यूनुस सूरा
सूरए यूनुस : क़ुरआन का 10 वां अध्याय (सूरा) है. यह मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी एक सौ नौ (109) आयतें है
يُونُس यूनुस जोनाह | |
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वर्गीकरण | मक्की सूरा |
स्थान | पारा ११ |
हिज़्ब क्रमांक | २१ से २२ |
रुकू की संख्या | ११ |
शब्दों की संख्या | १८,३९ |
अक्षरो की संख्या | ७,५८९ |
शुरुआती मुक़त्तआत | ʾअलिफ़ लाम रा الر |
हिंदी अनुवाद
संपादित करेंमै उस खुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
1. अलीफ़ लाम रा
2. ये आयतें उस किताब की हैं जो अज़सरतापा (सर से पैर तक) हिकमत से मलूउ (भरी) है
3. क्या लोगों को इस बात से बड़ा ताज्जुब हुआ कि हमने उन्हीं लोगों में से एक आदमी के पास वही भेजी कि (बे ईमान) लोगों को डराओ और ईमानदारो को इसकी ख़ुष ख़बरी सुना दो कि उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में बुलन्द दर्जे है (मगर) कुफ्फार (उन आयतों को सुनकर) कहने लगे कि ये (षख़्स तो यक़ीनन सरीही जादूगर) है
4. इसमें तो ्यक ही नहीं कि तुमरा परवरदिगार वही ख़ुदा है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को 6 दिन में पैदा किया फिर उसने अर्ष को बुलन्द किया वही हर काम का इन्तज़ाम करता है (उसके सामने) कोई (किसी का) सिफारिषी नहीं (हो सकता) मगर उसकी इजाज़त के बाद वही ख़ुदा तो तुम्हारा परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो तो क्या तुम अब भी ग़ौर नही करते
5. तुम सबको (आखि़र) उसी की तरफ लौटना है ख़ुदा का वायदा सच्चा है वही यक़ीनन मख़लूक को पहली मरतबा पैदा करता है फिर (मरने के बाद) वही दुबारा जिन्दा करेगा ताकि जिन लोगों ने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको इन्साफ के साथ जज़ाए (ख़ैर) अता फरमाएगा और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तियार किया उन के लिए उनके कुफ्र की सज़ा में पीने को खौलता हुआ पानी और दर्दनाक अज़ाब होगा
6. वही वह (ख़़ुदाए क़ादिर) है जिसने आफ़ताब को चमकदार और महताब को रौषन बनाया और उसकी मंज़िलें मुक़र्रर की ताकि तुम लोग बरसों की गिनती और हिसाब मालूम करो ख़़ुदा ने उसे हिकमत व मसलहत से बनाया है वह (अपनी) आयतों का वाक़िफ़कार लोगों के लिए तफ़सीलदार बयान करता है
7. इसमें ज़रा भी ्यक नहीं कि रात दिन के उलट फेर में और जो कुछ ख़़ुदा ने आसमानों और ज़मीन में बनाया है (उसमें) परहेज़गारों के वास्ते बहुतेरी निषानियाँ हैं
8. इसमें भी ्यक नहीं कि जिन लोगों को (क़यामत में) हमारी (बारगाह की) हुज़ूरी का ठिकाना नहीं और दुनिया की (चन्द रोज़) ज़िन्दगी से निहाल हो गए और उसी पर चैन से बैठे हैं और जो लोग हमारी आयतों से ग़ाफिल हैं
9 यही वह लोग हैं जिनका ठिकाना उनकी करतूत की बदौलत जहन्नुम है
10. बेषक जिन लोगों ने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन्हंें उनका परवरदिगार उनके इमान के सबब से मंज़िल मक़सूद तक पहुँचा देगा कि आराम व आसाइष के बाग़ों में (रहेगें) और उन के नीचे नहरें जारी होगी उन बाग़ों में उन लोगों का बस ये कौल होगा ऐ ख़ुदा तू पाक व पाकीज़ा है और उनमें उनकी बाहमी (आपसी) खै़रसलाही (मुलाक़ात) सलाम से होगी और उनका आखि़री क़ौल ये होगा कि सब तारीफ ख़ुदा ही को सज़ावार है जो सारे जहाँन का पालने वाला है
