हिन्दी
हिंदी या आधुनिक मानक हिंदी विश्व की एक प्रमुख भाषा है और भारत की एक राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर भारत में सह-आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। आधुनिक मानक हिंदी में संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी–फारसी शब्द कम हैं। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। भारत के संविधान में 'राष्ट्रभाषा' का कहीं उल्लेख या चर्चा नहीं है, इस दृष्टि से हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा है।[7][8] एथनोलॉग के अनुसार, हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।[9] विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।[10]
हिन्दी | |
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बोलने का स्थान |
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क्षेत्र | हिंदी पट्टी / क्षेत्र |
मातृभाषी वक्ता | 34.5 करोड़ (2024)[1] |
भाषा परिवार | |
लिपि | |
राजभाषा मान्यता | |
औपचारिक मान्यता | |
मान्य अल्पसंख्यक भाषा | |
नियंत्रक संस्था | केंद्रीय हिंदी निदेशालय[4] |
भाषा कोड | |
आइएसओ 639-1 | hi |
आइएसओ 639-2 | hin |
आइएसओ 639-3 | hin |
भाषावेधशाला | 59-AAF-qf |
![]() 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदी के मातृभाषा स्व-रिपोर्ट किए गए वक्ताओं का वितरण | |
![]() 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदी के मातृभाषा स्व-रिपोर्ट किए गए वक्ताओं का वितरण |
2011 में 57.1% भारतीय जनसंख्या हिंदी जानती है,[11] जिसमें से 43.63% भारतीय लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था।[12][13][14] इसके अतिरिक्त भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में 14.1 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, व्याकरण के आधार पर हिंदी के समान है, एवं दोनों ही हिंदुस्तानी भाषा की परस्पर-सुबोध्य रूप हैं। एक विशाल संख्या में लोग हिंदी और उर्दू दोनों को ही समझ सकते थे। भारत में हिंदी, विभिन्न भारतीय राज्यों की 14 आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग 1 अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी भारत में संपर्क भाषा का कार्य करती है [11][15] और कुछ हद तक पूरे भारत में सामान्यतः एक सरल रूप में समझी जाने वाली भाषा है। कभी-कभी 'हिंदी' शब्द का प्रयोग नौ भारतीय प्रदेशों के संदर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है और हिंदी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर (२०२० से) उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का।
हिंदी और इसकी बोलियाँ संपूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं।[16] फिजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात में भी हिंदी या इसकी मान्य बोलियों का उपयोग करने वाले लोगों की बड़ी संख्या मौजूद है।[17] फरवरी 2019 में अबू धाबी में हिंदी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली।[18][19][20]
'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिंदवी', 'दक्खिनी', 'रेख्ता' (रेख़ता), 'आर्यभाषा' (दयानंद सरस्वती), 'हिंदुस्तानी', 'खड़ी बोली',[21] 'भारती' आदि हिंदी के अन्य नाम हैं, जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखंडों में एवं विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। हिंदी, यूरोपीय भाषा-परिवार के अंदर आती है। ये हिंद ईरानी शाखा की हिंद आर्य उपशाखा के अंतर्गत वर्गीकृत है।
एथ्नोलॉग (2022, 25वाँ संस्करण) की रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हिंदी को प्रथम और द्वितीय भाषा के रूप में बोलने वाले लोगों की संख्या के आधार पर हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।[22] हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की गैर-आधिकारिक भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया गया है।[23]
नामोत्पत्ति
हिंदी शब्द का संबंध संस्कृत शब्द 'सिन्धु' (मानक हिंदी : सिंधु) से माना जाता है। 'सिंधु', सिंधु नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिंधु कहने लगे। यह सिंधु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिंदू’, हिंदी और फिर ‘हिंद’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिंद शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिंद+ईक) ‘हिंदीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिंद का’। यूनानी शब्द ‘इंडिका’ या लैटिन 'इंडेया' या अंग्रेजी शब्द ‘इंडिया’ आदि इस ‘हिंदीक’ के ही दूसरे रूप हैं। हिंदी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्दी’ के ‘जफरनामा’(1424) में मिलता है। प्रमुख उर्दू लेखक 19वीं सदी तक अपनी भाषा को हिंदी या हिंदवी ही कहते थे।[24]
