अस-साफ़्फ़ात

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 37 वां सूरा या अध्याय है
(अस-साफ्फात से अनुप्रेषित)

सूरा अस-साफ़्फ़ात (इंग्लिश: As-Saaffat) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 37 वां सूरा या अध्याय है। इसमें 182 आयतें हैं।

नाम संपादित करें

सूरा अस-साफ़्फ़ात[1] या अस्-साफ़्फ़ात[2] नाम पहली ही आयत के शब्द “अस-साफ़्फ़ात (पैर जमाकर पंक्तिबद्ध होनेवालों की सौगन्ध) " से उद्धृत है।

अवतरणकाल संपादित करें

मक्कन सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय, हिजरत से पहले अवतरित हुई।

वार्ताओं और वर्णन-शैली से प्रतीत होता है कि यह सूरा सम्भवतः मक्की काल के मध्य में, बल्कि शायद इस मध्यकाल के भी अन्तिम समय में अवतरित हुई है। (जब विरोध पूर्णतः उग्र रूप धारण कर चुका था।)

विषय और वार्ता संपादित करें

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि उस समय नबी (सल्ल.) के एकेश्वरवाद और परलोकवाद के आह्वान का उत्तर जिस उपहास और हँसी-मज़ाक़ के साथ दिया जा रहा था और आपके रिसालत के दावे को स्वीकार करने से जिस ज़ोर के साथ इनकार किया जा रहा था , उस पर मक्का के काफ़िरों को अत्यन्त ज़ोरदार तरीके से चेतावनी दी गई है। और अन्त में उसे स्पष्ट रूप से सावधान कर दिया गया है कि शीघ्र ही यही पैग़म्बर जिसका तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो , तुम्हारे देखते-देखते तुमपर विजय प्राप्त कर लेगा और तुम अल्लाह की सेना को स्वयं अपने घर के परांगण में उतरी हुई पाओगे (आयत 171 से 179 तक)। यह नोटिस उस समय दिया गया था जब नबी (सल्ल.) की सफलता के लक्षण दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं देते थे। बल्कि देखनेवाले तो यह समझ रहे थे कि यह आन्दोलन मक्का की घाटियों ही में दफ़न होकर रह जाएगा। लेकिन 15-16 वर्ष से अधिक समय नहीं बीता था कि मक्का की विजय के अवसर पर ठीक वहीं कुछ सामने आ गया , जिससे काफ़िरों को सावधान किया गया था। चेतावनी के साथ-साथ अल्लाह ने इस सूरा में समझाने बुझाने और प्रेरित करने का हक़ भी पूर्ण सन्तुलन के साथ अदा किया है। एकेश्वरवाद और परलोकवाद की धारणा के सत्य होने पर संक्षिप्त , दिल में घर करनेवाले प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं । बहुदेववादियों की ( धारणाओं पर आलोचना करके बताया गया कि वे कैसी-कैसी निरर्थक बातों पर ईमान लाए बैठे हैं, इन गुमराहियों के बुरे परिणामों से अवगत कराया गया है और यह भी बताया है कि ईमान और अच्छे कर्म के परिणाम कितने प्रतिष्ठापूर्ण हैं। फिर (इसी सिलसिले में पिछले इतिहास के उदाहरण दिये हैं।) इस उद्देश्य से जो ऐतिहासिक किस्से इस सूरा में बयान किया गए हैं, उनमें सबसे अधिक शिक्षाप्रद हज़रत इबराहीम (अलै.) के पवित्र जीवन की यह महत्त्वपूर्ण घटना है कि वे अल्लाह का एक संकेत पाते ही अपने इकलौते बेटे को कुरबान करने पर तैयार हो गए थे। इसमें केवल कुरैश के उन काफ़िरों ही के लिए शिक्षा न थी जो हज़रत इबराहीम (अलै.) के साथ अपने वंशगत सम्बन्ध पर गर्व करते फिरते थे, बल्कि उन मुसलमानों के लिए भी शिक्षा थी जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए थे। इस घटना का वर्णन करके उन्हें बता दिया गया कि इस्लाम की वास्तविकता और उसकी वास्तविक आत्मा क्या है। सूरा की अन्तिम आयतें केवल काफ़िरों के लिए चेतावनी ही न थीं , बल्कि उन ईमानवालों के लिए भी विजयी और प्रभावी होने की शुभ-सूचना थी जो नबी (सल्ल.) के समर्थन और आपकी सहायता में अत्यन्त हतोत्साहित करनेवाली परिस्थितियों का मुक़ाबला कर रहे थे।