और जिस तरह लोग अपनी भलाई के लिए जल्दी कर बैठे हैं उसी तरह अगर ख़ुदा उनकी ्यरारतों की सज़ा में बुराई में जल्दी कर बैठता है तो उनकी मौत उनके पास कब की आ चुकी होती मगर हम तो उन लोगों को जिन्हें (मरने के बाद) हमारी हुज़ूरी का खटका नहीं छोड़ देते हैं कि वह अपनी सरकषाी में आप सरग़िरदा रहें (11) और इन्सान को जब कोई नुकसान छू भी गया तो अपने पहलू पर (लेटा हो) या बैठा हो या ख़ड़ा (गरज़ हर हालत में) हम को पुकारता है फिर जब हम उससे उसकी तकलीफ को दूर कर देते है तो ऐसा खिसक जाता है जैसे उसने तकलीफ के (दफा करने के) लिए जो उसको पहुँचती थी हमको पुकारा ही न था जो लोग ज़्यादती करते हैं उनकी कारस्तानियाँ यूँ ही उन्हें अच्छी कर दिखाई गई हैं (12) और तुमसे पहली उम्मत वालों को जब उन्होंने ्यरारत की तो हम ने उन्हें ज़रुर हलाक कर डाला हालाॅकि उनके (वक़्त के) रसूल वाजेए व रौषन मोज़िज़ात लेकर आ चुके थे और वह लोग ईमान (न लाना था) न लाए हम गुनेहगार लोगों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं (13) फिर हमने उनके बाद तुमको ज़मीन में (उनका) जानषीन बनाया ताकि हम (भी) देखें कि तुम किस तरह काम करते हो (14) और जब उन लोगों के सामने हमारी रौषन आयते पढ़ीं जाती हैं तो जिन लोगों को (मरने के बाद) हमारी हुजूरी का खटका नहीं है वह कहते है कि हमारे सामने इसके अलावा कोई दूसरा (कुरान लाओ या उसका रद्दो बदल कर डालो (ऐ रसूल तुम कह दो कि मुझे ये एख़्तेयार नहीं कि मै उसे अपने जी से बदल डालूँ मै तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरी तरफ वही की गई है मै तो अगर अपने परवरदिगार की नाफरमानी करु तो बड़े (कठिन) दिन के अज़ाब से डरता हूँ (15) (ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा चाहता तो मै न तुम्हारे सामने इसको पढ़ता और न वह तुम्हें इससे आगाह करता क्योंकि मै तो (आखि़र) तुमने इससे पहले मुद्दतों रह चुका हूँ (और कभी ‘वही’ का नाम भी न लिया) (16) तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते तो जो ्यख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाॅधे या उसकी आयतो को झुठलाए उससे बढ़ कर और ज़ालिम कौन होगा इसमें ्यक नहीं कि (ऐसे) गुनाहगार कामयाब नहीं हुआ करते (17) या लोग ख़ुदा को छोड़ कर ऐसी चीज़ की परसतिष करते है जो न उनको नुकसान ही पहुँचा सकती है न नफा और कहते हैं कि ख़ुदा के यहाँ यही लोग हमारे सिफारिषी होगे (ऐ रसूल) तुम (इनसे) कहो तो क्या तुम ख़़ुदा को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो जिसको वह न तो आसमानों में (कहीं) पाता है और न ज़मीन में ये लोग जिस चीज़ को उसका ्यरीक बनाते है (18) उससे वह पाक साफ और बरतर है और सब लोग तो (पहले) एक ही उम्मत थे और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात (क़यामत का वायदा) पहले न हो चुकी होती जिसमें ये लोग एख़्तिलाफ कर रहे हैं उसका फैसला उनके दरम्यिान (कब न कब) कर दिया गया होता (19) और कहते हैं कि उस पैग़म्बर पर कोई मोजिज़ा (हमारी ख़्वाहिष के मुवाफिक़) क्यों नहीं नाज़िल किया गया तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ग़ैब (दानी) तो सिर्फ ख़ुदा के वास्ते ख़ास है तो तुम भी इन्तज़ार करो और तुम्हारे साथ मै (भी) यक़ीनन इन्तज़ार करने वालों में हूँ (20) और लोगों को जो तकलीफ पहुँची उसके बाद जब हमने अपनी रहमत का जाएक़ा चखा दिया तो यकायक उन लोगों से हमारी आयतों में हीले बाज़ी ्युरू कर दी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तद्बीर में ख़ुदा सब से ज़्यादा तेज़ है तुम जो कुछ मक्कारी करते हो वह हमारे भेजे हुए (फरिष्ते) लिखते जाते हैं (21) वह वही ख़़ुदा है जो तुम्हें ख़ुष्की और दरिया में सैर कराता फिरता है यहाँ तक कि जब (कभी) तुम कष्तियों पर सवार होते हो और वह उन लोगों को बाद मुवाफिक़ (हवा के धारे) की मदद से लेकर चली और लोग उस (की रफ्तार) से ख़ुष हुए (यकायक) कष्ती पर हवा का एक झोंका आ पड़ा और (आना था कि) हर तरफ से उस पर लहरें (बढ़ी चली) आ रही हैं और उन लोगों ने समझ लिया कि अब घिर गए (और जान न बचेगी) तब अपने अक़ीदे को उसके वास्ते निरा खरा करके खुदा से दुआएँ मागँने लगते हैं कि (ख़ुदाया) अगर