प्राचीन भारतीय ग्रन्थकारों की सूची
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संपादित करेंछन्दशास्त्र
संपादित करेंसंस्कृत छन्दशास्त्र से सम्बन्धित लगभग १५० ग्रन्थ ज्ञात हैं जिनमें कोई ८५० छन्दों की परिभाषा और वर्णन है।
- इसकी टीकाएं-
- जयदेवकृत -- जयदेवछन्द (६ठी शताब्दी)
- गणस्वामी -- जानाश्रयीछन्दोविचितिः (६ठी शताब्दी)
- अज्ञात -- छन्दोरत्नमञ्जूषा (६ठी शताब्दी)
- भट्ट हलायुध -- छन्दशास्त्र का भाष्य (१०वीं शताब्दी)
- लक्ष्मीनाथसुतचन्द्रशेखर -- पिङ्गलभावोद्यात
- चित्रसेन -- पिङ्गलटीका
- रविकर -- पिङ्गलसारविकासिनी
- राजेन्द्र दशावधान -- पिङ्गलतत्वप्रकाशिका
- लक्ष्मीनाथ -- पिङ्गलप्रदीप
- वंशीधर -- पिङ्गलप्रकाश
- वामनाचार्य -- पिङ्गलप्रकाश
- जयकीर्ति - छन्दोनुशासन
- क्षेमेन्द्र - सुवृत्त तिलक
- केदार भट्ट - वृत्तरत्नाकर
- विरहांक - वृत्तजात समुच्चय
- हेमचन्द्राचार्य - छन्दानुशासन
- गंगादास - छन्दोमञ्जरी
- अज्ञात (पूना के भंडारकर संस्था में सुरक्षित) - कविदर्पण
- अज्ञात (पूना के भंडारकर संस्था में सुरक्षित) - वृत्तदीपका
- अज्ञात (पूना के भंडारकर संस्था में सुरक्षित) - छन्दसार
- अज्ञात (पूना के भंडारकर संस्था में सुरक्षित) - छान्दोग्योपनिषद
- दामोदर मित्र - वाणीभूषण
- अन्य ग्रन्थों में छन्दशास्त्र का वर्णन
- आचार्य भरत - नाट्यशास्त्र (अध्याय १४, १५)
- अग्निपुराण (अध्याय १)
- वाराहमिहिरकृत - बृहत्संहिता
- कालिदास (दन्तकथा के अधार पर) - श्रुतिबोध
दर्शन के प्रमुख ग्रन्थ
संपादित करें- न्यायसूत्र - गौतम
- न्यायभाष्य - वात्स्यायन
- न्यायवार्तिक - उद्योतकर द्वारा न्यायभाष्य पर टीका
- न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका - वाचस्पति मिश्र द्वारा न्यायवार्तिक के ऊपर टीका
- न्यायसूचीनिबन्ध - वाचस्पति मिश्र
- न्यायसूत्रधार - वाचस्पति मिश्र
- न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि - उदयन द्वारा न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका की टीका (984 ई)
- न्यायकुसुमांजलि - 'आस्तिक' न्याय का प्रथम व्यवस्थित ग्रन्थ
- आत्मतत्त्वविवेक, किरणावली, न्यायपरिशिष्ट - उदयन
- न्यायमंजरी - जयन्त भट्ट (१०वीं शताब्दी)
- तार्किकरक्षा - वरदराज (१२वीं शताब्दी)
- तर्कभाषा - केशव मिश्र (१३वीं शताब्दी)
- तत्त्वचिंतामणि - गंगेशोपाध्याय (12वीं शताब्दी) - नव्यन्याय का प्रथम प्रमुख ग्रन्थ है।
- न्यायनिबन्धप्रकाश - गंगेश उपाध्याय के पुत्र वर्धमान उपाध्याय द्वारा रचित (१२२५ ई)। यद्यपि यह न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि की टीका है, किन्तु इसमें उनके पिता गंगेश उपाध्याय के विचारों का समावेश है।
- आलोक - जयदेव (१३वीं शताब्दी, तत्त्वचिन्तामणि की टीका)
- तत्त्वचिन्तामणिव्याख्या - वासुदेव सार्वभौम (१६वीं शताब्दी , नवद्वीप के नव्यन्याय सम्प्रदाय की प्रथम श्रेष्ठ कृति)
- तत्त्वचिन्तामणिदीधिति, पदार्थखण्डन - रघुनाथ शिरोमणि (नवद्वीप के नव्यन्याय सम्प्रदाय की दूसरी महत्वपूर्ण कृतियाँ)
- न्यायसूत्रवृत्ति - विश्वनाथ (१७वीं शताब्दी)