प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने "हिंदी एवं उर्दू का अद्वैत" शीर्षक आलेख में हिंदी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' को 'ह्' की तरह बोला जाता था। जैसे संस्कृत शब्द 'असुर' का अवेस्ता में सजाति समकक्ष शब्द 'अहुर' था। अफगानिस्तान के बाद सिंधु नदी के इस पार हिंदुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फारसी साहित्य में भी 'हिंद', 'हिंदुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को विशेषण के रूप में 'हिंदीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिंद का' या 'हिंद से'। यही 'हिंदीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इंडिके', 'इंडिका', लैटिन में 'इंडेया' तथा अंग्रेजी में 'इंडिया' बन गया। दूसरा एक भावना के मुताबिक, अरबी هندية हिंदीया लफ्ज के साधारण लैटिनी कृत रूप है इंडिया India. जैसे Hindiyyah (मूल अरबी)> Hindia साधारणीकृत >India लैटिनीकृत. अरबी एवं फारसी साहित्य में भारत (हिंद) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'जुबान-ए-हिंदी' पद का उपयोग हुवा है। भारत आने के बाद अरबी-फारसी बोलने वालों ने 'जुबान-ए-हिंदी', 'हिंदी जुबान' अथवा 'हिंदी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया।
भाषायी उत्पत्ति और इतिहास
हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक सहस्र वर्ष पुराना माना गया है। हिंदी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ठ' से हिंदी का उद्भव स्वीकार करते हैं। [25] चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी हिंदी' नाम दिया।
अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिंदी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। 1000 ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ।
अपभ्रंश के संबंध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न हैं। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतः अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परंतु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है। प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गयी।
अंग्रेजी काल में भारतेंदु हरिश्चंद के समय हिंदी के विकास में एक नयी चेतना आयी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय महात्मा गाँधी सहित अनेक नेताओं ने भारतीय एकता के लिये हिंदी के विकास का समर्थन किया। काशी नागरी प्रचारिणी सभा और हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रयासों से हिंदी को एक नयी ऊँचाई मिली। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान निर्माताओं ने हिंदी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया। [26]
शैलियाँ
भाषाशास्त्र के अनुसार हिंदी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :
- मानक हिंदी - हिंदी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे 'शुद्ध हिंदी' भी कहते हैं। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।
- दक्षिणी हिन्दी - उर्दू-हिंदी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।
- रेख्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।
- उर्दू - हिंदी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।[27]
हिंदी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिंदुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिंदुस्तानी मानकीकृत हिंदी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिंदी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद 343, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिंदी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिंदी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिंदी है।
हिंदी एवं उर्दू
भाषाविद हिंदी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं। हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशतः संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, नस्तालिक लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर फारसी और अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है। हालाँकि व्याकरणिक रूप से उर्दू और हिंदी में कोई अंतर नहीं है परंतु कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अंतर है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फारसी और अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचनाएँ भी प्रयोग की जाती हैं। उर्दू और हिंदी खड़ीबोली की दो आधिकारिक शैलियाँ हैं।
मानकीकरण
