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१ जुलाई २००९

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डोडो का १६२६ में निर्मित एक चित्र
डोडो मॉरीशस का एक स्थानीय उड़ान रहित पक्षी था। यह पक्षी कबूतर और फाख्ता के परिवार से संबंधित था। डोडो मुर्गे के आकार का लगभग एक मीटर उँचा और २० किलोग्राम वजन का होता था। इसके कई दुम होती थीं। यह अपना घोंसला ज़मीन पर बनाया करता था तथा इसकी खुराक मे स्थानीय फल शामिल थे। यह एक भारी-भरकम, गोलमटोल पक्षी था व इसकी टांगें छोटी व कमजोर थीं, जो उसका वजन संभाल नहीं पाती थीं। इसके पंख भी बहुत ही छोटे थे, जो डोडो के उड़ने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस कारण ये ना तो तेज दौड़ सकता था, ना उड़ ही सकता था। अपनी रक्षा क्षमता भुलाने के कारण ये इतने असहाय सिद्ध हुए, कि चूहे तक इनके अंडे व चूजों को खा जाते थे। वैज्ञानिकों ने डोडो की हड्डियों को दोबारा से जोड़ कर इसे आकार देने का प्रयास किया है, और अब इस प्रारूप को मॉरीशस इंस्टीट्यूट में देखा जा सकता है। १६४० तक डोडो पूरी तरह से विलुप्त हो गए। इसे अंतिम बार लंदन में १६३८ में जीवित देखा गया था। यह मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में भी दिखता है।  विस्तार में...

२ जुलाई २००९

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नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष
नालंदा विश्वविद्यालय बिहार में स्थित एक प्राचीन विश्वविद्यालय था। देश विदेश से यहाँ विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। आज इसके केवल खंडहर देखे जा सकते हैं। नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना ४५०-४७० ई. में गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सहयोग मिला। महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों के साथ साथ विदेशी शासकों से भी दान मिला था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व १२वीं शताब्दी तक बना रहा। यहां के नौ तल के पुस्तकालय में ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था।  विस्तार में...

३ जुलाई २००९

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पृथ्वी पर भूमध्य रेखा लाल रंग में दर्शित
भूमध्य रेखा पृथ्वी की सतह पर उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव से सामान दूरी पर स्थित एक काल्पनिक रेखा है। यह पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में विभाजित करती है। दूसरे शब्दों में यह पृथ्वी के केंद्र से सर्वाधिक दूरस्थ भूमध्यरेखीय उभार पर स्थित बिन्दुओं को मिलाते हुए ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा है। इस पर वर्ष भर दिन-रात बराबर होतें हैं, इसलिए इसे विषुवत रेखा भी कहते हैं। अन्य ग्रहों की विषुवत रेखा को भी सामान रूप से परिभाषित किया गया है। इस रेखा के उत्तरी ओर २३½° में कर्क रेखा है व दक्षिणी ओर २३½° में मकर रेखा है। भूमध्य रेखा का अक्षांश ०° एवं लम्बाई लगभग ४०,०७५ कि.मी है। यहां पर दिनमान के साथ साथ मौसम भी समान ही रहता है। वर्षा ऋतु और अधिक ऊंचाई के भागों को छोड़कर, इस रेखा के निकट वर्ष भर उच्च तापमान बना रहता है। पृथ्वी की सतह पर अधिकतर भूमध्य रेखीय क्षेत्र समुद्र का भाग है। भूमध्य रेखा का उच्चतम बिंदु ४६९० मीटर ऊंचाई पर कायाम्बे ज्वालामुखी, इक्वाडोर के दक्षिणी ढाल पर है। विस्तार में...

४ जुलाई २००९

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अपोलो १५ अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण

रॉकेट एक प्रकार का वाहन है जिसके उड़ने का सिद्धान्त न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया तथा बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया पर आधारित है। तेज गति से गर्म वायु को पीछे की ओर फेंकने पर रॉकेट को आगे की दिशा मे समान अनुपात का बल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कार्य करने वाले जेट विमान, अंतरिक्ष यान एवं प्रक्षेपास्त्र विभिन्न प्रकार के राकेटों के उदाहरण हैं। रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग से बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है। विस्तार में...