तूने इस (मुसीबत) से हमें नजात दी तो हम ज़रुर बड़े ्युक्र गुज़ार होंगें (22) फिर जब ख़ुदा ने उन्हें नजात दी तो वह लोग ज़मीन पर (कदम रखते ही) फौरन नाहक़ सरकषी करने लगते हैं (ऐ लोगों तुम्हारी सरकषी का वबाल) तो तुम्हारी ही जान पर है - (ये भी) दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी का फायदा है फिर आखि़र हमारी (ही) तरफ तुमको लौटकर आना है तो (उस वक़्त) हम तुमको जो कुछ (दुनिया में) करते थे बता देगे (23) दुनियावी ज़िदगी की मसल तो बस पानी की सी है कि हमने उसको आसमान से बरसाया फिर ज़मीन के साग पात जिसको लोग और चैपाए खा जाते हैं (उसके साथ मिल जुलकर निकले यहाँ तक कि जब ज़मीन ने (फसल की चीज़ों से) अपना बनाओ सिंगार कर लिया और (हर तरह) आरास्ता हो गई और खेत वालों ने समझ लिया कि अब वह उस पर यक़ीनन क़ाबू पा गए (जब चाहेंगे काट लेगे) यकायक हमारा हुक्म व अज़ाब रात या दिन को आ पहुँचा तो हमने उस खेत को ऐसा साफ कटा हुआ बना दिया कि गोया कुल उसमें कुछ था ही नहीं जो लोग ग़ौर व फिक्र करते हैं उनके वास्ते हम आयतों को यूँ तफसीलदार बयान करते है (24) और ख़ुदा तो आराम के घर (बेहष्त) की तरफ बुलाता है और जिसको चाहता है सीधे रास्ते की हिदायत करता है (25) जिन लोगों ने दुनिया में भलाई की उनके लिए (आखि़रत में भी) भलाई है (बल्कि) और कुछ बढ़कर और न (गुनेहगारों की तरह) उनके चेहरों पर कालिक लगी हुयी होगी और न (उन्हें ज़िल्लत होगी यही लोग जन्नती हैं कि उसमें हमेषा रहा सहा करेंगे (26) और जिन लोगों ने बुरे काम किए हैं तो गुनाह की सज़ा उसके बराबर है और उन पर रुसवाई छाई होगी ख़ुदा (के अज़ाब) से उनका कोई बचाने वाला न होगा (उनके मुॅह ऐसे काले होंगे) गोया उनके चेहरे ्यबों यज़ूर (अंधेरी रात) के टुकड़े से ढक दिए गए हैं यही लोग जहन्नुमी हैं कि ये उसमें हमेषा रहेंगे (27) (ऐ रसूल उस दिन से डराओ) जिस दिन सब को इकट्ठा करेगें-फिर मुषरेकीन से कहेेंगें कि तुम और तुम्हारे (बनाए हुए ख़ुदा के) ्यरीक ज़रा अपनी जगह ठहरो फिर हम वाहम उनमें फूट डाल देगें और उनके ्यरीक उनसे कहेंगे कि तुम तो हमारी परसतिष करते न थे (28) तो (अब) हमारे और तुम्हारे दरमियान गवाही के वास्ते ख़ुदा ही काफी है हम को तुम्हारी परसतिष की ख़बर ही न थी (29) (ग़रज़) वहाँ हर ्यख़्स जो कुछ जिसने पहले (दुनिया में) किया है जाँच लेगा और वह सब के सब अपने सच्चे मालिक ख़ुदा की बारगाह में लौटकर लाए जाएँगें और (दुनिया में) जो कुछ इफ़तेरा परदाज़िया (झूठी बातें) करते थे सब उनके पास से चल चंपत हो जाएगें (30) ऐ रसूल तुम उने ज़रा पूछो तो कि तुम्हें आसमान व ज़मीन से कौन रोज़ी देता है या (तुम्हारे) कान और (तुम्हारी) आँखों का कौन मालिक है और कौन ्यख़्स मुर्दे से ज़िन्दा को निकालता है और ज़िन्दा से मुर्दे को निकालता है और हर अम्र (काम) का बन्दोबस्त कौन करता है तो फौरन बोल उठेंगे कि ख़ुदा (ऐ रसूल) तुम कहो तो क्या तुम इस पर भी (उससे) नहीं डरते हो (31) फिर वही ख़ुदा तो तुम्हारा सच्चा रब है फिर हक़ बात के बाद गुमराही के सिवा और क्या है फिर तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो (32)
ये तुम्हारे परवरदिगार की बात बदचलन लोगों पर साबित होकर रही कि ये लोग हरगिज़ इमान न लाएँगें (33) (ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि तुम ने जिन लोगों को (ख़ुदा का) ्यरीक बनाया है कोई भी ऐसा है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करे फिर उन को (मरने के बाद) दोबारा ज़िन्दा करे (तो क्या जवाब देगें) तुम्ही कहो कि ख़ुदा ही पहले भी पैदा करता है फिर वही दोबारा ज़िन्दा करता है तो किधर तुम उल्टे जा रहे हो (34) (ऐ रसूल उनसे) कहो तो कि तुम्हारे (बनाए हुए) ्यरीकों में से कोई ऐसा भी है जो तुम्हें (दीन) हक़ की राह दिखा सके तुम ही कह दो कि (ख़ुदा) दीन की राह दिखाता है तो जो तुम्हे दीने हक़ की राह दिखाता है क्या वह ज़्यादा हक़दार है कि उसके हुक्म की पैरवी की जाए या वह ्यख़्स जो (दूसरे) की हिदायत तो दर किनार खुद ही जब तक दूसरा उसको राह न दिखाए राह नही देख पाता तो तुम लोगों को क्या हो गया है (35) तुम कैसे हुक्म लगाते हो और उनमें के अक्सर तो बस अपने गुमान पर चलते हैं (हालाॅकि) गुमान यक़ीन के मुक़ाबले में हरगिज़ कुछ भी काम नहीं आ सकता बेषक वह लोग जो कुछ (भी) कर रहे हैं खुदा उसे खूब जानता है (36) और ये कुरान ऐसा नहीं कि खुदा के सिवा कोई और अपनी तरफ से झूठ मूठ बना डाले बल्कि (ये तो) जो (किताबें) पहले की उसके सामने मौजूद हैं उसकी तसदीक़ और (उन) किताबों की तफ़सील है उसमें कुछ भी ्यक नहीं कि ये सारे जहाँन के परवरदिगार की तरफ से है (37) क्या ये लोग कहते हैं कि इसको रसूल ने खुद झूठ मूठ बना लिया है (ऐ रसूल) तुम कहो कि (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (भला) एक ही सूरा उसके बराबर का बना लाओ और ख़ुदा के सिवा जिसको तुम्हें (मदद के वास्ते) बुलाते बन पड़े बुला लो (38) (ये लोग लाते तो क्या) बल्कि (उलटे) जिसके जानने पर उनका हाथ न पहुँचा हो लगे उसको झुठलाने हालाॅकि अभी तक उनके जे़हन में उसके मायने नहीं आए इसी तरह उन लोगों ने भी झुठलाया था जो उनसे पहले थे-तब ज़रा ग़ौर तो करो कि (उन) ज़ालिमों का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ (39) और उनमें से बाज़ तो ऐसे है कि इस कु़रान पर आइन्दा ईमान लाएॅगें और बाज़ ऐसे हैं जो ईमान लाएॅगें ही नहीं (40) और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार फसादियों को खूब जानता है और अगर वह तुम्हे झुठलाएॅ तो तुम कह दो कि हमारे लिए हमारी कार गुजारी है और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारस्तानी जो कुछ मै करता हूँ उसके तुम ज़िम्मेदार नहीं और जो कुछ तुम करते हो उससे मै बरी हूँ (41) और उनमें से बाज़ ऐसे हैं कि तुम्हारी ज़बानों की तरफ कान लगाए रहते हैं तो (क्या) वह तुम्हारी सुन लेगें हरगिज़ नहीं अगरचे वह कुछ समझ भी न सकते हो (42) तुम कही बहरों को कुछ सुना सकते हो और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो तुम्हारी तरफ (टकटकी बाँधे) देखते हैं तो (क्या वह इमान लाएँगें हरगिज़ नहीं) अगरचे उन्हें कुछ न सूझता हो तो तुम अन्धे को राहे रास्त दिखा दोगे (43) ख़ुदा तो हरगिज़ लोगों पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं करता मगर लोग खुद अपने ऊपर (अपनी करतूत से) जुल्म किया करते है (44) और जिस दिन ख़़ुदा इन लोगों को (अपनी बारगाह में) जमा करेगा तो गोया ये लोग (समझेगें कि दुनिया में) बस घड़ी दिन भर ठहरे और आपस में एक दूसरे को पहचानेंगे जिन लोगों ने ख़ुदा की बारगाह में हाज़िर होने को झुठलाया वह ज़रुर घाटे में हैं और हिदायत याफता न थे (45) ऐ रसूल हम जिस जिस (अज़ाब) का उनसे वायदा कर चुके हैं उनमें से बाज़ ख़्वाहा तुम्हें दिखा दें या तुमको (पहले ही दुनिया से) उठा ले फिर (आखि़र) तो उन सबको हमारी तरफ लौटना ही है फिर जो कुछ ये लोग कर रहे हैं ख़ुदा तो उस पर गवाह ही है (46) और हर उम्मत का ख़ास (एक) एक रसूल हुआ है फिर जब उनका रसूल (हमारी बारगाह में) आएगा तो उनके दरम्यिान इन्साफ़ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर ज़र्रा बराबर ज़़ुल्म न किया जाएगा (47) ये लोग कहा करते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आखि़र) ये (अज़ाब का वायदा) कब पूरा होगा (48) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै खुद अपने वास्ते नुकसान पर क़ादिर हूँ न नफा पर मगर जो ख़ुदा चाहे हर उम्मत (के रहने) का (उसके इल्म में) एक