भौतिक विज्ञानी
वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं
(भौतिक शास्त्री से अनुप्रेषित)
भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं।
व्युत्पत्ति
संपादित करेंइस शब्द की उत्पति भौतिक विज्ञान शब्द से हुई।
रोजगार
संपादित करेंइस क्षेत्र में मुख्य रोजगार भौतिक विज्ञानी के रूप में अकादमिक संस्थानों, सरकारी प्रयोगशालओं और निजी उद्योगों में प्राप्त हो सकता है।[1]
सम्मान और पुरस्कार
संपादित करेंभौतिक विज्ञानियों के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार भौतिकी में नोबेल पुरस्कार है, जो की रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंसेस द्वारा सन् 1901 से दिया जा रहा है।
महत्वपूर्ण भौतिक विज्ञानियों की सूची
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आर्यभट्ट (476–550 ई.) : जिन्होने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन-काल उन्होने 23 घण्टा, 56 मिनट, और 4.1 सेकेण्ड निकाला था। उन्होने सूर्यग्रहण तथा [चन्द्रग्रहण]] की वैज्ञानिक व्याख्या की।
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निकोलस कोपरनिकस (1473 - 1543): 1530 में प्रकाशित पुस्तक डी रिवोलूशन्स (De Revolutionibus) में बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई एक दिन में चक्कर पूरा करती है और एक वर्ष में सूर्य का चक्कर पूरा करती है। कोपरनिकस ने तारों की स्थिति ज्ञात करने के लिए प्रूटेनिक टेबिल्स की रचना की जो अन्य खगोलविदों के बीच काफी लोकप्रिय हुई।
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गैलीलियो गैलिली (1564 - 1642): उन्होंने गीरती हुई वस्तु की समांग त्वरण दर ज्ञात किया। बृहस्पति ग्रह के चार विशाल चांद खोजे और प्रक्षेप्य गति को समझाने के लिये जाने जाते हैं।
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योहानेस केप्लर (1571—1630): ग्रहीय गति के तीन मूलभूत नियमों का सूत्रिकरण के लिए टैको ब्राहे के यथार्थ मापन का उपयोग, सूर्य के चारों ओर ग्रहों की दीर्घवर्त्तीय गति का वर्णन, दूरदर्शी का विकास, उत्तल नेत्रिका का निर्माण, लेंस की आवर्धक शक्ति का मान प्राप्त करने के लिए साधन का आविष्कार।
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इवान गेलिस्ता टाँरीसेली (1608 - 1647): बैरोमीटर (डिश पर उल्टाई हुई पारे से भरी एक ग्लास ट्यूब) का आविष्कार किया, यह खोज की कि प्रति दिन पारे की ऊँचाई में परिवर्तन वायुमंडलीय दबाव में बदलाव के कारण आता है, ज्यामिति एवं समाकलन गणित के क्षेत्र में काम किया और 1644 में "ओपेरा जोमेट्रिका" में तरल पदार्थ और प्रक्षेप्य गति पर अपना निष्कर्ष प्रकाशित किया।
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ब्लेज़ पास्कल (1623 - 1662): तरल पदार्थों के साथ प्रयोग किया, 1650 के दशक में पास्कल सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार, सब तरफ से घिरे तथा असंपीड्य द्रव में किसी बिन्दु पर दाब परिवर्तित किये जाने पर, द्रव के अन्दर के प्रत्येक बिन्दु पर दाब में उतना ही परिवर्तन आता है, यह साबित किया की हवा में वजन होता है और वायु-दाब से निर्वात का उत्पादन हो सकता है, एवं दबाव की इकाई – पास्कल को अपना नाम दिया।
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रॉबर्ट बॉयल (1627 - 1691): बॉयल का नियम सूत्रित किया जो आदर्श गैस के दाब और आयतन में व्युत्क्रमानुपाती सम्बंध स्थापित करता है (यदि बंद निकाय में ताप स्थिर रखा जाये) आधुनिक रशायन विज्ञान के संस्थापकों में से एक।