सुरह अस-साफ़्फ़ात का अनुवाद संपादित करें

अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

37|1|गवाह है पैर जमाकर पंक्तिबद्ध होने वाले;[3]

37|2|फिर डाँटनेवाले;

37|3|फिर यह ज़िक्र करनेवाले

37|4|कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला है।

37|5|वह आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है सबका रब है और पूर्व दिशाओं का भी रब है

37|6|हमने दुनिया के आकाश को सजावट अर्थात् तारों से सुसज्जित किया, (रात में मुसाफ़िरों को मार्ग दिखाने के लिए)

37|7|और प्रत्येक सरकश शैतान से सुरक्षित रखने के लिए

37|8|वे (शैतान) "मलए आला" की ओर कान नहीं लगा पाते और हर ओर से फेंक मारे जाते हैं भगाने-धुतकारने के लिए।

37|9|और उनके लिए अनवरत यातना है

37|10|किन्तु यह और बात है कि कोई कुछ उचक ले, इस दशा में एक तेज़ दहकती उल्का उसका पीछा करती है

37|11|अब उनके पूछो कि उनके पैदा करने का काम अधिक कठिन है या उन चीज़ों का, जो हमने पैदा कर रखी है। निस्संदेह हमने उनको लेसकर मिट्टी से पैदा किया।

37|12|बल्कि तुम तो आश्चर्य में हो और वे है कि परिहास कर रहे हैं

37|13|और जब उन्हें याद दिलाया जाता है, तो वे याद नहीं करते,

37|14|और जब कोई निशानी देखते है तो हँसी उड़ाते है

37|15|और कहते हैं, "यह तो बस एक प्रत्यक्ष जादू है

37|16|क्या जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे, तो क्या फिर हम उठाए जाएँगे?

37|17|क्या और हमारे पहले के बाप-दादा भी?"

37|18|कह दो, "हाँ! और तुम अपमानित भी होंगे।"

37|19|वह तो बस एक झिड़की होगी। फिर क्या देखेंगे कि वे ताकने लगे है

37|20|और वे कहेंगे, "ऐ अफ़सोस हमपर! यह तो बदले का दिन है।"

37|21|यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाते रहे हो

37|22|(कहा जाएगा) "एकत्र करो उन लोगों को जिन्होंने ज़ुल्म किया और उनके जोड़ीदारों को भी और उनको भी जिनकी अल्लाह से हटकर वे बन्दगी करते रहे हैं।

37|23|फिर उन सबको भड़कती हुई आग की राह दिखाओ!"

37|24|और तनिक उन्हें ठहराओ, उनसे पूछना है,

37|25|"तुम्हें क्या हो गया, जो तुम एक-दूसरे की सहायता नहीं कर रहे हो?"

37|26|बल्कि वे तो आज बड़े आज्ञाकारी हो गए है

37|27|वे एक-दूसरे की ओर रुख़ करके पूछते हुए कहेंगे,

37|28|"तुम तो हमारे पास आते थे दाहिने से (और बाएँ से)"

37|29|वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही ईमानवाले न थे

37|30|और हमारा तो तुमपर कोई ज़ोर न था, बल्कि तुम स्वयं ही सरकश लोग थे

37|31|अन्ततः हमपर हमारे रब की बात सत्यापित होकर रही। निस्संदेह हमें (अपनी करतूत का) मजा़ चखना ही होगा

37|32|सो हमने तुम्हे बहकाया। निश्चय ही हम स्वयं बहके हुए थे।"

37|33|अतः वे सब उस दिन यातना में एक-दूसरे के सह-भागी होंगे

37|34|हम अपराधियों के साथ ऐसा ही किया करते हैं

37|35|उनका हाल यह था कि जब उनसे कहा जाता कि "अल्लाह के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं हैं।" तो वे घमंड में आ जाते थे

37|36|और कहते थे, "क्या हम एक उन्मादी कवि के लिए अपने उपास्यों को छोड़ दें?"