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिंदी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :-
- हिंदी व्याकरण का मानकीकरण
- वर्तनी का मानकीकरण
- शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण
- वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयास
- यूनिकोड का विकास
बोलियाँ
हिंदी का क्षेत्र विशाल है तथा हिंदी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिंदी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिंदी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिंदी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के विरुद्ध भी उसका रचना संसार सचेत है।[28]
हिंदी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि। किंतु हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।
लिपि
हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी के नाम से भी जाना जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है।
शब्दावली
हिंदी शब्दावली में मुख्यतः चार वर्ग हैं।
- तत्सम शब्द – ये वे शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध, दंत (दन्त), मुख। (परंतु हिंदी में आने पर ऐसे शब्दों से विसर्ग का लोप हो जाता है जैसे संस्कृत 'नामः' हिंदी में केवल 'नाम' हो जाता है।[29])
- तद्भव शब्द – ये वे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें बहुत ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे आग, दूध, दाँत, मुँह।
- देशज शब्द – देशज का अर्थ है 'जो देश में ही उपजा या बना हो'। तो देशज शब्द का अर्थ हुआ जो न तो विदेशी भाषा का हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो न संस्कृत का हो, न संस्कृत-शब्द का अपभ्रंश हो। ऐसा शब्द किसी प्रदेश (क्षेत्र) के लोगों द्वारा बोल-चाल में यूँ ही बना लिया जाता है। जैसे खटिया, लुटिया।
- विदेशी शब्द – इसके अतिरिक्त हिंदी में कई शब्द अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि से भी आये हैं। इन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।
जिस हिंदी में अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्द लगभग पूर्ण रूप से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिंदी" या "मानकीकृत हिंदी" कहते हैं।
हिंदी स्वरविज्ञान
देवनागरी लिपि में हिंदी की ध्वनियाँ इस प्रकार हैं :
स्वर
ये स्वर आधुनिक हिंदी (खड़ीबोली) के लिये दिये गये हैं।
वर्णाक्षर | "प" के साथ मात्रा' | आईपीए उच्चारण | "प्" के साथ उच्चारण | ISO समतुल्य | अंग्रेजी समतुल्य | |
---|---|---|---|---|---|---|
अ | प | / ə / | / pə / | a | बीच का मध्य प्रसृत स्वर | |
आ | पा | / ɑ: / | / pɑ: / | ā | दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर | |
इ | पि | / ɪ / | / pɪ / | i | ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
ई | पी | / i: / | / pi: / | ī | दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
उ | पु | / ʊ / | / pʊ / | u | ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
ऊ | पू | / u: / | / pu: / | ū | दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
ए | पे | / e: / | / pe: / | e | दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
ऐ | पै | / ɛ: / | / pɛ: / | ai | दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर | |
ओ | पो | / ο: / | / pο: / | o | दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर | |
औ | पौ | / ɔ: / | / pɔ: / | au | दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर |
इसके अलावा हिंदी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी स्वर माने जाते हैं :
- ऋ — इसका उच्चारण संस्कृत में /r̩/ था मगर आधुनिक हिंदी में इसे /ɻɪ/ उच्चारित किया जाता है ।
- अं — पंचम वर्ण - ङ्, ञ्, ण्, न्, म् का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार)
- अँ — स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चंद्र बिंदु)
- अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए (विसर्ग)
व्यंजन
जब किसी स्वर प्रयोग ना हो तो वहाँ पर डिफॉल्ट रूप से 'अ' स्वर माना जाता है। स्वर के ना होना व्यंजन के नीचे हलंत् या विराम लगाके दर्शाया जाता है। जैसे क् /k/, ख् /kʰ/, ग् /g/ और घ् /gʱ/।
अल्पप्राण अघोष |
महाप्राण अघोष |
अल्पप्राण घोष |
महाप्राण घोष |
नासिक्य | |
---|---|---|---|---|---|
कंठ्य | क / kə / |
ख / khə / |
ग / gə / |
घ / gɦə / |
ङ / ŋə / |
तालव्य | च / tʃə / |
छ /tʃhə/ |
ज / dʒə / |
झ / dʒɦə / |
ञ / ɲə / |
मूर्धन्य | ट / ʈə / |
ठ / ʈhə / |
ड / ɖə / |
ढ / ɖɦə / |
ण / ɳə / |
दंत्य | त / t̪ə / |
थ / t̪hə / |