वक़्त मुक़र्रर है-जब उन का वक़्त आ जाता है तो न एक घड़ी पीछे हट सकती हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (49) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम समझते हो कि अगर उसका अज़ाब तुम पर रात को या दिन को आ जाए तो (तुम क्या करोगे) फिर गुनाहगार लोग आखि़र काहे की जल्दी मचा रहे हैं (50) फिर क्या जब (तुम पर) आ चुकेगा तब उस पर इमान लाओगे (आहा) क्या अब (इमान लाए) हालाॅकि तुम तो इसकी जल्दी मचाया करते थे (51) फिर (क़यामत के दिन) ज़ालिम लोगों से कहा जाएगा कि (अब हमेषा के अज़ाब के मजे़ चखो (दुनिया में) जैसी तुम्हारी करतूतें तुम्हें (आखि़रत में) वैसा ही बदला दिया जाएगा (52) (ऐ रसूल) तुम से लोग पूछतें हैं कि क्या (जो कुछ तुम कहते हो) वह सब ठीक है तुम कह दो (हाँ) अपने परवरदिगार की कसम ठीक है और तुम (ख़ुदा को) हरा नहीं सकते (53) और (दुनिया में) जिस जिसने (हमारी नाफरमानी कर के) ज़ुल्म किया है (क़यामत के दिन) अगर तमाम ख़ज़ाने जो जमीन में हैं उसे मिल जाएँ तो अपने गुनाह के बदले ज़रुर फिदया दे निकले और जब वह लोग अज़ाब को देखेगें तो इज़हारे निदामत करेगें (षर्मिंदा होंगें) और उनमें बाहम इन्साफ़ के साथ हुक्म दिया जाएगा और उन पर ज़र्रा (बराबर ज़ुल्म न किया जाएगा (54) आगाह रहो कि जो कुछ आसमानों में और ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है आग़ाह राहे कि ख़ुदा का वायदा यक़ीनी ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं (55) वही ज़िन्दा करता है और वही मारता है और तुम सब के सब उसी की तरफ लौटाए जाओगें (56) लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से नसीहत (किताबे ख़़ुदा आ चुकी और जो (मरज़ षिर्क वगै़रह) दिल में हैं उनकी दवा और ईमान वालों के लिए हिदायत और रहमत (57) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ये क़़ुरान) ख़़ुदा के फज़ल व करम और उसकी रहमत से तुमको मिला है (ही) तो उन लोगों को इस पर खुष होना चाहिए (58) और जो कुछ वह जमा कर रहे हैं उससे कहीं बेहतर है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम्हारा क्या ख़्याल है कि ख़ुदा ने तुम पर रोज़ी नाज़िल की तो अब उसमें से बाज़ को हराम बाज़ को हलाल बनाने लगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या ख़ुदा ने तुम्हें इजाज़त दी है या तुम ख़ुदा पर बोहतान बाँधते हो (59) और जो लोग ख़ुदा पर झूठ मूठ बोहतान बाॅधा करते हैं रोजे़ क़यामत का क्या ख़्याल करते हैं उसमें ्यक नहीं कि ख़़ुदा तो लोगों पर बड़ा फज़ल व (करम) है मगर उनमें से बहुतेरे ्युक्र गुज़ार नहीं हैं (60) (और ऐ रसूल) तुम (चाहे) किसी हाल में हो और क़़ुुरान की कोई सी भी आयत तिलावत करते हो और (लोगों) तुम कोई सा भी अमल कर रहे हो हम (हम सर वक़त) जब तुम उस काम में मषग़ूल होते हो तुम को देखते रहते हैं और तुम्हारे परवरदिगार से ज़र्रा भी कोई चीज़ ग़ायब नहीं रह सकती न ज़मीन में और न आसमान में और न कोई चीज़ ज़र्रे से छोटी है और न उससे बढ़ी चीज़ मगर वह रौषन किताब लौहे महफूज़ में ज़रुर है (61) आगाह रहो इसमें ्यक नहीं कि दोस्ताने ख़ुदा पर (क़यामत में) न तो कोई ख़ौफ होगा और न वह आजु़र्दा (ग़मग़ीन) ख़ातिर होगे (62) ये वह लोग हैं जो ईमान लाए और (ख़़ुदा से) डरते थे (63) उन्हीं लोगों के वास्ते दीन की ज़िन्दगी में भी और आखि़रत में (भी) ख़ुषख़बरी है ख़़ुदा की बातों में अदल बदल नहीं हुआ करता यही तो बड़ी कामयाबी है (64) और (ऐ रसूल) उन (कुफ़्फ़ार) की बातों का तुम रंज न किया करो इसमें तो ्यक नहीं कि सारी इज़्ज़त तो सिर्फ ख़ुदा ही के लिए है वही सबकी सुनता जानता है (65) आगाह रहो इसमें ्यक नहीं कि जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही के लिए है और जो लोग