37|37|"नहीं, बल्कि वह सत्य लेकर आया है और वह (पिछले) रसूलों की पुष्टि॥ में है।

37|38|निश्चय ही तुम दुखद यातना का मज़ा चखोगे। -

37|39|"तुम बदला वही तो पाओगे जो तुम करते हो।"

37|40|अलबत्ता अल्लाह के उन बन्दों की बात और है, जिनको उसने चुन लिया है

37|41|वही लोग हैं जिनके लिए जानी-बूझी रोज़ी है,

37|42|स्वादिष्ट फल।

37|43|और वे नेमत भरी जन्नतों

37|44|में सम्मानपूर्वक होंगे, तख़्तों पर आमने-सामने विराजमान होंगे;

37|45|उनके बीच विशुद्ध पेय का पात्र फिराया जाएगा,

37|46|बिलकुल साफ़, उज्ज्वल, पीनेवालों के लिए सर्वथा सुस्वादु

37|47|न उसमें कोई ख़ुमार होगा और न वे उससे निढाल और मदहोश होंगे।

37|48|और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली, सुन्दर आँखोंवाली स्त्रियाँ होंगी,

37|49|मानो वे सुरक्षित अंडे है

37|50|फिर वे एक-दूसरे की ओर रुख़ करके आपस में पूछेंगे

37|51|उनमें से एक कहनेवाला कहेगा, "मेरा एक साथी था;

37|52|जो कहा करता था क्या तुम भी पुष्टि करनेवालों में से हो?

37|53|क्या जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे, तो क्या हम वास्तव में बदला पाएँगे?"

37|54|वह कहेगा, "क्या तुम झाँककर देखोगे?"

37|55|फिर वह झाँकेगा तो उसे भड़कती हुई आग के बीच में देखेगा

37|56|कहेगा, "अल्लाह की क़सम! तुम तो मुझे तबाह ही करने को थे

37|57|यदि मेरे रब की अनुकम्पा न होती तो अवश्य ही मैं भी पकड़कर हाज़िर किए गए लोगों में से होता

37|58|है ना अब ऐसा कि हम मरने के नहीं।

37|59|हमें जो मृत्यु आनी थी वह बस पहले आ चुकी। और हमें कोई यातना ही दी जाएगी!"

37|60|निश्चय ही यही बड़ी सफलता है

37|61|ऐसी की चीज़ के लिए कर्म करनेवालों को कर्म करना चाहिए

37|62|क्या वह आतिथ्य अच्छा है या 'ज़क़्क़ूम' का वृक्ष?

37|63|निश्चय ही हमने उस (वृक्ष) को ज़ालिमों के लिए परीक्षा बना दिया है

37|64|वह एक वृक्ष है जो भड़कती हुई आग की तह से निकलता है

37|65|उसके गाभे मानो शैतानों के सिर (साँपों के फन) है

37|66|तो वे उसे खाएँगे और उसी से पेट भरेंगे

37|67|फिर उनके लिए उसपर खौलते हुए पानी का मिश्रण होगा

37|68|फिर उनकी वापसी भड़कती हुई आग की ओर होगी

37|69|निश्चय ही उन्होंने अपने बाप-दादा को पथभ्रष्ट॥ पाया।

37|70|फिर वे उन्हीं के पद-चिन्हों पर दौड़ते रहे

37|71|और उनसे पहले भी पूर्ववर्ती लोगों में अधिकांश पथभ्रष्ट हो चुके हैं,

37|72|हमने उनमें सचेत करनेवाले भेजे थे।

37|73|तो अब देख लो उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ, जिन्हे सचेत किया गया था

37|74|अलबत्ता अल्लाह के बन्दों की बात और है, जिनको उसने चुन लिया है

37|75|नूह ने हमको पुकारा था, तो हम कैसे अच्छे हैं निवेदन स्वीकार करनेवाले!

37|76|हमने उसे और उसके लोगों को बड़ी घुटन और बेचैनी से छुटकारा दिया

37|77|और हमने उसकी सतति (औलाद व अनुयायी) ही को बाक़ी रखा

37|78|और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा

37|79|कि "सलाम है नूह पर सम्पूर्ण संसारवालों में!"

37|80|निस्संदेह हम उत्तमकारों को ऐसा बदला देते हैं

37|81|निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था

37|82|फिर हमने दूसरो को डूबो दिया।

37|83|और इबराहीम भी उसी के सहधर्मियों में से था।

37|84|याद करो, जब वह अपने रब के समक्ष भला-चंगा हृदय लेकर आया;

37|85|जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "तुम किस चीज़ की पूजा करते हो?

37|86|क्या अल्लाह से हटकर मनघड़ंत उपास्यों को चाह रहे हो?

37|87|आख़िर सारे संसार के रब के विषय में तुम्हारा क्या गुमान है?"

37|88|फिर उसने एक दृष्टि तारों पर डाली

37|89|और कहा, "मैं तो निढाल हूँ।"

37|90|अतएव वे उसे छोड़कर चले गए पीठ फेरकर

37|91|फिर वह आँख बचाकर उनके देवताओं की ओर गया और कहा, "क्या तुम खाते नहीं?

37|92|तुम्हें क्या हुआ है कि तुम बोलते नहीं?"

