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके। तब शिक्षा मंत्रालय ने १९६१ में हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति द्वारा हिन्दी भाषा के मानकीकरण की सरकारी प्रक्रिया का प्रारंभ किया। इस सतत प्रक्रिया के मुख्य निर्देश तय हो चुके हैं जो भारत के सभी सरकारी कार्यालयों में प्रसारित किए गए हैं। इनका अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु भी संस्थान कार्यरत है। विस्तार में...
इन व्रिटो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) एक तकनीक है, जिसमें महिलाओं में कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी महिला के अंडाशय से अंडे को अलग कर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। विश्व में पहली बार इस प्रक्रिया का प्रयोग यूनाइटेड किंगडम में पैट्रिक स्टेपो और रॉबर्ट एडवर्डस ने किया था। और इससे जन्मे बच्चे लुईस ब्राउन ने २५ जुलाई, १९७८ को मैनचेस्टर में जन्म लिया। भारत में पहली बार डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया था। इनके द्वारा तैयार की गयी परखनली शिशु दुर्गा थी, जो विश्व की दूसरी परखनली शिशु थी। इस तकनीक द्वारा मनचाहे गुणों वाली संतान और बहुत से रोगों से जीवन पर्यन्त सुरक्षित संतान उत्पन्न करने के प्रयास भी जारी है। बहुत से प्रयास सफल भी हो चुके हैं। विस्तार में...
कार्बन काल-निर्धारण विधि का प्रयोग पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है। इसमें कार्बन-१२ एवं कार्बन-१४ के मध्य अनुपात निकाला जाता है। कार्बन के दो स्थिर अरेडियोधर्मीसमस्थानिक: कार्बन-१२ (12C), और कार्बन-१३ (१३C) होते हैं। इनके अलावा एक अस्थिर रेडियोधर्मीसमस्थानिक (१३C) के अंश भी पृथ्वी पर मिलते हैं। अर्थात कार्बन-१४ का एक निर्धारित मात्रा का नमूना ५७३० वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है। ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है। कार्बन के दूसरे समस्थाकनिकों का वायुमंडल से संपर्क विच्छेद और कार्बन-द्वि-ओषिद न बनने के कारण उनके आपस के अनुपात में अंतर हो जाता है। पृथ्वी में दबे कार्बन में उसके समस्थानिकों का अनुपात जानकर उसके दबने की आयु का पता लगभग शताब्दी में कर सकते हैं। विस्तार में...
इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीविजन (आईपीटीवी) में इंटरनेट, ब्रॉडबैंड की सहायता से टेलीविजन कार्यक्रम घरों तक पहुंचता है। इस प्रणाली में टेलीविजन के कार्यक्रम डीटीएच या केबल नेटवर्क के बजाय, कम्प्यूटर नेटवर्क में प्रयोग होने वाली टेक्नोलॉजी की सहायता से देखते हैं। वर्ष १९९४ में ए.बी.सी का वर्ल्ड न्यूज नाउ पहला टेलीविजन कार्यक्रम था, जिसे इंटरनेट पर प्रसारित किया गया था। १९९५ में इंटरनेट के लिए एक वीडियो उत्पाद तैयार किया गया, जिसका नाम आई.पी.टी.वी रखा गया था। लेकिन सबसे पहले यूनाइटेड किंगडम में टेलीविजन के कार्यक्रम इंटरनेट ब्रॉडबैंड की सहायता से प्रसारित किए गए और इस फॉर्मेट को भी आईपीटीवी नाम दिया गया। २० अगस्त, २००८ को भारत सरकार ने भी इसे मंजूरी दे दी है, व भारत के कई शहरों में ये सेवा चालू हो चुकी है। इस सेवा के भारत में वर्तमान प्रदाताओं में भारत संचार निगम लिमिटेड, महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड और भारती एयरटेल हैं। यह सेवा विश्व भर में बहुत से देशों में प्रचालन में है। विस्तार में...