५ जुलाई २००९

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अमेरीकी वायु सेना के लडाकू जेट विमान

जेट विमान जेट इंजन से चलने वाला एक प्रकार का वायुयान है। यह विमान प्रोपेलर (पंखे) चालित विमानों से ज्यादा तेज और ज्यादा ऊँचाई तक उड़ सकते हैं। अपनी इन्हीं क्षमताओं के कारण आधुनिक युग में इनका बहुत प्रचार प्रसार हुआ। सैन्य विमान मुख्यतः जेट चालित ही होते है क्योंकि ये तेज गति से उड़ कर एवं तीव्र कोण पर शत्रु पर आक्रमण करने की क्षमता रखते हैं। इनके इंजन की कार्यक्षमता प्रोपेलर इंजन से बेहतर होती है इसीलिए जेट विमानों को लम्बी दूरी तक उड़ान भरने के लिए उपयुक्त माना गया है और आज इन्हें यात्री एवं माल को लम्बी दूरी तक ढोने के लिए सर्वोत्तम साधन माना जाता है। जेट विमान के एक कक्ष में कुछ ईंधन रखा जाता है। जब विमान चलना प्रारम्भ करता है तो विमान के सिरे पर बने छिद्र से बाहर की वायु इंजन में प्रवेश करती है। वायु के आक्सीजन के साथ मिलकर ईँधन अत्यधिक दबाव पर जलता है। विस्तार में...

६ जुलाई २००९

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मानव के हीमोग्लोबिन की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है ।

प्रोटीन एक जटिल नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रुप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में एमिनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पोलिमराइजेसन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीय स्वरूप, टर्सरी स्वरूप और क्वाटर्नरी स्वरूप प्रोटिन के चार प्रमुख स्वरुप है। विस्तार में...

७ जुलाई २००९

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वैद्यनाथ मिश
वैद्यनाथ मिश
नागार्जुन (३० जून १९११-५ नवंबर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिन्दी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। इनके पिता श्री गोकुल मिश्र तरउनी गांव के एक किसान थे और खेती के अलावा पुरोहिती आदि के सिलसिले में आस-पास के इलाकों में आया-जाया करते थे। उनके साथ-साथ नागार्जुन भी बचपन से ही “यात्री” हो गए। आरंभिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से संस्कृत में हुई किन्तु आगे स्वाध्याय पद्धति से ही शिक्षा बढ़ी। राहुल सांकृत्यायन के “संयुक्त निकाय” का अनुवाद पढ़कर वैद्यनाथ की इच्छा हुई कि यह ग्रंथ मूल पालि में पढ़ा जाए। इसके लिए वे लंका चले गए जहाँ वे स्वयं पालि पढ़ते थे और मठ के “भिक्खुओं” को संस्कृत पढ़ाते थे। यहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली। विस्तार से पढ़ें

८ जुलाई २००९

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अफ्रीका महाद्वीप का उपग्रह से लिया गया चित्र
एशिया के बाद अफ़्रीका (अंग्रेजी- ऍफ़्रिका) विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह ३७१४' उत्तरी अक्षांश से ३४५०' दक्षिणी अक्षांश एवं १७३३' पश्चिमी देशान्तर से ५१२३' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। अफ्रीका महाद्वीप से होकर मुख्य मध्याह्न रेखा (०) देशान्तर रेखा घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। क्षेत्रफल और जनसंख्‍या की दृष्टि से अफ्रीका एशिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। विस्तार से पढ़ें