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क्रिश्चियन हुय्गेंस (1629 - 1695): शनि के छल्लों पर अध्ययन किया और उसके चंद्रमा टाइटन की खोज की, लोलक घड़ी का आविष्कार किया, प्रकाशिकी और केन्द्रापसारक बल पर अध्ययन किया, यह अनुमान लगाया की प्रकाश तरंगों से बनी होती है, (हुय्गेंस-फ्रेसनल सिद्धांत) जिससे तरंग-कण द्वैतता को समझने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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रॉबर्ट हूक (1635 - 1703): हुक नियम का प्रतिपादन किया, घड़ियों में इस्तेमाल होने वाले सर्पिल कमानी चरखे – बैलेंस स्प्रिंग का आविष्कार किया, ग्रेगोरियन दूरबीन और सबसे पहले पेंच विभाजित चतुर्भाग एवं अंकगणितीय मशीन का निर्माण किया तथा कोशिका सिद्धान्त में सुधार किया।
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सर आइज़क न्यूटन (1642 - 1727): अपनी पुस्तक फिलासफी नेचुरालिस् प्रिंसिपिया मैथेमैटिका (1687) में गति के तीन नियमों और सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त की स्थापना की, चिरसम्मत यांत्रिकी की नींव रखी, परावर्ती दूरदर्शक का आविष्कार किया, यह खोज की कि संक्षेत्र के प्रयोग से प्रकाश को उसके संघटक वर्णक्रमीय रंगों में तोड़ा जा सकता है, शीतलीकरण नियम का प्रतिपादन किया, अत्यणुकलन का सह-आविष्कार किया।
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हेनरी कैवेंडिश (1731 - 1810): अपनी आयु के महान अंग्रेज़ रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञाअनी, वायुमण्डल की रचना पर शोध, विभिन्न गैसों के गुणधर्म, जल संश्लेषण, विद्युत आकर्षण और प्रतिकर्षण के नियम, ऊष्मा का एक यांत्रिकीय सिद्धान्त, कैवेंडिश प्रयोग में पृथ्वी के भार की गणना और सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षक स्थिरांक ज्ञात किया।
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चार्ल्स ऑगस्टिन डी कूलॉम (1736 - 1806): सन् 1785 में एक नियम सूत्रित किया जिससे विद्युत आवेशित कणों के मध्य स्थिर वैद्युत अन्योन्य क्रिया (आकर्षण और प्रतिकर्षण) का वर्णन करता है। यह नियम विद्युत चुम्बकत्व के सिद्धान्त के विकास के लिए आवश्यक था। उनकी के सम्मान में विद्युत आवेश के मात्रक का नाम कूलाम C रखा गया।
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अलेसान्द्रो वोल्टा (1745 - 1827): 19वीं शदी में प्रथम विद्युत बैट्री (वोल्टिल पुंज) का निर्माण किया जिसके बाद विद्युत धारा पर काम किया। उनके सम्मान में विद्युत विभव के मात्रक का नाम वोल्ट (V) रखा गया।
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थॉमस यंग (1773 - 1829): प्रकाश के व्यतीकरण का सिद्धान्त स्थापित किया, एक शताब्दी पुराने सिद्धान्त को पुनर्जीवित किया जिसके अनुसार प्रकाश की तरंग प्रकृति रखता है, रोज़ेटा शिला को पढ़ने में महत्वपूर्ण सहयोग किया।
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हैन्स क्रिश्चियन ओर्स्टेड (1777 – 1851): विद्युत धारा से चुम्बकीय क्षेत्र के व्युत्पन्न होने की खोज की (विद्युतचुम्बकत्व का महत्वपूर्ण पहलू) 19वीं शदी के अन्त में विज्ञान ने अग्रिम आकृति ली। उनके सम्मन में सीजीएस पद्धति में चुम्बकीय H-क्षेत्र की शक्ति के मात्रक का नाम ओर्स्टेड (Oe) रखा।
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आन्द्रे मैरी एम्पीयर (1777 - 1836): विद्युत गतिकी के जनक; उन्होंने प्रदर्शित किया कि किस तरह से विद्युत धारा से चुम्बकीय क्षेत्र व्युत्पन्न किया जाता है। उन्होंने बताया कि जब दो समानान्तर तारों में धारा प्रवाहित हो रही हो तो उनपर आपस में चुम्बकीय क्षेत्र के कारण लगने वाला बल उन तारों में बहने वाली धारा के अनुक्रमानुपाती होता है (एम्पीयर का नियम)। उनके सम्मान में विद्युत धारा के मात्रक (एम्पियर) का नामकरण किया गया।