- तर्कसंग्रह दीपिका - अन्नंभट्ट (१७वीं शताब्दी, इनमें प्राचीन न्याय एवं नव्यन्याय तथा वैशेषिक दर्शनों का समिश्रण है।)
- वैशेषिकसूत्र - कणाद -- वैशेषिक दर्शन का प्राचीनतम ग्रन्थ
- रावणभाष्य और भारद्वाजवृत्ति - वैशेषिकसूत्र की दो टीकाएं, अनुपलब्ध
- पदार्थधर्मसंग्रह - प्रशस्तपाद (४थी शताब्दी ; यद्यपि इसे प्रायः वैशेषिकसूत्र का भाष्य समझा जाता है किन्तु यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है।)
- दशपदार्थशास्त्र - चन्द्र (६४८ ई ; पदार्थधर्मसंग्रह पर आधारित, सम्प्रति इसका केवल चीनी अनुवाद ही उपलब्ध है।)
- व्योमवती - व्योमशिव (८वीं शताब्दी ; पदार्थधर्मसंग्रह की सबसे प्राचीन उपलब्ध टीका)
- न्यायकन्दली - श्रीधर (९९१ ई) -- पदार्थधर्मसंग्रह की टीका
- किरणावली - उदयन (१०वीं शताब्दी) -- पदार्थधर्मसंग्रह की टीका
- लीलावती - श्रीवत्स (११वीं शताब्दी) -- पदार्थधर्मसंग्रह की टीका
- सप्तपदार्थी - शिवादित्य (११वीं शताब्दी) -- इसमें न्याय और वैशेषिक को एक ही सिद्धान्त के अंग के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- सांख्य-प्रवचन-सूत्र या सांख्यसूत्र ( १३वीं-१४वीं शताब्दी ; अपने वर्तमान रूप में यह कपिल का मूल ग्रन्थ नहीं है)
- सांख्यकारिका - ईश्वरकृष्ण (ई. तृतीय शताब्दी)
- तत्व समास -
- तत्वकौमुदी - वाचस्पति मिश्र (भाष्यग्रन्थ)
- सांख्यप्रवचनभाष्य - विज्ञानभिक्षु (१६वीं शताब्दी ; भाष्यग्रन्थ)
- मठरावृत्ति - मठराचार्य (भाष्यग्रन्थ)
- योगसूत्र - पतंजलि
- व्यासभाष्य - व्यास मुनि द्वारा लिखित योगसूत्रों की सर्वोत्तम व्याख्या
मीमांसा दर्शन
संपादित करें- मीमांसासूत्र - महर्षि जैमिनि
वेदान्त दर्शन
संपादित करें- ब्रह्मसूत्र - महर्षि व्यास द्वारा रचित इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है।
जैन दर्शन
संपादित करें- जैनागम - महावीर स्वामी के उपदेश 41 सूत्रों में संकलित हैं, जो जैनागमों में मिलते हैं।
- तत्वार्थाधिगम सूत्र - उमास्वाति (300 ई. ; जैन दर्शन का प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्र है।)
बौद्ध दर्शन
संपादित करें- त्रिपिटक (सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक) - बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों में संकलित हैं। ये पिटक बौद्ध धर्म के आगम हैं।
- अभिधर्मकोश - बसुबन्धु
- प्रज्ञापारमितासूत्र -
- लंकावतारसूत्र -
व्याकरण
संपादित करेंरचनाकार | कृति |
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आपस्तम्ब | धर्मसूत्र |
कात्यायन | वार्तिक |
पाणिनि | अष्टाध्यायी |
पतंजलि | महाभाष्य , योग सूत्र |
पिंगल | छन्दशास्त्र |
शाकटायन | लक्षणशास्त्र |
शौनक | ऋग्वेद प्रातिशाख्य, बृहद्देवता, चरणव्यूह, ऋग्वेद की ६ अनुक्रमणियाँ |
वररुचि | प्राकृतप्रकाश |
यास्क | निरुक्त |
आयुर्वेद
संपादित करेंरचयिता | कृति |
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चरक | चरक संहिता |
कश्यप | कश्यप संहिता |
माधव | निदान |
सुश्रुत | सुश्रुत संहिता |
वाग्भट | अष्टांग संग्रह अष्टांग हृदय संहिता |
ज्योतिष
संपादित करेंशास्त्र | शास्त्रकार | रचनाकाल |
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भृगुसंहिता | भृगु मुनि | |