९ जुलाई २००९

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अयोध्या प्रसाद खत्री
अयोध्या प्रसाद खत्री (१८५७-४ जनवरी १९०५) का नाम हिन्दी कविता में खड़ी बोली के महत्व की स्थापना करने वाले प्रमुख लोगों में सबसे पहले लिया जाता है। उनका जन्म बिहार में हुआ था बाद में वे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कलक्‍टरी के पेशकार के पद पर नियुक्त हुए। १८७७ में उन्होंने हिन्दी व्याकरण नामक खड़ी बोली की पहली व्याकरण पुस्तक की रचना की जो बिहार बन्धु प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई थी। १८८८ में उन्‍होंने 'खडी बोली का आंदोलन' नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाई। भारतेंदु युग से हिन्दी-साहित्य में आधुनिकता की शुरूआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर भाषा और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, खड़ीबोली हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन पद्य की भाषा के रूप में ब्रजभाषा का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने गद्य और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। विस्तार से पढ़ें

१० जुलाई २००९

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मैथन बांध
झारखंड प्रदेश में स्थित धनबाद से ५२ किमी दूर मैथन बांध दामोदर वैली कारपोरेशन का सबसे बड़ा जलाशय है। इसके आसपास का सौंदर्य पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। बराकर नदी के ऊपर बने इस बांध का निर्माण बाढ़ को रोकने के लिए किया गया था। बांध के नीचे एक पावर स्‍टेशन का भी निर्माण किया गया है, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपने आप में आधुनिकतम तकनीक का उदाहरण माना जाता है। इसकी परिकल्पना जवाहरलाल नेहरू ने की थी। इसके पास ही एक बहुत प्राचीन मां कल्‍याणेश्‍वरी का मंदिर भी है। लगभग ६५ वर्ग कि॰मी॰ में फैले इस बांध के पास एक झील भी है जहां नौकायन और आवासीय सुविधाएं उपलब्‍ध है। इसके अतिरिक्त पास ही एक मृगदाव तथा पक्षी विहार भी है, जहां पर्यटक जंगल के प्राकृतिक सौन्‍दर्य तथा विभिन्‍न किस्‍म के पशु-पक्षियों को देख सकते है। विस्तार से पढ़ें

११ जुलाई २००९

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मल्लिकार्जुन एवं काशीविश्वनाथ मंदिर
पत्तदकल (कन्नड़ - ಪತ್ತದಕಲು) भारत के कर्नाटक राज्य में एक कस्बा है, जो भारतीय स्थापत्यकला की वेसर शैली के आरम्भिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिये प्रसिद्ध है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। पत्तदकल दक्षिण भारत के चालुक्य वंश की राजधानी बादामी से २२ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। एहोल को स्थापत्यकला का विद्यालय माना जाता है, बादामी को महाविद्यालय तो पत्तदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है।पत्तदकल शहर उत्तरी कर्नाटक राज्य में बागलकोट जिले में मलयप्रभा नदी के तट पर बसा हुआ है। यह बादामी शहर से २२ कि.मि. एवं ऐहोल शहर से मात्र १० कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन २४ कि॰मी॰ दक्षिण-पश्चिम में बादामी है। विस्तार से पढ़ें

१२ जुलाई २००९

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गोब पर कर्क रेखा लाल रंग में दर्शित
कर्क रेखा उत्तरी गोलार्ध में भूमध्य रेखा‎ के समानान्तर निर्देशांक: २३°२६′२२″उ. ०°०′०″प. / २३.४३९४४, ० पर, ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा हैं। यह रेखा पृथ्वी पर पांच प्रमुख अक्षांश रेखाओं में से एक हैं जो पृथ्वी के मानचित्र पर परिलक्षित होती हैं। कर्क रेखा पृथ्वी की उत्तरतम अक्षांश रेखा हैं, जिसपर सूर्य दोपहर के समय लम्बवत चमकता हैं। इस रेखा की स्थिति स्थायी नहीं हैं वरन इसमें समय के अनुसार हेर-फेर होता रहता है। २१ जून को जब सूर्य इस रेखा के एकदम ऊपर होता है, उत्तरी गोलार्ध में वह दिन सबसे लंबा व रात सबसे छोटी होती है। यहां इस दिन सबसे अधिक गर्मी होती है(स्थानीय मौसम को छोड़कर), क्योंकि सूर्य की किरणें यहां एकदम लंबवत पड़ती हैं। कर्क रेखा के सिवाय उत्तरी गोलार्ध के अन्य उत्तरतर क्षेत्रों में भी किरणें अधिकतम लंबवत होती हैं। इस समय कर्क रेखा पर स्थित क्षेत्रों में परछाईं एकदम नीचे छिप जाती है या कहें कि नहीं बनती है। इस कारण इन क्षेत्रों को अंग्रेज़ी में नो शैडो ज़ोन कहा गया है।  विस्तार में...