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जोसेफ वॉन फ्रॉनहोफर, (1787 - 1826): सूर्य के स्पेक्ट्रम में अदिप्त रेखाओं को पढ़ने वाले प्रथम व्यक्ति, इन रेखाओं को अब फ्रॉनहोपर रेखा के नाम से जाना जाता है। बड़े पैमाने पर विवर्तन ग्रेटिंग (एक उपकरण जो प्रकाश को प्रिज्म की तुलना में अधिक प्रभावी रूप से अपसरीत करता है) का प्रयोग करने वाले प्रथम व्यक्ति जिससे स्पेक्ट्रोस्कोपी की नींव रखी गई और प्रकाशिय काँच तथा अवर्णक दूरबीन का निर्माण सम्भव हो पाया।
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जॉर्ज ओम (1789 - 1854): उन्होंने पाया कि किसी चालक के दोनो सीरों पर विभवान्तर (वोल्टता) V और विद्युत धारा I एक दूसरे के अनुक्रमानुपाती होते हैं तथा उन्होंने यह भी पाया कि यह धारा परिपथ के प्रतिरोध R के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् I = V/R जिसे ओम के नियम के नाम से जाना जाता है और उनके सम्मान में विद्युत प्रतिरोध की इकाई (ओह्म) का नामकरण किया गया।
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माइकल फैराडे (1791 - 1867): फैराडे ने यह प्रदर्शित किया कि जब चुम्बकी क्षेत्र में परीवर्तन करते हैं तो यह विद्युत वाहक बल उत्पन्न करता है (फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम)। इसी सिद्धान्त की सहायता से आज अनेकों विद्युत उपकरणों का निर्माण सम्भव हुआ।
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क्रिश्चियन डॉप्लर (1803 - 1853): प्रथम व्यक्ति जिन्होंने प्रकाश एवं ध्वनि तरंगों की आवृति का स्रोत अथवा प्रेक्षक की गति के साथ सम्बंध स्थापित किया। एक परिकल्पना जिसे आज डॉप्लर प्रभाव के नाम से जाना जाता है।
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जेम्स प्रेस्कॉट जूल (1818 - 1889): ने खोज की कि ऊष्मा, ऊर्जा का ही एक रूप है। इसी विचार पर ऊर्जा संरक्षण नियम का उद्भव हुआ, लॉर्ड केल्विन ने इसी आधार पर ताप के मानक पैमाने की खोज की और जूल के नियमों का आधार भी यही खोज है।
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विलियम थॉमसन, बारोन केल्विन प्रथम (1824 - 1907): उष्मागतिकी के इतिहास में बहुत विस्तृत योगदान, ऊर्जा संरक्षण का नियम विकसित करने में योगदान, तरल गतिकी में भ्रमिल गति और तरंग गति का अध्ययन किया तथा ऊष्मा के गतिकीय सिद्धान्त की व्युत्पति की। ऊष्मागतिकी के प्रथम और द्वितीय नियम की व्युत्पति की।
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जेम्स क्लर्क माक्सवेल (1831-1879): विद्युत, चुम्बकत्व और प्रकाशिकी को वर्तमान विद्युत-चुम्बकीय सिद्धान्त में एकीकृत किया, विद्युत, चुम्बकत्व और प्रकाश को विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र का ही रूप सिद्ध करने के लिए मैक्सवेल समीकरणों को सूत्रबद्ध किया। मैक्सवेल–बोल्ट्समान वितरण को विकसित किया (गैसों का अणुगति सिद्धान्त का सांख्यिकीय अर्थ समझने में सहायक।)
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अर्नस्ट मैक (1838 - 1916): मैक संख्या में योगदान, उन्होंने प्रघाती तरंगों का अध्ययन किया और ध्वनि की गति से हवा के प्रवाह के विक्षुब्ध होने, तार्किक वस्तुनिष्ठावाद प्रभाव, का अध्ययन किया। न्यूटन के नियमों का पुनर्रावलोकन करने के कारण उन्हें आइंस्टीन का पूर्वगामी भी कहा जाता है।
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लुडविग बोल्ट्समान (1844 - 1906): सांख्यिकीय यांत्रिकी का विकास किया (प्रमाणुओं के गुणधर्म – द्रव्यमान, आवेश और सरंचना – द्रव्य के दृश्य गुण गुणधर्म ज्ञात किये जैसे श्यानता, ऊष्मा चालकता और विसरण), गैसों की अणुगति सिद्धान्त विकसित किया।