नालंदा विश्वविद्यालयभारत के बिहार राज्य में पटना से ९० कि॰मी॰ दूर नालंदा शहर में स्थित एक प्राचीन विश्वविद्यालय था। देश विदेश से यहाँ विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। आज इसके केवल खंडहर देखे जा सकते हैं। नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ४५०-४७० ई. में गुप्त शासककुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सहयोग मिला। महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इसे केवल यहां के स्थासनीय शासक वंशों से ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी दान मिला था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व १२वीं शताब्दी तक बना रहा। इसके ऊपर पहला आघात हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया, व ११९९ में में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसको जला कर पूरी तरह समाप्त कर दिया। इस विश्वविद्यालय के बारे में माना जाता है कि यह विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था। इसमें करीब १०,००० छात्र एक साथ विद्या ग्रहण करते थे। यहां २००० शिक्षक छात्रों को पढ़ाते थे। विस्तार में...
आवर्त सारणी अथवा तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्वों को उनकी संगत विशेषताओं के साथ एक सारणी के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी मै ११७ ज्ञात तत्व सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री मेंडलीफ (सही उच्चारण- मेन्देलेयेव) ने सन १८६९ में आवर्त नियम प्रस्तुत किया। इसके अनुसार तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण उनके परमाणुभारों के आवर्तफलन होते हैं। अर्थात यदि तत्वों को परमाणु भार के वृद्धिक्रम में रखा जाय तो वो तत्व जिनके गुण समान होते हैं एक निश्चित अवधि के बाद आते हैं। मेंडलीव ने इस सारणी के सहारे तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आवर्ती होने के पहलू को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया। १८१५ से १९१३ तक इसमें बहुत से सुधार हुए ताकि नये आविष्कृत तत्वों को उचित स्थान दिया जा सके और सारणी नयी जानकारियों के अनुरूप हो। रसायन शास्त्रियों के लिये आवर्त सारणी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। विस्तार में...
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यंत पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया। विस्तार में...
कार्ब्युरेटर एक ऐसी यांत्रिक युक्ति है जो आन्तरिक दहन इंजन के लिये हवा और द्रव्य ईंधन को मिश्रित करती है। इसका आविष्कार कार्ल बेन्ज़ ने सन १८८५ के पहले किया था। बाद में १८८६ में इसे पेटेंट भी कराया गया।कार्ल बेन्ज़ मर्सिडीज़ बेन्ज़ के संस्थापक हैं। इसका अधिक विकास हंगरी के अभियांत्रिक जैनोर सोएन्स्का और डोनैट बैन्की ने १८९३ में किया था। बर्मिंघम, इंगलैंड के फ्रेड्रिक विलियम लैंकेस्टर ने कार्ब्युरेटर का परीक्षण कारों पर किया और १८९६ में उसने अपने भाई के साथ इंगलैंड की प्रथम पेट्रोल कार बनाई। इस कार में एक ही सिलिंडर ८ हॉर्स पावर (४ किलोवॉट) का अन्तर्दहन इंजन चेन ड्राइव के संग लगा था। अगले ही वर्ष उन्होंने इसे दो क्षैतिज विरोधक सिलिंडरों सहित नये कार्ब्युरेटर डिज़ाइन के साथ निकाला। इस प्रतिरूप ने वर्ष १९०० में १००० मील (१६०० कि.मी.) की दूरी निर्विघ्न तय की। विस्तार में...
परांठाभारतीयरोटी का विशिष्ट रूप है। यह उत्तर भारत में जितना लोकप्रिय है, लगभग उतना ही दक्षिण भारत में भी है, बस मूल फर्क ये है, कि जहां उत्तर में आटे का बनता है, वहीं दक्षिण में मैदा का बनता है। प्रतिदिन के उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीपीय नाश्ते में सबसे लोकप्रिय पदार्थ अगर कोई है तो वह परांठा ही है। इसे बनाने की जितनी विधियां हैं वैसे ही हिन्दी में इसके कई रूप प्रचलित हैं जैसे पराठा, परौठा, परावठा, परांठा और परांवठा। हां स्वास्थ्य की दृष्टि से ये अवश्य वसा से भरपूर होते हैं। परांठा लगभग रोटी की तरह ही बनाया जाता है, फर्क सिर्फ इसकी सिंकाई का है। रोटी को जहां तवे पर सेंकने के बाद सीधे आंच पर भी फुलाया जाता है वहीं परांठा सिर्फ तवे पर ही सेंका जाता है। रोटी को बनाने के बाद ऊपर से शुद्ध घी लगाया जा सकता है, वहीं परांठे को तवे पर सेंकते समय ही घी या तेल लगा कर सेंका जाता है। विस्तार में...