११ जुलाई २००९

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मल्लिकार्जुन एवं काशीविश्वनाथ मंदिर
पत्तदकल (कन्नड़ - ಪತ್ತದಕಲು) भारत के कर्नाटक राज्य में एक कस्बा है, जो भारतीय स्थापत्यकला की वेसर शैली के आरम्भिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिये प्रसिद्ध है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। पत्तदकल दक्षिण भारत के चालुक्य वंश की राजधानी बादामी से २२ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। एहोल को स्थापत्यकला का विद्यालय माना जाता है, बादामी को महाविद्यालय तो पत्तदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है।पत्तदकल शहर उत्तरी कर्नाटक राज्य में बागलकोट जिले में मलयप्रभा नदी के तट पर बसा हुआ है। यह बादामी शहर से २२ कि.मि. एवं ऐहोल शहर से मात्र १० कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन २४ कि॰मी॰ दक्षिण-पश्चिम में बादामी है। विस्तार से पढ़ें

१३ जुलाई २००९

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महान साहित्यकार रांगेय राघव
महान साहित्यकार रांगेय राघव
रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम आयु लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिष्पाठित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए। आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। ये मार्क्सवादी थे। इनकी प्रमुख कृतियों में घरौंदा, अजेय एवं कब तक पुकारूं प्रसिद्ध हैं। प्रेमचंदोत्तर कथाकारों की कतार में अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य, सृजन विविधता और विपुलता के कारण वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। विस्तार में...

१४ जुलाई २००९

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सहारा मरुस्थल
सहारा (अरबी: الصحراء الكبرى, "सबसे बड़ा मरूस्‍थल') विश्व का विशालतम गर्म मरूस्‍थल है। सहारा नाम रेगिस्तान के लिए अरबी शब्द सहरा ( صحراء) से लिया गया है जिसका अर्थ है मरुस्थल। यह अफ़्रीका के उत्तरी भाग में अटलांटिक महासागर से लाल सागर तक ५,६०० किलोमीटर की लम्बाई में एवं सूडान के उत्तर तथा एटलस पर्वत के दक्षिण १,३०० किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है। इसमे भूमध्य सागर के कुछ तटीय इलाके भी शामिल हैं। क्षेत्रफल में यह यूरोप के लगभग बराबर एवं भारत के क्षेत्रफल के दूने से अधिक है। माली, मोरक्को, मुरितानिया, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, नाइजर, चाड, सूडान, ट्यूनीशिया एवं मिस्र देशों में इस मरुस्थल का विस्तार है। दक्षिण मे इसकी सीमायें सहल से मिलती हैं जो एक अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय सवाना क्षेत्र है। यह सहारा को बाकी अफ्रीका से अलग करता है। सहारा एक निम्न मरुस्थलीय पठार है जिसकी औसत ऊँचाई ३०० मीटर है। विस्तार से पढ़ें

१५ जुलाई २००९

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नील नदी घाटी का दृश्य
संसार की सबसे लम्बी नदी नील है जो अफ्रीका की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया से निकलकर विस्तृत सहारा मरुस्थल के पूर्वी भाग को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में उतर पड़ती है। यह भूमध्य रेखा के निकट भारी वर्षा वाले क्षेत्रों से निकलकर दक्षिण से उत्तर क्रमशः युगाण्डा, इथियोपिया, सूडान एवं मिस्र से होकर बहते हुए काफी लंबी घाटी बनाती है जिसके दोनों ओर की भूमि पतली पट्टी के रुप में शस्यश्यामला दीखती है। यह पट्टी संसार का सबसे बड़ा मरूद्यान है। नील नदी की घाटी एक सँकरी पट्टी सी है जिसके अधिकांश भाग की चौड़ाई १६ किलोमीटर से अधिक नहीं है, कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई २०० मीटर से भी कम है। इसकी कई सहायक नदियाँ हैं जिनमें श्वेत नील एवं नीली नील मुख्य हैं। अपने मुहाने पर यह १६० किलोमीटर लम्बा तथा २४० किलोमीटर चौड़ा विशाल डेल्टा बनाती है। घाटी का सामान्य ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। विस्तार से पढ़ें