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विल्हेम कोन्राड रोन्टजेन (1845 - 1923): 1895 में रोंट्गन किरण अथवा एक्स-किरण तरंगदैर्घ्य परास में विद्युतचुंबकीय विकिरण निर्मित और संसूचित की, इसके लिए उन्हें 1901 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला। उनके सम्मान में तत्त्व 111 का नाम रोन्टजेनियम रखा गया।
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हेनरी बैकेरल (1852 – 1908): मेरी क्युरी और पियरे क्यूरी के साथ मिलकर रेडिओधर्मिता की खोज की जिसके लिए इन तीनो के लिए 1903 का भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
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हेंड्रिक लारेंज़ (1853 – 1928): प्रकाश का स्पष्ट विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त, ज़ीमान प्रभाव की सैद्धान्तिक व्याख्या के लिए 1902 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार पीटर ज़ीमान के साथ साझा किया, स्थानीय समय का सिद्धान्त विकसित किया और रूपांतरण समीकरणों को व्युत्पन किया जिसे बाद में दिक्-काल का वर्णन करने के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन के काम में लिया।
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जे जे थॉमसन (1856 - 1940): 1897 में कैथोड किरणें की खोज की जो उससे पहले ऋणावेशित अज्ञात अज्ञात कण के रूप में जाने जाते थे (बाद में इन्हें इलेक्ट्रॉन नाम दिया गया।), समस्थानिकों की खोज की, द्रव्यमान स्पेक्ट्रममापी का आविष्कार किया, इलेक्ट्रॉन की खोज और गैसों में विद्युत चालकता पर कार्य के लिए उन्हें 1906 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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निकोला टेस्ला (1856 - 1943): आधुनिक प्रत्यावर्ती धारा (AC) प्रवाह विकसित किया, तार-रहित संचार आधारित उपकरणों, रेडियो, ट्रांसफार्मर और विद्युत बल्ब के लिए डायनेमो का सैद्धान्तिक निर्माण किया, टेसला कुण्डली का आविष्कार किया।
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हाइनरिख़ हर्ट्ज़ (1857 - 1894): मैक्सवेल का प्रकाश का विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त की व्याख्या की, अभियांत्रिकी उपकरण से रेडियो स्पंद उत्सर्जित और संसूचित करके विद्युत चुम्कीय तरंगों के अस्तित्व को सिद्ध करने वाले प्रथम व्यक्ति।
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मैक्स प्लांक (1858 - 1947): सन् 1900 में क्वांटम यांत्रिकी की स्थापना की, फोटोन की ऊर्जा का इसकी आवृति के अनुक्रमानुपाती होना प्रदर्शित किया, इसके लिए उन्हें 1918 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया।
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पीटर ज़ीमान (1865 - 1943): जीमान प्रभाव (वर्णक्रम रेखाओं का चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में विभिन्न घटकों में विपाटित होना) की खोज के लिए 1902 का नोबेल पुरस्कार हेंड्रिक लारेंज़ के साथ साझा किया।
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मेरी क्युरी (1867 - 1934): हेनरी बैकेरल और अपने पति पियरे क्यूरी के साथ मिलकर रेडिओधर्मिता की खोज की। इन्हें दो बार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, १९०३ में भौतिकी में एवं १९११ में रसायनशास्त्र में।
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रोबर्ट ए मिल्लिकन (1868 - 1953): इलेक्ट्रॉन के आवेश का मापन किया, प्रकाश विद्युत प्रभाव पर कार्य किया, ब्रह्माण्ड किरणों के क्षेत्र में शोध कार्य में महत्वपूर्ण कार्य किया।
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अर्नेस्ट रदरफोर्ड (1871 - 1937): इन्हें "नाभिकीय भौतिकी के पिता" कहा जाता है, उन्होंने प्रदर्शित किया की परमाणु नाभिक धनावेशित होता है, कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रिया की सहायता से तत्त्व को अन्य में बदलने वाले प्रथम व्यक्ति, एल्फा और बीटा किरणों को विभेदित किया, 1908 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित।