ख़ुदा को छोड़कर (दूसरों को) पुकारते हैं वह तो (ख़ुदा के फर्ज़ी) ्यरीकों की राह पर भी नहीं चलते बल्कि वह तो सिर्फ अपनी अटकल पर चलते हैं और वह सिर्फ वहमी और ख़्याली बातें किया करते हैं (66) वह वही (खुदाएॅ क़ादिर तवाना) है जिसने तुम्हारे नफा के वास्ते रात को बनाया ताकि तुम इसमें चैन करो और दिन को (बनाया) कि उसकी रौषनी में देखो भालो उसमें ्यक नहीं जो लोग सुन लेते हैं उनके लिए इसमें (कुदरत की बहुतेरी निषानियाँ हैं) (67) लोगों ने तो कह दिया कि ख़ुदा ने बेटा बना लिया-ये महज़ लगों वह तमाम नकायस से पाक व पाकीज़ा वह (हर तरह) से बेपरवाह हैं व जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (सब) उसी का है (जो कुछ) तुम कहते हो (उसकी कोई दलील तो तुम्हारे पास है नहीं क्या तुम ख़ुदा पर) (यूॅ ही) बे जाने बूझे झूठ बोला करते हो (68) ऐ रसूल तुम कह दो कि बेषक जो लोग झूठ मूठ ख़़ुदा पर बोहतान बाधते हैं वह कभी कामयाब न होगें (69) (ये) दुनिया के (चन्द रोज़ा) फायदे हैं फिर तो आखि़र हमारी ही तरफ लौट कर आना है तब उनके कुफ्र की सज़ा में हम उनको सख़्त अज़ाब के मज़े चखाएँगें (70) और (ऐ रसूल) तुम उनके सामने नूह का हाल पढ़ दो जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मेरा ठहरना और ख़़ुदा की आयतों का चर्चा करना तुम पर ्याक़ व गराॅ (बुरा) गुज़रता है तो मैं सिर्फ ख़़ुदा ही पर भरोसा रखता हूँ तो तुम और तुमहारे ्यरीक़ सब मिलकर अपना काम ठीक कर लो फिर तुम्हारी बात तुम (में से किसी) पर महज़ (छुपी) न रहे फिर (जो तुम्हारा जी चाहे) मेरे साथ कर गुज़रों और गुझे (दम मारने की भी) मोहलत न दो (71) फिर भी अगर तुम ने (मेरी नसीहत से) मुँह मोड़ा तो मैने तुम से कुछ मज़दूरी तो न माँगी थी-मेरी मज़दूरी तो सिर्फ ख़ुदा ही पर है और (उसी की तरफ से) मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं उसके फरमाबरदार बन्दों में से हो जाऊँ (72) उस पर भी उन लोगों ने उनको झुठलाया तो हमने उनको और जो लोग उनके साथ कष्ती में (सवार) थे (उनको) नजात दी और उनको (अगलों का) जानषीन बनाया और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनको डुबो मारा फिर ज़रा ग़ौर तो करो कि जो (अज़ाब से) डराए जा चुके थे उनका क्या (ख़राब) अन्जाम हुआ (73) फिर हमने नूह के बाद और रसूलों को अपनी क़ौम के पास भेजा तो वह पैग़म्बर उनके पास वाजे़ए (खुले हुए) व रौषन मौजिज़े लेकर आए इस पर भी जिस चीज़ को ये लोग पहले झुठला चुके थे उस पर ईमान (न लाना था) न लाए हम यूॅ ही हद से गुज़र जाने वालों के दिलों पर (गोया) खुद मोहर कर देते हैं (74) फिर हमने इन पैग़म्बरों के बाद मूसा व हारुन को अपनी निषानियाँ (मौजिज़े) लेकर फिरआऊन और उस (की क़ौम) के सरदारों के पास भेजा तो वह लोग अकड़ बैठे और ये लोग थे ही कुसूरवार (75) फिर जब उनके पास हमारी तरफ से हक़ बात (मौजिज़े) पहुँच गए तो कहने लगे कि ये तो यक़ीनी खुल्लम खुल्ला जादू है (76) मूसा ने कहा क्या जब (दीन) तुम्हारे पास आया तो उसके बारे में कहते हो कि क्या ये जादू है और जादूगर लोग कभी कामयाब न होगें (77) वह लोग कहने लगे कि (ऐ मूसा) क्यों तुम हमारे पास उस वास्ते आए हो कि जिस दीन पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया उससे तुम हमे बहका दो और सारी ज़मीन में ही दोनों की बढ़ाई हो और ये लोग तुम दोनों पर ईमान लाने वाले नहीं (78) और फिरआऊन ने हुक्म दिया कि हमारे हुज़ूर में तमाम खिलाड़ी (वाक़िफकार) जादूगर को तो ले आओ (79) फिर जब जादूगर लोग (मैदान में) आ मौजूद हुए तो मूसा ने उनसे कहा कि तुमको जो कुछ फेंकना हो फेंको (80) फिर जब वह लोग (रस्सियों को साँप बनाकर) डाल चुके तू मूसा ने कहा जो कुछ तुम (बनाकर) लाए हो (वह तो सब) जादू है-इसमें तो ्यक ही नहीं कि ख़़ुदा