द / d̪ə / |
ध / d̪ɦə / |
न / nə / |
ओष्ठ्य | प / pə / |
फ / phə / |
ब / bə / |
भ / bɦə / |
म / mə / |
तालव्य | मूर्धन्य | दंत्य/ वर्त्स्य |
कंठोष्ठ्य/ काकल्य | |
---|---|---|---|---|
अंतस्थ | य / jə / |
र / rə / |
ल / lə / |
व / ʋə / |
ऊष्म/ संघर्षी |
श / ʃə / |
ष / ʂə / |
स / sə / |
ह / ɦə / |
- ध्यातव्य
- इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अंतस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिंदी में नहीं होता हैं। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है।
- संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा कुछ वाक्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। आधुनिक हिंदी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है।
- हिंदी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक जोरदार ठोकर मारती है। परंतु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है।
विदेशी ध्वनियाँ
ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होती हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी देवनागरी वर्ण के नीचे बिंदु (नुक्ता) लगाकर लिखे जाते हैं, परंतु उन्हीं शब्दों मे नुक्ता लगाया जाता है जो हिंदी में विदेशी शब्द माने जाते हैं और जिनका उच्चारण नुक्ते के बिना मूल भाषा के अनुरूप नहीं होता।
वर्णाक्षर (आईपीए उच्चारण) |
उदाहरण | वर्णन |
---|---|---|
क़ (/ q /) | क़त्ल | अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श |
ख़ (/ x /) | ख़ास | अघोष अलिजिह्वीय या कंठ्य संघर्षी |
ग़ (/ ɣ /) | ग़ैर | घोष अलिजिह्वीय या कंठ्य संघर्षी |
फ़ (/ f /) | फ़र्क | अघोष दंत्यौष्ठ्य संघर्षी |
ज़ (/ z /) | ज़ालिम | घोष वर्त्स्य संघर्षी |
व्याकरण
अन्य सभी भारतीय भाषाओं की तरह हिंदी में भी कर्ता-कर्म-क्रिया वाला वाक्यविन्यास है। हिंदी में दो लिंग होते हैं — पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। नपुंसक वस्तुओं का लिंग भाषा परंपरानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होता है। क्रिया के रूप कर्ता के लिंग पर निर्भर करता है। हिंदी में दो वचन होते हैं — एकवचन और बहुवचन। क्रिया वचन-से भी प्रभावित होती है। विशेषण विशेष्य-के पहले लगता है।
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जनसांख्यिकी
सन २०११ की भारतीय जनगणना के अनुसार भारत के 57.1% लोग हिंदी जानते हैं[11] तथा 43.63% लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा या मातृभाषा घोषित किया था।[31][32][33] भारत के बाहर, हिंदी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 8,63,077[34][35]; मॉरीशस में 6,85,170; दक्षिण अफ्रीका में 8,90,292; यमन में 2,32,760; युगांडा में 1,47,000; सिंगापुर में 5000; नेपाल में 8 लाख; जर्मनी में 30,000 हैं। न्यूजीलैंड में हिंदी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है।[36]
भारत में उपयोग
संपर्क भाषा
भिन्न-भिन्न भाषा-भाषियों के मध्य परस्पर विचार-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को संपर्क भाषा कहा जाता है। अपने राष्ट्रीय स्वरूप में ही हिंदी पूरे भारत की संपर्क भाषा बनी हुई है।[37] अपने सीमित रूप –प्रशासनिक भाषा के रूप – में हिंदी व्यवहार में भिन्न भाषाभाषियों के बीच परस्पर संप्रेषण का माध्यम बनी हुई है। संपूर्ण भारतवर्ष में बोली और समझी जाने वाली (बॉलीवुड के कारण) देशभाषा हिंदी है, यह राजभाषा भी है तथा सारे देश को जोड़ने वाली संपर्क भाषा भी।
राजभाषा
हिन्दी भारत की राजभाषा है। 14 सितंबर १९४९ को हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। भारत के स्वतंत्र होने के बहुत पहले और स्वतंत्रता आंदोलन के समय ही वह राष्ट्रभाषा की भूमिका का निर्वहन करने लगी थी। गाँधी जी कई मंचों पर बोल चुके थे कि भारत के स्वतंत्र होने पर हिंदी ही राष्ट्रभाषा होगी।
राष्ट्रभाषा
भारत की स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद भी बहुत से लोग हिंदी को 'राष्ट्रभाषा' कहते आये हैं (उदाहरणतः, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे आदि) किंतु भारतीय संविधान में 'राष्ट्रभाषा' का उल्लेख नहीं हुआ है और इस दृष्टि से हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने का कोई अर्थ नहीं है।
हिंदी को राष्ट्रभाषा कहने के एक हिमायती महात्मा गाँधी भी थे, जिन्होंने 29 मार्च 1918 को इंदौर में आठवें हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिंदी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। उन्होने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। [38] उन्होने तो यहाँ तक कहा था कि हिंदी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। आजाद हिंद फौज का राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन' भी "हिंदुस्तानी" में था। उनका अभियान गीत 'कदम कदम बढ़ाए जा' भी इसी भाषा में था, परंतु सुभाष चंद्र बोस हिंदुस्तानी भाषा के संस्कृतकरण के पक्षधर नहीं थे, अतः शुभ सुख चैन को जनगणमन के ही धुन पर, बिना कठिन संस्कृत शब्दावली के बनाया गया था।