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लिस मेिटनेर (1878 - 1968) - रेडियोसक्रियता और नाभिकीय भौतिकी पर कार्य किया, अपने साथी ओटो हैन के साथ रेडियोसक्रिय तत्त्व प्रोटैक्टिनियम की खोज की, टीम के कुछ सदस्यों ने ओटो हैन के साथ नाभिकीय विखण्डन की खोज की जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।
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अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955): उनके विशिष्ट और सामान्य आपेक्षिकता सिद्धान्त ने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी, ब्राउनी गति का वर्णन किया, प्रकाश विद्युत प्रभाव पर उनके कार्य के लिए उन्हें 1921 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मीला, द्रव्यामान ऊर्जा सम्बंध सूत्रित किया E = mc2, 300 से अधिक वैज्ञानिक पत्र प्रकाशित किये और 150 से अधिक गैर-विज्ञानी कार्य, "आधुनिक भौतिकी के पिता" माने जाते हैं।
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नील्स बोर (1885 - 1962): परमाणु के प्रमात्रा यान्त्रिकीय मॉडल (जिसे अब बोर मॉडल के नाम से जाना जाता है।) को काम में लिया और उसकी व्याख्या की कि इलेक्ट्रोन नाभिक के चारों ओर विविक्त कक्षाओं में गति करते हैं, इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा स्तरों और वर्णक्रम रेखाओं से सम्बंध स्थापित किया, 1922 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता।
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अर्विन श्रोडिन्गर (1887-1961): भौतिक निकाय की क्वांटम अवस्था में समय के साथ परिवर्तन की व्याख्या करते हुये 1926 में श्रोडिंगर समीकरण को सूत्रित किया, 1933 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया और इसके दो वर्ष बाद श्रोडिगर कैट नामक प्रयोग का विचार प्रस्तुत किया।
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ऍडविन हबल (1889 - 1953): आकाशगंगा के अलावा भी गैलेक्सियाँ होने और गैलेटिक अभिरक्त विस्थापन की खोज की, अन्य पृथ्वी से किसी विशिष्ट दूरी पर स्थित आकाशगंगाओं के दूर जाने के कारण उनसे आने वाले प्रकाश के वर्णक्रम की आवृति में कमी को अभिरक्त विस्थापन द्वारा समझाया जिसे अब हबल का नियम नाम से जाना जाता है।
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लुई द ब्रॉई (1892 - 1987): क्वांटम सिद्धांत पर शोध कार्य किया, इलेक्ट्रॉन में तरंग प्रकृति की खोज की। 1929 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कणों की तरंग सदृश प्रकृति पर उनके विचारों का इस्तेमाल अर्विन श्रोडिन्गर ने तरंग यांत्रिकी के सूत्रीकरण में किया।
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सत्येन्द्रनाथ बोस (1894-1974): गणितीय भौतिकी के विशेषज्ञ, भारतीय भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर सत्येन्द्र नाथ बोस का जन्म कोलकाता (तब कलकत्ता) में हुआ था। उन्हें 1920 के दशक में प्रमात्रा यान्त्रिकी पर अपने काम के लिए जाना जाता है, जिसने बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी और बोस-आइंस्टीन संघनन के सिद्धांत की नींव रखी। बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी का पालन करने वाले कणों को (बोसॉन) पॉल डिराक द्वारा उनका नाम दिया गया है।