कुँवर नारायण का वाजश्रवा के बहाने अपने समकालीनों और परवर्तियों के काव्य संग्रहों के बीच एक अलग और विशिष्ट स्वाद देने वाला है जिसे प्रौढ़ विचारशील मन से ही महसूस किया जा सकता है। यह गहरी अंतदृष्टि से किये गये जीवन के उत्सव और हाहाकार का साक्षात्कार है। ऋग्वेद, उपनिषद और गीता की न जाने कितनी दार्शनिक अनुगूंजें हैं इसमें, जो कुछ सुनायी पड़ती हैं, कुछ नहीं सुनायी पड़तीं। अछोर अतीत है पीछे, अनंत अंधकार है आगे। बीच में अथाह जीवन है, जो केवल मानवों का नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि का है, और जो खंड में नहीं बल्कि अखंड काल की निरंतरता में प्रवहमान है। कुंवर नारायण के इस संग्रह में भी मृत्यु का गहरा बोध है। भले ही इसमें जीवन की ओर से मृत्यु को देखने की कोशिश है। यदि मृत्यु न होती तो जीवन को इस प्रकार देखने की आकांक्षा भी न होती। मृत्यु ही जीवन को अर्थ देती है और निरर्थक में भी अर्थ भरती है' यह कथन असंगत नहीं है। विस्तार से पढ़ें...
डा. पीतांम्बरदत्त बड़थ्वाल ( १३ दिसंबर, १९०१-२४ जुलाई, १९४४) हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे। उन्होंने अनुसंधान और खोज परंपरा का प्रवर्तन किया तथा आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास की परंपरा को आगे बढा़ते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की। उन्होंने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिये भाषा को अधिक सामर्थ्यवान बनाकर विकासोन्मुख शैली को सामने रखा। अपनी गंभीर अध्ययनशीलता और शोध प्रवृत्ति के कारण उन्होंने हिन्दी मे प्रथम डी. लिट. होने का गौरव प्राप्त किया। हिंन्दी साहित्य के फलक पर शोध प्रवृत्ति की प्रेरणा का प्रकाश बिखेरने वाले बड़थ्वालजी का जन्म तथा मृत्यु दोनो ही उत्तर प्रदेश के गढ़वाल क्षेत्र में लैंस डाउन अंचल के समीप पाली गाँव में हुए। बड़थ्वालजी ने अपनी साहित्यिक छवि के दर्शन बचपन में ही करा दिये थे। बाल्यकाल मे ही वे 'अंबर'नाम से कविताएँ लिखने लगे थे। विस्तार से पढ़ें...
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी १८९९ - १५ अक्तूबर १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल एकादशी संवत १९५५ तदनुसार २१ फरवरी सन १८९९ में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि २१ फरवरी १८९९ अंकित की गई है। उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे। विस्तार में...
भारतीय नौसेना पोत विराट (आई एन एस विराट) भारतीय नौसेना में सेंतौर श्रेणी का एक वायुयान वाहक पोत है। भारतीय सेना की अग्रिम पंक्ति (फ़्लेगशिप) का यह पोत लंबे समय से सेना की सेवा में है। १९९७ में भारतीय नौसेना पोत विक्रांत के सेवामुक्त कर दिए जाने के बाद इसी ने विक्रांत के रिक्त स्थान की पूर्ति की थी। इस समय यह हिंद महासागर में उपस्थित दो वायुयान वाहक पोतों में से एक है। इस पोत ने सन १९५९ रायल नेवी (ब्रिटिश नौसेना) के लिये कार्य करना शुरु किया एवं १९८५ तक वहां सक्रिय रहा। इस का प्रथम नाम एच एम एस हर्मस था। तदपश्चात १९८६ मे भारतीय नौसेना ने कई देशो के युद्ध पोतों की समीक्षा करने के बाद इसे रॉयल नेवी से खरीद लिया। इस सौदे के बाद इस पोत मे कई तकनीकी सुधार किये गए जिससे इसे अगले एक दशक तक कार्यशील रखा जा सके। ये तकनीकि सुधार एवं रखरखाव देवेनपोर्ट डॉकयार्ड पर हुए।......विस्तार में...