पूर्वोत्तर भारत में
पूर्वोत्तर भारत में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं जिनकी अपनी-अपनी भाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। इनमें बोड़ो, कछारी, जयंतिया, कोच, त्रिपुरी, गारो, राभा, देउरी, दिमासा, रियांग, लालुंग, नागा, मिजो, त्रिपुरी, जामातिया, खासी, कार्बी, मिसिंग, निशी, आदी, आपातानी, इत्यादि प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर की भाषाओं में से केवल असमिया, बोड़ो और मणिपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला है। सभी राज्यों में हिंदी भाषा का प्रयोग अधिकांश प्रवासी हिंदी भाषियों द्वारा आपस में किया जाता है।[39]
पूर्वोत्तर में हिंदी का औपचारिक रूप से प्रवेश वर्ष 1934 में हुआ, जब महात्मा गाँधी 'अखिल भारतीय हरिजन सभा' की स्थापना हेतु असम आये। उस समय गड़मूड़ (माजुली) के सत्राधिकार (वैष्णव धर्मगुरू) एवं स्वतंत्रता सेनानी पीतांबर देव गोस्वमी के आग्रह पर गाँधी जी संतुष्ट होकर बाबा राघव दास को हिंदी प्रचारक के रूप में असम भेजा। वर्ष 1938 में असम हिंदी प्रचार समिति की स्थापना गुवाहाटी में हुई। यह समिति आगे चलकर असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति बनी। आम लोगों में हिंदी भाषा तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार करने हेतु- प्रबोध, विशारद, प्रवीण, आदि परीक्षाओं का आयोजन इस समिति के द्वारा होता आ रहा है।
पूर्वोत्तर भारत में हिंदी की स्थिति दिनों-दिन सबल होती जा रही है और यह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। आजकल अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिंदी बोली जाने लगी है। [40][41]हिंदी का प्रचार-प्रसार तथा उसकी लोकप्रियता एवं व्यावहारिकता टी. वी. (धारावाहिक, विज्ञापन), सिनेमा, आकाशवाणी, पत्रकारिता, विद्यालय, महाविद्यालय तथा उच्च शिक्षा में हिंदी भाषा के प्रयोग द्वारा बढ़ रही है।[42][43]
भारत के बाहर
सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिंदी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में 'सैंसस ऑफ इंडिया' का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रंथ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिंदी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिंदी भाषा से अधिक है किंतु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिंदी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिंदी की अपेक्षा अधिक है किंतु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है।
विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिंदी में विद्यमान हैं।[44] बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है।[45] हिंदी एशिया के व्यापारिक जगत में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है।[46] वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की माँग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ-एम' सहित अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
दिसंबर 2016 में विश्व आर्थिक मंच ने 10 सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी एक है।[10] इसी प्रकार 'कोर लैंग्वेजेज' नामक साइट ने 'दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषाओं'[47] में हिंदी को स्थान दिया था। के-इंटरनेशनल ने वर्ष 2017 के लिये सीखने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं[48] में हिंदी को स्थान दिया है।
हिंदी का एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने और विश्व हिंदी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से 11 फरवरी 2008 को विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिंदी में भी करना आरंभ किया है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाये जाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। अगस्त 2018 से संयुक्त राष्ट्र ने साप्ताहिक हिंदी समाचार बुलेटिन आरंभ किया है। [49]
डिजिटिकरण और कंप्यूटर क्रांति