१६ जुलाई २००९

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रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी (८ अगस्त १९१५- ११ जुलाई २००३) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। १९३७ में लाहौर गवर्नमेन्ट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम ए करने के बाद साहनी ने १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया।... विस्तार से पढ़ें

१७ जुलाई २००९

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बांद्रा-वर्ली समुद्रसेत
बांद्रा-वर्ली समुद्रसेतु ८-लेन का, तार-समर्थित कांक्रीट से निर्मित पुल है। यह बांद्रा को मुम्बई के पश्चिमी और दक्षिणी (वर्ली) उपनगरों से जोड़ता है और यह पश्चिमी-द्वीप महामार्ग प्रणाली का प्रथम चरण है। १६ अरब रुपये (४० करोड़ $) की महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम की इस परियोजना के इस चरण को हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा पूरा किया गया है। इस पुल का उद्घाटन ३० जून, २००९ को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी ने किया गया लेकिन जन साधारण के लिए इसे १ जुलाई, २००९ को मध्य-रात्रि से खोला गया। साढ़े पांच किलोमीटर लंबे इस पुल के बनने से बांद्रा और वर्ली के बीच यात्रा में लगने वाला समय ४५ मिनट से घटकर मात्र ६-८ मिनट रह गया है। इस पुल की योजना १९८० के दशक में बनायी गई थी, किंतु यह यथार्थ रूप में अब जाकर पूर्ण हुआ है। यह सेतु मुंबई और भारत में अपने प्रकार का प्रथम पुल है। विस्तार से पढ़ें

१८ जुलाई २००९

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आर्मीनिया का झंडा
आर्मीनिया (आर्मेनिया) यूरोप के काकेशस क्षेत्र में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी येरेवन है। आर्मीनिया २३ अगस्त १९९० को सोवियत संघ से स्वतंत्रता हुआ था परन्तु इसकी स्थापना की घोषणा २१ सितंबर, १९९१ को हुई एवं इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता २५ दिसंबर को मिली। इसकी सीमाएँ तुर्की, जॉर्जिया, अजरबैजान और ईरान से लगी हुई हैं। यहाँ ९७.९ प्रतिशत से अधिक आर्मीनियाई जातीय समुदाय के अलावा १.३% यज़िदी, ०.५% रूसी और अन्य अल्पसंख्यक निवास करते हैं। आर्मेनिया प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर वाला देश है। आर्मेनिया के राजा ने चौथी शताब्दी मे ही ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था, इस प्रकार आर्मेनिया राज्य ईसाई धर्म ग्रहण करने वाला प्रथम राज्य है। देश में आर्मेनियाई एपोस्टलिक चर्च सबसे बड़ा धर्म है। इसके अलावा यहां ईसाईयों, मुसलमानों और अन्य संप्रदायों का छोटा समुदाय है। कुछ ईसाईयों की मान्यता है कि नोह आर्क और उसका परिवार यहीं आकर बस गया था। विस्तार से पढ़ें

१९ जुलाई २००९

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भीमबेटका के शैलचित्र
भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के राजसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानवों द्वारा बनाये गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। ये शैलचित्र लगभग नौ हजार वर्ष पुराने हैं। अन्य पुरावशेषों में प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी यहां मिले हैं। भीम बेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त १९९० में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। ये भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिन्ह हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से सम्बन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका पड़ा। ये गुफायें मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। इनकी खोज वर्ष १९५७-१९५८ में डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी। विस्तार से पढ़ें