चमगादड़ आकाश में उड़ने वाला एक स्तनधारी प्राणी है, जो अपनी १००० से भी अधिक प्रजातियों के साथ स्तनधारियों के दूसरे सबसे बडे़ कुल का निर्माण करता है। ये पूर्ण रूप से निशाचर होते हैं और पेड़ों की डाली अथवा अँधेरीगुफाओं के अन्दर उल्टा लटके रहते हैं। इनको दो समूहों मे विभाजित किया जाता है, पहला समूह फलभक्षी बडे़ चमगादड़ का होता है, जो देख कर और सूंघ कर अपना भोजन ढूंढते हैं जबकि दूसरा समूह् कीटभक्षी छोटे चमगादड़ का होता है, जो प्रतिध्वनि द्वारा स्थिति निर्धारण विधि के द्वारा अपना भोजन तलाशते हैं। यह एकमात्र ऐसा स्तनधारी है जो उड़ सकता है तथा रात में भी उड़ सकता है। इसके अग्रबाहु पंख मे परिवर्तित हो गये हैं जो देखने में झिल्ली (पेटाजियम) के समान लगते हैं। त्वचा की यह झिल्ली गरदन से लेकर हाथ की अँगुलियों तथा शरीर के पार्श्वभाग से होती हुई पूँछ तक चली जाती है एवं पंख का निर्माण करती है। ......विस्तार में...
दशहरा (विजयदशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विनमास के शुक्लदशमी को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा पर निकलते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। विजयदशमी भगवान राम की विजय या दुर्गा पूजा के रूप में मनाएं, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्रपूजन की तिथि है, हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। यह पर्व दस प्रकार के पापों को काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। विस्तार में...
छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिले में सिंघनपुर नामक स्थान पर एक चित्रित शैलाश्रय स्थित है। यह शैलाश्रय दक्षिणाभिमुखी है और रायगढ़ से २० किलोमीटर पश्चिम में एक पहाड़ी पर वर्षों पूर्व प्रकृति द्वारा निर्मित है। मध्य दक्षिण पूर्वी रेलमार्ग के बिलासपुर झारसगुड़ा सेक्शन पर स्थित भूपदेवपुर नामक स्टेशन से यह स्थल दक्षिण में एक किलो मीटर की दूरी पर है। यह छत्तीसगढ़ में प्राप्त प्राचीन शैलचित्र युक्त शैलाश्रयों में से एक है, जिसकी तिथि लगभग ईसापूर्व ३० हज़ार वर्ष निर्धारित की गई है। इनकी खोज एंडरसन द्वारा १९१० के आसपास की गई थी। इंडिया पेंटिग्स १९१८ में तथा इन्साइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के १३वें अंक में रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के शैलचित्रों का प्रकाशन पहली बार हुआ था। तत्पश्चात श्री अमरनाथ दत्त ने 1923 से 1927 के मध्य रायगढ़ तथा समीपस्थ क्षेत्रों में शैल चित्रो का सर्वेक्षण किया. डॉ एन. घोष, डी. एच. गार्डन द्वारा इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। तत्पश्चात स्व. पंडित श्री लोचनप्रसाद पांडेय द्वारा भी शैलचित्रो के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करायी गई।......विस्तार में...
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (७ मार्च, १९११-४ अप्रैल, १९८७) को प्रतिभासम्पन्न कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देनेवाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म ७ मार्च १९११ को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एस.सी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर फरार हुए और १९३० ई. के अन्त में पकड़ लिए गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानीहाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।
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