कंप्यूटर और इंटरनेट ने पिछले वर्षों में विश्व में सूचना क्रांति ला दी है। आज कोई भी भाषा कंप्यूटर (तथा कंप्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नहीं रह सकती। कंप्यूटर के विकास के आरंभिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कंप्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिसके कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कंप्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नहीं कर सकता। किंतु यूनिकोड (Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी।[50] 19 अगस्त 2009 में गूगल ने कहा की हर 5 वर्षों में हिंदी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है।[51] इतना ही नहीं, अप्रैल २०२५ से भारत सरकार ने भारतीय भाषाओं में यू०आर०एल० (वेबसाइट पता) का प्रयोग शुरू किया है।[52]
आज हिंदी की इंटरनेट पर अच्छी उपस्थिति है। गूगल सहित लगभग सभी सर्च इंजन हिंदी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिंदी में किया जा सकता है।[53] फरवरी 2018 में एक सर्वेक्षण के हवाले से खबर आयी कि इंटरनेट की दुनिया में हिंदी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पछाड़ दिया है। यूथ4वर्क की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट ने इस आशा को सही साबित किया है कि जैसे-जैसे इंटरनेट का प्रसार छोटे शहरों की ओर बढ़ेगा, हिंदी और भारतीय भाषाओं की दुनिया का विस्तार होता जाएगा। [54]
इस समय हिंदी में सजाल (वेबसाइट), चिट्ठे (ब्लॉग), विपत्र (ईमेल), गपशप (चैट), खोज (वेब-सर्च), सरल मोबाइल संदेश (एसएमएस) तथा अन्य हिंदी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अंतरजाल पर हिंदी में संगणन (कंप्यूटिंग) के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कंप्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं।[55][56] लोगों में इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करते हुए अपना, हिंदी का और पूरे हिंदी समाज का विकास करें। शब्दनगरी जैसी नई सेवाओं का प्रयोग करके लोग अच्छे हिंदी साहित्य का लाभ अब इंटरनेट पर भी उठा सकते हैं।[57] [58] चैटजीपीटी और जेमिनी सहित प्रमुख कृत्रिम बुद्धिमान समग्री सर्जकों से हिंदी में प्रश्न पूछा जा सकता हैं और वे हिंदी में उत्तर भी देते हैं।
जनसंचार
मुंबई में स्थित "बॉलीवुड" हिंदी फिल्म उद्योग पर भारत के करोड़ों लोगों की धड़कनें टिकी रहती हैं। हर चलचित्र में कई गाने होते हैं। हिंदी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बंबईया हिंदी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों में प्रयुक्त होती हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं।
अब मोबाइल कंपनियाँ ऐसे हैंडसेट बना रही हैं जो हिंदी और भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हिंदी जानने वाले कर्मचारियों को वरीयता दे रही हैं। हॉलीवुड की फिल्में हिंदी में डब हो रही हैं और हिंदी फिल्में देश के बाहर देश से अधिक कमाई कर रही हैं। हिंदी, विज्ञापन उद्योग की पसंदीदा भाषा बनती जा रही है। गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स, गूगल असिस्टेंट आदि के क्षेत्र में नई नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है। हिंदी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। कृत्रिम बुद्धि के आज के युग में अधिकांश विशाल-भाषा-मॉडल (LLM) जैसे गूगल जेमिनी, चैटजीपीटी, डीपसीक आदि हिंदी लिखते बोलते और समझते हैं।
फेसबुक और व्हाट्सएप हिंदी और भारतीय भाषाओं के साथ तालमेल बिठा रहे हैं। सोशल मीडिया ने हिंदी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है और कई जनांदोलनों को जन्म देने और चुनाव जिताने-हराने में उल्लेखनीय और हैरान करने वाली भूमिका निभाई है। सितंबर 2018 में प्रकाशित हुई एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार हिंदी में ट्वीट करना अत्यन्त लोकप्रिय हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष सबसे अधिक पुनः ट्वीट किए गये 15 संदेशों में से 11 हिंदी के थे।[59] हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का बाजार इतना बड़ा है कि अनेक कंपनियाँ अपने उत्पाद और वेबसाइटें हिंदी और स्थानीय भाषाओं में ला रहीं हैं।[60][61] आजकल भारत के सभी प्रकार के विज्ञापनों की प्रमुख भाषा हिन्दी ही है।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
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- हिन्दी पर महापुरुषों के विचार
- हिंदी फ्रेजबुक (अंग्रेजी )
- दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ रहे हिंदी बोलने वाले, देश के 44 फीसदी लोगों की बनी भाषा (२०११ जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार)
- हिंदी भाषा एवं लिपि[मृत कड़ियाँ] (रघुवर सिंह)
- हिंदी विक्षनरी
- हिंदी विकिकोट
- हिंदी विकिपुस्तक
- हिंदी विकिस्रोत - हिंदी के कापीराइट-मुक्त पुस्तकों का संग्रह
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