२० जुलाई २००९

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दक्षिणी अमरीका
दक्षिणी अमरीका पश्चिमी गोलार्द्ध का एक महाद्वीप है। दक्षिणी अमेरिका उत्तर में १३° उत्तरी अक्षांश (गैलिनस अन्तरीप) से दक्षिण में ५६° दक्षिणी अक्षांश (हार्न अन्तरीप) तक एवं पूर्व में ३५° पश्चिमी देशान्तर (रेशिको अन्तरीप) से पश्चिम में ८१° पश्चिमी देशान्तर (पारिना अन्तरीप) तक विस्तृत है। इसके उत्तर में कैरीबियन सागर तथा पनामा नहर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व में अन्ध महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महासागर स्थित हैं। भूमध्य रेखा इस महाद्वीप के उत्तरी भाग से एवं मकर रेखा मध्य से गुजरती है जिसके कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। विश्व का चौथा बड़ा यह महाद्वीप भारत से लगभग ६ गुणा बड़ा है। पनामा नहर इसे पनामा भूडमरुमध्य पर उत्तरी अमरीका महाद्वीप से अलग करती है। किंतु पनामा देश उत्तरी अमरीका में आता है।  विस्तार में...

२१ जुलाई २००९

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नेल्सन मंडेला:दक्षिण अफ़्रीका के नायक
नेल्सन रोलीह्लला मंडेला (जन्म १८ जुलाई १९१८) दक्षिण अफ्रीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति हैं। ये यहां के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहे अपार्थीड के प्रमुख विरोधी एवं अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस एवं इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी के २७ वर्ष उम्रकैद में रॉबेन द्वीप पर कारागार में रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ते हुए बिताए। सजा से भी इनका उत्साह कम ना हुआ। इन्होंने जेल में कैदी अश्वेतों को भी लामबंद करना शुरु किया। इस कारण लोग इन्हें जेल में मंडेला विश्वविद्यालय कहा करते थे। दक्षिण अफ्रीका एवं समूचे विश्व में रंगभेद नीति का विरोध करते हुए जहां श्री मंडेला पूरी दुनिया में स्वतंत्रता एवं समानता के प्रतीक बन गये थे वहीं रंगभेद की नीति पर चलने वाली सरकारें श्री मंडेला को साम्यवादी एवं आतंकवादी बताती थीं।  विस्तार में...

२२ जुलाई २००९

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हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह नगर अब हम्पी नाम से जाना जाता है। इस नगर के अब खंडहर ही अवशेष है। इन्हें देखने से प्रतीत होता है कि किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा विश्व के विरासत स्थलों की संख्या में शामिल किया गया है। हर साल यहाँ हज़ारों की तादाद में सैलानी और तीर्थ यात्री आते हैं। हम्पी का विशाल फैलाव गोल चट्टानों के टीलों में विस्तृत है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक स्मारक चिह्न हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष.... आदि असंख्य इमारतें हैं। विस्तार से पढ़ें...

२३ जुलाई २००९

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दक्षिण मुंबई के कोलाबा उपनगर में स्थित लियोपोल्ड कैफ़े काफ़ी लोकप्रिय रेस्तराँ और बार है जहाँ बहुत बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक खाने-पीने आते हैं। यह मुंबई के सबसे पुराने ईरानी रेस्त्रांओं में से एक है और सुबह आठ बजे से रात १२ बजे तक खुला रहता है। यह रेस्त्राँ अपने अतिथयों से आग्रह करता है कि यदि आप उभरते हुए कवि, लेखक फ़िल्मी सितारे, विदेशी पर्यटक या संगीतकार हैं तो अपने फ़ोटो के साथ एक वाक्य लिखकर भेजें कि आपको यह रेस्त्रां-बार क्यों पसंद है और आपको वॉल ऑफ फ़ेम पर स्थान दिया जाएगा। अपने प्रचार के लिए यह अपने अतिथियों को चित्रित टीशर्ट, मग, गिलास और तश्तरियों की बिक्री भी करता है।विस्तार से पढ़ें...