37|93|फिर वह भरपूर हाथ मारते हुए उनपर पिल पड़ा

37|94|फिर वे लोग झपटते हुए उसकी ओर आए

37|95|उसने कहा, "क्या तुम उनको पूजते हो, जिन्हें स्वयं तराशते हो,

37|96|जबकि अल्लाह ने तुम्हे भी पैदा किया है और उनको भी, जिन्हें तुम बनाते हो?"

37|97|वे बोले, "उनके लिए एक मकान (अर्थात अग्नि-कुंड) तैयार करके उसे भड़कती आग में डाल दो!"

37|98|अतः उन्होंने उसके साथ एक चाल चलनी चाही, किन्तु हमने उन्हीं को नीचा दिखा दिया

37|99|उसने कहा, "मैं अपने रब की ओर जा रहा हूँ, वह मेरा मार्गदर्शन करेगा

37|100|ऐ मेरे रब! मुझे कोई नेक संतान प्रदान कर।"

37|101|तो हमने उसे एक सहनशील पुत्र की शुभ सूचना दी

37|102|फिर जब वह उसके साथ दौड़-धूप करने की अवस्था को पहुँचा तो उसने कहा, "ऐ मेरे प्रिय बेटे! मैं स्वप्न में देखता हूँ कि तुझे क़ुरबान कर रहा हूँ। तो अब देख, तेरा क्या विचार है?" उसने कहा, "ऐ मेरे बाप! जो कुछ आपको आदेश दिया जा रहा है उसे कर डालिए। अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे।"

37|103|अन्ततः जब दोनों ने अपने आपको (अल्लाह के आगे) झुका दिया और उसने (इबाराहीम ने) उसे कनपटी के बल लिटा दिया (तो उस समय क्या दृश्य रहा होगा, सोचो!)

37|104|और हमने उसे पुकारा, "ऐ इबराहीम!

37|105|तूने स्वप्न को सच कर दिखाया। निस्संदेह हम उत्तमकारों को इसी प्रकार बदला देते हैं।"

37|106|निस्संदेह यह तो एक खुली हुई परीक्षा थी

37|107|और हमने उसे (बेटे को) एक बड़ी क़ुरबानी के बदले में छुड़ा लिया

37|108|और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका ज़िक्र छोड़ा,

37|109|कि "सलाम है इबराहीम पर।"

37|110|उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते हैं

37|111|निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था

37|112|और हमने उसे इसहाक़ की शुभ सूचना दी, अच्छों में से एक नबी

37|113|और हमने उसे और इसहाक़ को बरकत दी। और उन दोनों की संतति में कोई तो उत्तमकार है और कोई अपने आप पर खुला ज़ुल्म करनेवाला

37|114|और हम मूसा और हारून पर भी उपकार कर चुके हैं

37|115|और हमने उन्हें और उनकी क़ौम को बड़ी घुटन और बेचैनी से छुटकारा दिया

37|116|हमने उनकी सहायता की, तो वही प्रभावी रहे

37|117|हमने उनको अत्यन्त स्पष्टा किताब प्रदान की।

37|118|और उन्हें सीधा मार्ग दिखाया

37|119|और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा

37|120|कि "सलाम है मूसा और हारून पर!"

37|121|निस्संदेह हम उत्तमकारों को ऐसा बदला देते हैं

37|122|निश्चय ही वे दोनों हमारे ईमानवाले बन्दों में से थे

37|123|और निस्संदेह इलयास भी रसूलों में से था।

37|124|याद करो, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?

37|125|क्या तुम 'बअत' (देवता) को पुकारते हो और सर्वोत्तम सृष्टा। को छोड़ देते हो;

37|126|अपने रब और अपने अगले बाप-दादा के रब, अल्लाह को!"

37|127|किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। सौ वे निश्चय ही पकड़कर हाज़िर किए जाएँगे

37|128|अल्लाह के बन्दों की बात और है, जिनको उसने चुन लिया है

37|129|और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा

37|130|कि "सलाम है इलयास पर!"

37|131|निस्संदेह हम उत्तमकारों को ऐसा ही बदला देते हैं

37|132|निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था

37|133|और निश्चय ही लूत भी रसूलों में से था

37|134|याद करो, जब हमने उसे और उसके सभी लोगों को बचा लिया,

37|135|सिवाय एक बुढ़िया के, जो पीछे रह जानेवालों में से थी

37|136|फिर दूसरों को हमने तहस-नहस करके रख दिया

37|137|और निस्संदेह तुम उनपर (उनके क्षेत्र) से गुज़रते हो कभी प्रातः करते हुए

37|138|और रात में भी। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?