उसे फौरन मिटियामेट कर देगा (क्योंकर) ख़ुदा तो हरगिज़ मफ़सिदों (फसाद करने वालों) का काम दुरुस्त नहीं होने देता (81) और ख़़ुदा सच्ची बात को अपने कलाम की बरकत से साबित कर दिखाता है अगरचे गुनाहगारों को ना गॅवार हो (82) अलग़रज़ मूसा पर उनकी क़ौम की नस्ल के चन्द आदमियों के सिवा फिरआऊन और उसके सरदारों के इस ख़ौफ से कि उन पर कोई मुसीबत डाल दे कोई ईमान न लाया और इसमें ्यक नहीं कि फिरआऊन रुए ज़मीन में बहुत बढ़ा चढ़ा था और इसमें ्यक नहीं कि वह यक़ीनन ज़्यादती करने वालों में से था (83) और मूसा ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर तुम (सच्चे दिल से) ख़ुदा पर इमान ला चुके तो अगर तुम फरमाबरदार हो तो बस उसी पर भरोसा करो (84) उस पर उन लोगों ने अर्ज़ की हमने तो ख़़ुदा ही पर भरोसा कर लिया है और दुआ की कि ऐ हमारे पालने वाले तू हमें ज़ालिम लोगों का (ज़रिया) इम्तिहान न बना (85) और अपनी रहमत से हमें इन काफ़िर लोगों (के नीचे) से नजात दे (86) और हमने मूसा और उनके भाई (हारुन) के पास ‘वही’ भेजी कि मिस्र में अपनी क़ौम के (रहने सहने के) लिए घर बना डालो और अपने अपने घरों ही को मस्जिदें क़रार दे लो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ों और मोमिनीन को (नजात का) खुषख़बरी दे दो (87) और मूसा ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले तूने फिरआऊन और उसके सरदारों को दुनिया की ज़िन्दगी में (बड़ी) आराइष और दौलत दे रखी है (क्या तूने ये सामान इस लिए अता किया है) ताकि ये लोग तेरे रास्तें से लोगों को बहकाएॅ परवरदिगार तू उनके माल (दौलत) को ग़ारत (बरबाद) कर दे और उनके दिलों पर सख़्ती कर (क्योंकि) जब तक ये लोग तकलीफ देह अज़ाब न देख लेगें ईमान न लाएगें (88) (ख़ुदा ने) फरमाया तुम दोनों की दुआ क़ुबूल की गई तो तुम दोनों साबित कदम रहो और नादानों की राह पर न चलो (89) और हमने बनी इसराइल को दरिया के उस पार कर दिया फिर फिरआऊन और उसके लष्कर ने सरकषी की और ्यरारत से उनका पीछा किया-यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो कहने लगा कि जिस ख़ुदा पर बनी इसराइल इमान लाए हैं मै भी उस पर ईमान लाता हूँ उससे सिवा कोई माबूद नहीं और मैं फरमाबरदार बन्दों से हूँ (90) अब (मरने) के वक़्त ईमान लाता है हालाॅकि इससे पहले तो नाफ़रमानी कर चुका और तू तो फ़सादियों में से था (91) तो हम आज तेेरी रुह को तो नहीं (मगर) तेरे बदन को (तह नषीन होने से) बचाएँगें ताकि तू अपने बाद वालों के लिए इबरत का (बाइस) हो और इसमें तो ्यक नहीं कि तेरे लोग हमारी निषानियों से यक़ीनन बेख़बर हैं (92) और हमने बनी इसराइल को (मालिक ्याम में) बहुत अच्छी जगह बसाया और उन्हं अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी तो उन लोगों के पास जब तक इल्म (न) आ चुका उन लोगों ने एख़्तेलाफ़ नहीं किया इसमें तो ्यक ही नहीं जिन बातों में ये (दुनिया में) बाहम झगड़े रहे है क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार इसमें फैसला कर देगा (93) पस जो कु़रान हमने तुम्हारी तरफ नाज़िल किया है अगर उसके बारे में तुम को कुछ ्यक हो तो जो लोग तुम से पहले से किताब (ख़़ुदा) पढ़ा करते हैं उन से पूछ के देखों तुम्हारे पास यक़ीनन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ किताब आ चुकी तो तू न हरगिज़ ्यक करने वालों से होना (94) न उन लोगों से होना जिन्होंने ख़ुदा की आयतों को झुठलाया (वरना) तुम भी घाटा उठाने वालों से हो जाओगे (95) (ऐ रसूल) इसमें ्यक नहीं कि जिन लोगों के बारे में तुम्हारे परवरदिगार को बातें पूरी उतर चुकी हैं (कि ये मुस्तहके़ अज़ाब हैं) (96) वह लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब देख (न) लेगें इमान न लाएॅगें अगरचे इनके सामने