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पीटर कपिज़ा (1894-1994): वर्ष 1934 में द्रव हीलियम बनाने के लिए (रुद्धोष्म सिद्धान्त पर आधारित) एक उपकरण विकसित किया जिससे बाद में 1937 में अति तरलता की खोज सम्भव हुई। उन्हें 1978 में "निम्न ताप भौतिकी के क्षेत्र में कार्य के लिए" आर्नो पेन्जियस और रोबर्ट वूड्रो विल्सन के साथ भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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वुल्फगांग पौली (1900 - 1958): क्वांटम भौतिकी के एक अग्रणी वैज्ञानिक, 1945 का भौतिकी में नोबेल पुरस्कार जीता (अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा नामांकित), प्रचक्रण सिद्धान्त सहित पाउली अपवर्जन नियम को सूत्रबद्ध किया (पदार्थ की बनावट का आधार), पाउली–विलर्स नियमितीकरण प्रकाशित किया, पाउली समीकरण को सूत्रित किया, वाक्यांश 'नॉट इवन रोंग' (गलत भी नहीं है) को अंकित किया।
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वर्नर हाइजनबर्ग (1901 - 1976): सन् 1925 में क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धान्तों को आव्युह के पदों में समझाने की विधि विकसित की, 1927 में प्रसिद्ध अनिश्चितता सिद्धान्त प्रकाशित किया, 1932 में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला।
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एन्रीको फर्मी (1901 - 1954): प्रथम नाभिकीय रिऐक्टर (शिकागो पाइल 1) विकसित किया, क्वांटम सिद्धान्त में योगदान, नाभिकीय और कण भौतिकी तथा सांख्यिकीय यांत्रिकी के क्षेत्र में योगदान दिया, 1938 में नोबेल पुरस्कार जीता, कृत्रिम रेडियोऐक्टिवता पर कार्य के लिए प्राइज़ इन फीजिक्स से सम्मनित।
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पॉल डिरॅक (1902 - 1984): प्रमात्रा यांत्रिकी और प्रमात्रा विद्युतगतिकी के प्रारम्भिक विकास में आधारभूत योगदान दिया, फर्मिऑनों के व्यवहार को समझाने के लिए डिरैक समीकरण को सूत्रबद्ध किया, प्रतिद्रव्य की उपस्थिति को प्रागुक्त किया, 1933 में अर्विन श्रोडिन्गर के साथ भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता।
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जॉन बर्दीन (1908 – 1991): ट्रान्जिस्टर की खोज के लिए विलियम शोक्ली और वॉल्टर ब्रैट्टैन के साथ 1956 का नोबेल पुरस्कार जीता और बाद में पुनः बीसीएस सिद्धान्त के नाम से जानी जाने वाली सांकेतिक अतिचालकता के लिए मूलभूत सिद्धान्त देने के लिए 1972 में लीयों नील कूपर और जॉन रॉबर्ट श्रीफर के साथ नोबेल पुरस्कार जीता।
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जॉन व्हीलर (1911 - 2008): द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में आपेक्षिकता के सामान्य सिद्धान्त को पुनर्जीवित किया, नाभिकीय विखण्डन के सिद्धान्तों की व्याख्या करने के लिए नील्स बोर के साथ काम किया, आइंस्टीन के स्वप्न 'एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत' को प्राप्त करने की कोशिश की, ब्लैक होल, क्वांटम फोम, वार्महोल और 'इट फ्रॉम बिट' जैसे शब्द दिये।
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चार्ल्स हार्ड टाउन्स (1915-): टाउन्स को सामान्यतः मेसर के अनुप्रयोग और सैद्धान्तिक क्षेत्र में कार्य तथा 'क्वांटम इलेक्ट्रॉनिक्स' जो लेसर और मेसर उपकरणों से जुड़ा है, पर काम के लिए जाना जाता है। उन्हें लेसर की खोज के लिए 1964 में निकोले बासोव और अलेक्सान्द्र एम प्रोखोरोफ के साथ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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योहीरो नांबू (1921-): उन्हें स्ट्रिंग सिद्धांत के संस्थापकों में से एक माना जाता है। 1960 में अपरमाणुक भौतिकी में पहले प्रबल अन्योन्य क्रिया की काइरल सममिति और बाद में दुर्बल-विद्युत अन्योन्य क्रिया और हिग्ग्स प्रक्रिया से 'स्वतः सममिति विघटन' की प्रक्रिया को सम्बद्ध करने के लिए 2008 का भौतिकी में नोबेल पुरस्कार।