२४ जुलाई २००९

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भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान या सार्वजनिक सेवा शामिल है। इस सम्मान की स्थापना २ जनवरी १९५४ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। इससे सम्मानित व्यक्ति के नाम के आगे कोई पदवी नही लगाते। शु्रुआत मे इसे मरणोपरांत देने का प्रावधान नही था, इसे १९५५ मे जोड़ा गया। तब इसे १० व्यक्तियों को मरणोपरांत प्रदान किया गया। मूल रूप में इस सम्मान के पदक का डिजाइन ३५ मिमि गोलाकार स्वर्ण मैडल था, जिसमें सामने सूर्य बना था, ऊपर हिन्दी मे भारत रत्न लिखा था, और नीचे पुष्प हार था।

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२५ जुलाई २००९

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डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय भारत के मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। इसको सागर विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना डॉ हरिसिंह गौर ने १८ जुलाई १९४६ को अपनी निजी पूंजी से की थी। अपनी स्थापना के समय यह भारत का १८वाँ विश्वविद्यालय था। किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है। सन १९८३ में इसका नाम डॉ॰हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय कर दिया गया। २७ मार्च २००८ से इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय की श्रेणी प्रदान की गई है। यह एक आवासीय एवं संबद्धता प्रदायक विश्वविद्यालय है। मध्य प्रदेश में छ: जिले सागर जिला, दमोह जिला, पन्ना जिला, छतरपुर जिला, टीकमगढ़ जिला और छिंदवाड़ा जिला इसके क्षेत्राधिकार में हैं। इस क्षेत्र के १३३ कॉलेज इससे संबद्ध हैं, जिनमें से ५६ शासकीय और ७७ निजी कॉलेज हैं। विस्तार से पढ़ें...

२६ जुलाई २००९

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चित्र:Abhinav Bindra01.jpg
अभिनव बिंद्रा १० मीटर एयर रायफल स्पर्धा में भारत के एक प्रमुख निशानेबाज हैं । वे ११ अगस्त २००८ को बीजिंग ओलंपिक खेलों की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्‍वर्ण पदक जीतकर व्‍यक्तिगत स्‍वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं। क्वालीफाइंग मुकाबले में ५९६ अंक हासिल करने के बाद बिंद्रा ने जबर्दस्त मानसिक एकाग्रता का परिचय दिया और अंतिम दौर में १०४.५ का स्कोर किया। उन्होंने कुल ७००.५ अंकों के साथ स्वर्ण पर निशाना साधने में कामयाबी हासिल की। बिंद्रा ने क्वालीफाइंग मुकाबले में चौथा स्थान हासिल किया था, जबकि उनके प्रतियोगी गगन नारंग बहुत करीबी अंतर से फाइनल में पहुंच पाने से वंचित रह गए। वे नौवें स्थान पर रहे थे। पच्‍चीस वर्षीय अभिनव बिंद्रा एयर राफल निशानेबाजी में वर्ष २००६ में विश्व चैम्पियन भी रह चुके हैं। विस्तार से पढ़ें...

२७ जुलाई २००९

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दीप, दीपक, दीवा या दीया वह पात्र है जिसमें सूत की बाती और तेल या घी रख कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है लेकिन धातु के दीये भी प्रचलन में हैं। प्राचीनकाल में इसका प्रयोग प्रकाश के लिए किया जाता था पर बिजली के आविष्कार के बाद अब यह सजावट की वस्तु के रूप में अधिक प्रयोग होता है। हाँ धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों में इसका महत्व अभी भी बना हुआ है। यह पंचतत्वों में से एक अग्नि का प्रतीक माना जाता है। दीपक जलाने का एक मंत्र भी है जिसका उच्चारण सभी शुभ अवसरों पर किया जाता है। इसमें कहा गया है कि सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। विशिष्ट अवसरों पर जब दीपों को पंक्ति में रख कर जलाया जाता है तब इसे दीपमाला कहते हैं। विस्तार से पढ़ें...

