सदस्य:Riteze/कृष्ण
कृष्ण | |
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करुणा, ज्ञान और प्रेम के ईश्वर [1][2] | |
श्री मारिमान मंदिर, सिंगापुर में श्री कृष्ण की प्रतिमा। | |
देवनागरी | कृष्ण |
संस्कृत लिप्यंतरण | कृष्णः |
तमिल लिपि | கிருஷ்ணா |
तमिल लिप्यंतरण | Kiruṣṇā |
कन्नड़ लिपि | ಕೃಷ್ಣ |
कन्नड़ लिप्यंतरण | Kr̥ṣṇa |
संबंध | स्वयं भगवान्, परमात्मन, गोप, विष्णु, राधा कृष्ण[3][4] |
निवासस्थान | गोलोक, वृंदावन, द्वारका, गोकुल, वैकुंठ |
अस्त्र | सुदर्शन चक्र |
युद्ध | कुरुक्षेत्र युद्ध |
जीवनसाथी | राधा, रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नग्नजित्ती, लक्ष्मणा, कालिंदी, भद्रा [5][note 1] |
माता-पिता | देवकी (माँ) और वसुदेव (पिता), यशोदा (पालक मां) और नंद बाबा (पालक पिता) |
भाई-बहन | बलराम, सुभद्रा |
शास्त्र | भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, भगवद् गीता, गीत गोविंद, गर्ग संहिता, हरिवंश |
त्यौहार | जन्माष्टमी, होली |
श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान हैं। वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं। कन्हैया, माधव, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगद्गुरु का सम्मान भी दिया जाता है।
कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। देवकी कंस की बहन थी। कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया। मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ। कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे।
बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया , उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है। इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया। 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।
नाम और उपशीर्षक
संपादित करें"कृष्ण" एक संस्कृत शब्द है, जो "काला", "अंधेरा" या "गहरा नीला" का समानार्थी है।[8] "अंधकार" शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहे जाने में भी स्पष्ट झलकता है।[8] इस नाम का अनुवाद कहीं-कहीं "अति-आकर्षक" के रूप में भी किया गया है।[9]
श्रीमदभागवत पुराण के वर्णन अनुसार कृष्ण जब बाल्यावस्था में थे तब नन्दबाबा के घर आचार्य गर्गाचार्य द्वारा उनका नामकरण संस्कार हुआ था। नाम रखते समय गर्गाचार्य ने बताया कि, 'यह पुत्र प्रत्येक युग में अवतार धारण करता है। कभी इसका वर्ण श्वेत, कभी लाल, कभी पीला होता है। पूर्व के प्रत्येक युगों में शरीर धारण करते हुए इसके तीन वर्ण हो चुके हैं। इस बार कृष्ण वर्ण का हुआ है, अतः इसका नाम कृष्ण होगा।'[10] वसुदेव का पुत्र होने के कारण उनको 'वासुदेव' कहा जाता है। "कृष्ण" नाम के अतिरिक्त भी उन्हें कई अन्य नामों से जाना जाता रहा है, जो उनकी कई विशेषताओं को दर्शाते हैं। सबसे व्यापक नामों में मोहन, गोविन्द, माधव,[11] और गोपाल प्रमुख हैं।[12][13]
चित्रण
संपादित करेंकृष्ण भारतीय संस्कृति में कई विधाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका चित्रण आमतौर पर विष्णु जैसे कृष्ण , काले या नीले रंग की त्वचा के साथ किया जाता है[14]। हालांकि, प्राचीन और मध्ययुगीन शिलालेख ,भारत और दक्षिणपूर्व एशिया दोनों में , और पत्थर की मूर्तियों में उन्हें प्राकृतिक रंग में चित्रित किया है, जिससे वह बनी है। कुछ ग्रंथों में, उनकी त्वचा को काव्य रूप से जांबुल (जामुन, बैंगनी रंग का फल) के रंग के रूप में वर्णित किया गया है।[15][16]
कृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है, और अक्सर बांसुरी (भारतीय बांसुरी) बजाते हुए उनका चित्रण हुआ है। इस रूप में, आम तौर पर त्रिभन्ग मुद्रा में दूसरे के सामने एक पैर को दुसरे पैर पर डाले चित्रित है। कभी-कभी वह गाय या बछड़ा के साथ होते है, जो चरवाहे गोविंद के प्रतीक को दर्शाती है।[17][18]
अन्य चित्रण में, वे महाकाव्य महाभारत के युद्ध के दृश्यों का एक हिस्सा है। वहा उन्हें एक सारथी के रूप में दिखाया जाता है, विशेष रूप से जब वह पांडव राजकुमार अर्जुन को संबोधित कर रहे हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से हिंदू धर्म का एक ग्रंथ,भगवद् गीता को सुनाते हैं। इन लोकप्रिय चित्रणों में, कृष्ण कभी पथ प्रदर्शक के रूप में सामने में प्रकट होते हैं, या तो दूरदृष्टा के रूप में, कभी रथ के चालक के रूप में।[19][20]
कृष्ण के वैकल्पिक चित्रण में उन्हें एक बालक (बाल कृष्ण) के रूप में दिखाते हैं, एक बच्चा अपने हाथों और घुटनों पर रेंगते हुए ,नृत्य करते हुए , साथी मित्र ग्वाल बाल को चुराकर मक्खन देते हुए (मक्खन चोर), लड्डू को अपने हाथ में लेकर चलते हुए (लड्डू गोपाल) अथवा प्रलय के समय बरगद के पत्ते पर तैरते हुए एक अलौकिक शिशु जो अपने पैर की अंगुली को चूसता प्रतीत होता है। (ऋषि मार्कंडेय द्वारा विवरणित ब्रह्मांड विघटन)[21][22]
कृष्ण की प्रतिमा में क्षेत्रीय विविधताएं उनके विभिन्न रूपों में देखी जाती हैं, जैसे ओडिशा में जगन्नाथ, महाराष्ट्र में विट्ठल या विठोबा। [23][24][25][25] , राजस्थान में श्रीनाथ जी, गुजरात में द्वारकाधीश और केरल में गुरुवायरुप्पन [26] अन्य चित्रणों में उन्हें राधा के साथ दिखाया जाता है जो राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है। उन्हें कुरुक्षेत्र युद्ध में विश्वरूप में भी दिखाया जाता है जिसमें उनके कई मुख हैं और सभी लोग उनके मुख में जा रहे हैं। अपने मित्र सुदामा के साथ भी उनको दिखाया जाता है जो मित्रता का प्रतीक है।
वास्तुकला में कृष्ण चिह्नों एवं मूर्तियों के लिए दिशानिर्देशों का वर्णन मध्यकालीन युग में हिन्दू मंदिर कलाओं जैसे वैखानस अगम, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, बृहत संहिता और अग्नि पुराण में वर्णित है[27]। इसी तरह, मध्यकालीन युग के शुरुआती तमिल ग्रंथों में कृष्ण और रुक्मणी की मूर्तियां भी सम्मिलित हैं। इन दिशानिर्देशों के अनुसार बनाई गई कई मूर्तियां सरकारी संग्रहालय,चेन्नई के संग्रह में हैं।
ऐतिहासिक और साहित्यिक स्रोत
संपादित करेंएक व्यक्तित्व के रूप में कृष्ण का विस्तृत विवरण सबसे पहले महाकाव्य महाभारत में लिखा गया है[28] , जिसमें कृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में दर्शाया गया है। महाकाव्य की मुख्य कहानियों में से कई कृष्ण केंद्रीय हैं श्री भगवत गीता का निर्माण करने वाले महाकाव्य के छठे पर्व ( भीष्म पर्व ) के अठारहवे अध्याय में युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान देते हैं। महाभारत के बाद के परिशिष्ट में हरिवंश में कृष्ण के बचपन और युवावस्था का एक विस्तृत संस्करण है। [29]
भारतीय-यूनानी मुद्रण
संपादित करें१८० ईसा पूर्व लगभग इंडो-ग्रीक राजा एगैथोकल्स ने देवताओं की छवियों पर आधारित कुछ सिक्के जारी किये थे। भारत में अब उन सिक्को को वैष्णव दर्शन से संबंधित माना जाता है। [30][31] । सिक्कों पर प्रदर्शित देवताओं को विष्णु के अवतार बलराम - संकर्षण के रूप में देखा जाता है जिसमें गदा और हल और वासुदेव-कृष्ण , शंख और सुदर्शन चक्र दर्शाये हुए हैं।
प्राचीन संस्कृत व्याकरण पतंजलि ने अपने महाभाष्य में भारतीय ग्रंथों के देवता
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का गलत प्रयोग;KK
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