37|139|और निस्संदेह यूनुस भी रसूलो में से था

37|140|याद करो, जब वह भरी नौका की ओर भाग निकला,

37|141|फिर पर्ची डालने में शामिल हुआ और उसमें मात खाई

37|142|फिर उसे मछली ने निगल लिया और वह निन्दनीय दशा में ग्रस्त हो गया था।

37|143|अब यदि वह तसबीह करनेवाला न होता

37|144|तो उसी के भीतर उस दिन तक पड़ा रह जाता, जबकि लोग उठाए जाएँगे।

37|145|अन्ततः हमने उसे इस दशा में कि वह निढ़ाल था, साफ़ मैदान में डाल दिया।

37|146|हमने उसपर बेलदार वृक्ष उगाया था

37|147|और हमने उसे एक लाख या उससे अधिक (लोगों) की ओर भेजा

37|148|फिर वे ईमान लाए तो हमने उन्हें एक अवधि कर सुख भोगने का अवसर दिया।

37|149|अब उनसे पूछो, "क्या तुम्हारे रब के लिए तो बेटियाँ हों और उनके अपने लिए बेटे?

37|150|क्या हमने फ़रिश्तों को औरतें बनाया और यह उनकी आँखों देखी बात हैं?"

37|151|सुन लो, निश्चय ही वे अपनी मनघड़ंत कहते हैं

37|152|कि "अल्लाह के औलाद हुई है!" निश्चय ही वे झूठे है।

37|153|क्या उसने बेटों की अपेक्षा बेटियाँ चुन ली है?

37|154|तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसा फ़ैसला करते हो?

37|155|तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते?

37|156|क्या तुम्हारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण है?

37|157|तो लाओ अपनी किताब, यदि तुम सच्चे हो

37|158|उन्होंने अल्लाह और जिन्नों के बीच नाता जोड़ रखा है, हालाँकि जिन्नों को भली-भाँति मालूम है कि वे अवश्य पकड़कर हाज़िर किए जाएँगे-

37|159|महान और उच्च है अल्लाह उससे, जो वे बयान करते हैं। -

37|160|अल्लाह के उन बन्दों की बात और है, जिन्हें उसने चुन लिया

37|161|अतः तुम और जिनको तुम पूजते हो वे,

37|162|तुम सब अल्लाह के विरुद्ध किसी को बहका नहीं सकते,

37|163|सिवाय उसके जो जहन्नम की भड़कती आग में पड़ने ही वाला हो

37|164|और हमारी ओर से उसके लिए अनिवार्यतः एक ज्ञात और नियत स्थान है

37|165|और हम ही पंक्तिबद्ध करते हैं।

37|166|और हम ही महानता बयान करते हैं

37|167|वे तो कहा करते थे,

37|168|"यदि हमारे पास पिछलों की कोई शिक्षा होती

37|169|तो हम अल्लाह के चुने हुए बन्दे होते।"

37|170|किन्तु उन्होंने इनकार कर दिया, तो अब जल्द ही वे जान लेंगे

37|171|और हमारे अपने उन बन्दों के हक़ में, जो रसूल बनाकर भेजे गए, हमारी बात पहले ही निश्चित हो चुकी है

37|172|कि निश्चय ही उन्हीं की सहायता की जाएगी।

37|173|और निश्चय ही हमारी सेना ही प्रभावी रहेगी

37|174|अतः एक अवधि तक के लिए उनसे रुख़ फेर लो

37|175|और उन्हें देखते रहो। वे भी जल्द ही (अपना परिणाम) देख लेंगे

37|176|क्या वे हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं?

37|177|तो जब वह उनके आँगन में उतरेगी तो बड़ी ही बुरी सुबह होगी उन लोगों की, जिन्हें सचेत किया जा चुका है!

37|178|एक अवधि तक के लिए उनसे रुख़ फेर लो

37|179|और देखते रहो, वे जल्द ही देख लेंगे 37|180|महान और उच्च है तुम्हारा रब, प्रताप का स्वामी, उन बातों से जो वे बताते है!

37|181|और सलाम है रसूलों पर;

37|182|औऱ सब प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के रब के लिए है

पिछला सूरा:
या सिन
क़ुरआन अगला सूरा:
साद (सूरा)
सूरा 37

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सन्दर्भ: संपादित करें

  1. अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 639 से.
  2. "सूरा अस्-साफ़्फ़ात'". https://quranenc.com. मूल से 23 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. As-Saffat सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/37:1 Archived 2018-04-25 at the वेबैक मशीन