सारी (ख़ुदाई के) मौजिज़े आ मौजूद हो (97) कोई बस्ती ऐसी क्यों न हुयी कि इमान क़ुबूल करती तो उसको उसका इमान फायदे मन्द होता हाँ यूनूस की क़ौम जब (अज़ाब देख कर) इमान लाई तो हमने दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी में उनसे रुसवाई का अज़ाब दफा कर दिया और हमने उन्हंे एक ख़ास वक़्त तक चैन करने दिया (98) और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ हालाॅकि किसी ्यख़्स को ये एख़्तेयार नहीं (99) कि बगै़र ख़़ुदा की इजाज़त ईमान ले आए और जो लोग (उसूले दीन में) अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लेागें पर ख़़ुदा (कुफ्ऱ) की गन्दगी डाल देता है (100) (ऐ रसूल) तुम कहा दो कि ज़रा देखों तो सही कि आसमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की निषानियाँ क्या) क्या कुछ हैं (मगर सच तो ये है) और जो लोग ईमान नहीं क़़ुबूल करते उनको हमारी निषानियाँ और डरावे कुछ भी मुफीद नहीं (101) तो ये लोग भी उन्हें सज़ाओं के मुन्तिज़र (इन्तजार में) हैं जो उनसे क़ब्ल (पहले) वालो ंपर गुज़र चुकी हैं (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अच्छा तुम भी इन्तज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ यक़ीनन इन्तज़ार करता हूँ (102) फिर (नुज़ूले अज़ाब के वक़्त) हम अपने रसूलों को और जो लोग ईमान लाए उनको (अज़ाब से) तलूउ बचा लेते हैं यूँ ही हम पर लाज़िम है कि हम इमान लाने वालों को भी बचा लें (103) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर तुम लोग मेरे दीन के बारे में ्यक में पड़े हो तो (मैं भी तुमसे साफ कहें देता हूँ) ख़़ुदा के सिवा तुम भी जिन लेागों की परसतिष करते हो मै तो उनकी परसतिष नहीं करने का मगर (हाँ) मै उस ख़ुदा की इबादत करता हूँ जो तुम्हें (अपनी कुदरत से दुनिया से) उठा लेगा और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मोमिन हूँ (104) और (मुझे) ये भी (हुक्म है) कि (बातिल) से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ कायम रख और मुषरेकीन से हरगिज़ न होना (105) और ख़ुदा को छोड़ ऐसी चीज़ को पुकारना जो न तुझे नफा ही पहुँचा सकती हैं न नुक़सान ही पहुँचा सकती है तो अगर तुमने (कहीं ऐसा) किया तो उस वक़्त तुम भी ज़ालिमों में (षुमार) होगें (106) और (याद रखो कि) अगर ख़ुदा की तरफ से तुम्हें कोई बुराई छू भी गई तो फिर उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं होगा और अगर तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो फिर उसके फज़ल व करम का लपेटने वाला भी कोई नहीं वह अपने बन्दों में से जिसको चाहे फायदा पहुँचाएँ और वह बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (107) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ लोगों तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास हक़ (क़ुरान) आ चुका फिर जो ्यख़्स सीधी राह पर चलेगा तो वह सिर्फ अपने ही दम के लिए हिदायत एख़्तेयार करेगा और जो गुमराही एख़्तेयार करेगा वह तो भटक कर कुछ अपना ही खोएगा और मैं कुछ तुम्हारा ज़िम्मेदार तो हूँ नहीं (108) और (ऐ रसूल) तुम्हारे पास जो ‘वही’ भेजी जाती है तुम बस उसी की पैरवी करो और सब्र करो यहाँ तक कि ख़ुदा तुम्हारे और काफिरों के दरम्यिान फैसला फरमाए और वह तो तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है (109)
सूरए यूनुस ख़त्म
मुख्य वस्तु
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सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ G’nsel Renda (1978). "The Miniatures of the Zubdat Al- Tawarikh". Turkish Treasures Culture /Art / Tourism Magazine. मूल से 4 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जुलाई 2020.