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अब्दुस सलाम (1926-1996): प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त के क्षेत्र में विशाल योगदान, न्यूट्रिनो, न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल के आधुनिक सिद्धान्तों में महत्वपूर्ण योगदान, इसी प्रकार 'पति-सलाम मॉडल', चुम्बकीय फोटोन, सदिश मेसोन, ग्रांड यूनिफाइड सिद्धान्त और अतिसममिति तथा सबसे महत्वपूर्ण दुर्बलविद्युत सिद्धान्त में उनका महत्वपूर्ण योगदान है जिसके लिए उन्हें वर्ष 1979 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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हेनरी वे केंडल (1926-1999): कण भौतिक विज्ञानी जिन्होंने जेरोम आइज़क फ्राइडमैन और रिचार्ड इ टेलर के साथ 1990 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता। उन्हें यह पुरस्कार प्रोटोनों और परिबंध न्यूट्रोनों पर इलेक्ट्रॉनों की प्रबल अप्रत्यास्थ प्रकीर्णन के विषय में अग्रणी अन्वेष्ण के लिए मिला जिससे कण भौतिकी के क्वार्क मॉडल की खोज में एक आवश्यक महत्त्व रखता है।
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वेरा रुबिन (1928 -): गैलेक्सी घूर्णन दर के क्षेत्र में शुरुआती कार्य और गैलेक्सी आवर्तन वक्र के अध्ययन से गैलेक्सियों के प्रागुक्त कोणीय वेग और प्रेक्षित गति में विसंगति का निरावरण किया। इस परिकल्पना को गैलेक्सी आवर्तन समस्या के रूप में जाना गया; इससे बाद में डार्क मैटर के सिद्धान्त को समझने में सहायता मिली। उन्होंने क्षुद्रग्रह '5726 रुबिन' और 'रुबिन-फॉर्ड प्रभाव' को अपना नाम दिया। वर्तमान में वो 'कार्नेगी इंस्टीटूशन ऑफ़ वाशिंगटन' में खगोल-शोध विज्ञानी हैं।
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स्टीफन हॉकिंग (1942 -): रॉजर पेनरोज़ के साथ सामान्य सापेक्षता के ढांचे में गुरुत्वाकर्षण विलक्षणता (सिंगुलैरिटी) की मौजूदगी से सम्बंधित प्रमेय दिए, सैद्धांतिक रूप से अनुमान लगाया की ब्लैक होल विकिरण का उत्सर्जन करते हैं। (हॉकिंग विकिरण)
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वुल्फगांग केट्टेर्ले (1957-) 1924 में सत्येन्द्रनाथ बोस और अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा पूर्वानुमानित बोस-आइंस्टीन संघनन की प्राप्ति करने के लिए, एवं संघनन के गुणों पर प्रारंभिक अध्ययन करने के लिए 2001 में एरिक एलिन कॉर्नेल और कार्ल वीमैन के संग भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित।
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आंद्रे जीम (1958-) ठोस-अवस्था भौतिकी का अध्ययन, बाद में मध्याकार और नैनो भौतिकी के क्षेत्र में कैरियर बनाया। 2010 में ग्राफीन पर कार्य करने के लिए कोन्स्तांतिन नोवोसेलोव के साथ नोबेल पुरस्कार मिला। जीम ने ने 1997 में पानी स्केलिंग पर चुम्बकत्व के सम्भावित प्रभावों का अध्ययन किया जो बाद में जल के प्रतिचुम्बकीय प्रोत्थापन की खोज के रूप में परीणत हुई।
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लीन हाउ (1959-) प्रथम व्यक्ति जिसने प्रकाश कीरण को धीमा किया और वर्ष 2001 में बोस-आइंस्टीन संघनन की सहायता से पूर्णतः रोक दिया। 'क्वांटम एन्क्रिप्शन' और 'क्वांटम अभिकल' में निहित एक प्रक्रिया जिससे प्रकाश का द्रव्य में परिवर्तन और पुनः द्रव्य का प्रकाश में रुपान्तरण। अतिशिततित परमाणु और नैनोस्कोपिक पैमाने के मध्य विचित्र अन्योन्य क्रिया तथा विद्युतचुम्बकत्व प्रेरित पारदर्शित के साथ प्रयोग एवं शोध।
ये भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ डॉ॰ सीमिन रुबाब. "भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर". रोजगार समाचार. मूल से 26 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जून 2013.