२८ जुलाई २००९

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कुमारपाल पाल राजवंश के राजा रामपाल का पुत्र था। यह राजवंश चालुक्य वंशी राजाओं की सोलंकी जाति से संबंध रखता था। यह राजपरिवार की राजधानी गुजरात के अनहिलवाडा (आधुनिक काल में सिद्धपुर पाटण) में थी। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म विक्रम संवत ११४९ में, राज्याभिषेक ११९९ में और मृत्यु १२३० में हुई। ईस्वी संवत के अनुसार उनका राज्य ११३० से ११४० माना जाता है। तदनुसार उनके जन्म का समय ईसा के पश्चात ११४२ से ११७२ तक सिद्ध किया गया है। पालवंश के राजा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विकास के लिए जाने जाते हैं। इस परंपरा का पालन करते हुए कुमारपाल ने भी शास्त्रो के उद्वार के लिये अनेक पुस्तक भंडार स्थापन किये, हजारों मंदिरों का जीर्णोद्वार किया और नये बनवाकर भूमि को अलंकृत किया। विस्तार से पढ़ें...

२९ जुलाई २००९

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डल झील श्रीनगर, कश्मीर में एक प्रसिद्ध झील है। १८ किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई यह झील तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरी हुई है। जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है। इसमें सोतों से तो जल आता है साथ ही कश्मीर घाटी की अनेक झीलें आकर इसमें जुड़ती हैं। इसके चार प्रमुख जलाशय हैं गगरीबल, लोकुट डल, बोड डल तथा नागिन। लोकुट डल के मध्य में रूपलंक द्वीप स्थित है तथा बोड डल जलधारा के मध्य में सोनालंक द्वीप स्थित है। भारत की सबसे सुंदर झीलों में इसका नाम लिया किया जाता है। पास ही स्थित मुगल वाटिका से डल झील का सौंदर्य अप्रतिम नज़र आता है। पर्यटक जम्मू-कश्मीर आएँ और डल झील देखने न जाएँ ऐसा हो ही नहीं सकता। डल झील के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है यहाँ के शिकारे या हाउसबोट। सैलानी इन हाउसबोटों में रहकर झील का आनंद उठा सकते हैं। विस्तार से पढ़ें...

३० जुलाई २००९

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जयपुर का हवा महल
जयपुर राजस्थान की राजधानी है। इसकी स्थापना १७२८ में आंबेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा की गयी थी। अपनी समृद्ध परंपरा, संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध यह शहर अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। १८७६ में सवाई मानसिंह ने महारानी एलिज़ाबेथ और युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। जयपुर को योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में गिना जाता है। पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। शहर में बहुत से पर्यटन आकर्षण भी हैं, जैसे जंतर मंतर, हवा महल, सिटी पैलेस, गोविंद देवजी का मंदिर, तारामण्डल, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि। जयपुर के रौनक भरे बाजारों में दुकाने रंग बिरंगे सामानों से भरी है, जिसमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, वस्त्र, मीनाकारी सामान, आभूषण, राजस्थानी चित्र आदि शामिल हैं। विस्तार में...

३१ जुलाई २००९

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दिल्ली मेट्रो रेल
भारत की राजधानी दिल्ली में मेट्रो रेल परिवहन व्यवस्था है जो दिल्ली मेट्रो रेल निगम लिमिटेड द्वारा संचालित है। इसका आरंभ २४ दिसंबर, २००२ को शहादरा तीस हजारी लाईन से हुई। इस परिवहन व्यवस्था की अधिकतम गति ८०किमी/घंटा रखी गयी है और यह हर स्टेशन पर लगभग २० सेकेंड रुकती है। सभी ट्रेनों का निर्माण दक्षिण कोरिया की कंपनी रोटेम(ROTEM) द्वारा किया गया है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी योजना छह मार्गों पर चलने की थी जो दिल्ली के ज्यादातर हिस्से को जोड़ते थे। इस प्रारंभिक चरण को २००६ में पूरा किय़ा गया। बाद में इसका विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे शहरों गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गाँव और नोएडा तक किया जा रहा है। इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों में भी इसे चलाने की योजनाएं बन रही हैं। दिल्ली मेट्रो रेल व्यवस्था शुरु से ही ISO १४००१ प्रमाण-पत्र अर्जित करने में सफल रही है जो सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।  विस्तार में...