सारावली | कल्यान वर्मन | |
बृहत् पराशर होरा शास्त्र | पाराशर | |
उत्तरकालामृत | कालीदास (कवि कालिदास से भिन्न) | तेरहवीं शताब्दी |
चमत्कार चिंतामणि | भट्ट नारायण | |
बृहज्जातकम् | वराहमिहिर | |
बृहत्संहिता | वराहमिहिर | |
पञ्चसिद्धान्तिका | वराहमिहिर |
गणित
संपादित करेंकृतिकार | कृति |
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आर्यभट | आर्यभटीय, आर्यसिद्धान्त |
बौधायन | शुल्बसूत्र, बौधायन श्रौतसूत्र, धर्मसूत्र |
भास्कराचार्य प्रथम | आर्यभटीय भाष्य, महाभास्करीय, लघुभास्करीय |
भास्कर द्वितीय | सिद्धान्तशिरोमणि (जिसके चार भाग हैं: लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित, और गोलाध्याय) |
ब्रह्मगुप्त | ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त |
हलायुध | मृतसञ्जीवनी |
महावीराचार्य | गणितसारसंग्रह |
परमेश्वर | भटदीपिका, कर्मदीपिका, परमेश्वरी, सिद्धान्तदीपिका, विवरण, दृग्गणित, गोलदीपिका, ग्रहणमन्दन, ग्रहनव्याख्यादीपिका, वाक्यकरण |
वराहमिहिर | पञ्चसिद्धान्तिका, बृहत्संहिता, बृहत जातक, दैवज्ञ वल्लभ, लघु जातक, योग यात्रा, विवाह पटल |
वीरसेन | धवला |
प्रमुख वास्तुशास्त्रीय ग्रन्थ
संपादित करें३५० से भी अधिक ग्रन्थों में स्थापत्य की चर्चा मिलती है। इनमें से प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-[1][2]
- अपराजितपृच्छा (रचयिता : भुवनदेवाचार्य ; विश्वकर्मा और उनके पुत्र अपराजित के बीच वार्तालाप)
- ईशान-गुरुदेवपद्धति
- कामिकागम
- कर्णागम (इसमें वास्तु पर लगभग ४० अध्याय हैं। इसमें तालमान का बहुत ही वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक विवेचन है।)
- मनुष्यालयचन्द्रिका (कुल ७ अध्याय, २१० से अधिक श्लोक)
- प्रासादमण्डन (कुल ८ अध्याय)
- राजवल्लभ (कुल १४ अध्याय)
- तंत्रसमुच्चय
- वास्तुसौख्यम् (कुल ९ अध्याय)
- विश्वकर्मा प्रकाश (कुल १३ अध्याय, लगभग १३७४ श्लोक)
- विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र (कुल ८४ अध्याय)
- सनत्कुमारवास्तुशास्त्र
- वास्तुमण्डन
- मयशास्त्र (भित्ति सजाना)
- बिम्बमान (चित्रकला)
- शुक्रनीति (प्रतिमा, मूर्ति या विग्रह निर्माण)
- सुप्रभेदागम
- विष्णुधर्मोत्तर पुराण
- आगम (इनमें भी शिल्प की चर्चा है।)
- अग्निपुराण
- ब्रह्मपुराण (मुख्यतः वास्तुशास्त्र, कुछ अध्याय कला पर भी)
- वास्तुविद्या
- प्रतिमालक्षणविधानम्
- गार्गेयम्
- मानसार शिल्पशास्त्र (कुल ७० अध्याय; ५१०० से अधिक श्लोक; कास्टिंग, मोल्डिंग, कार्विंग, पॉलिशिंग, तथा कला एवं हस्तशिल्प निर्माण के अनेकों अध्याय)
- अत्रियम्
- प्रतिमा मान लक्षणम् (इसमें टूटी हुई मूर्तियों को सुधारने आदि पर अध्याय है।)
- दशतल न्याग्रोध परिमण्डल
- शम्भुद्भाषित प्रतिमालक्षण विवरणम्
- मयमतम् (मयासुर द्वारा रचित, कुल ३६ अध्याय, ३३०० से अधिक श्लोक)
- बृहत्संहिता (अध्याय ५३-६०, ७७, ७९, ८६)
- शिल्परत्नम् (इसके पूर्वभाग में 46 अध्याय कला तथा भवन/नगर-निर्माण पर हैं। उत्तरभाग में ३५ अध्याय मूर्तिकला आदि पर हैं।)
- युक्तिकल्पतरु (आभूषण-कला सहित विविध कलाएँ)
- शिल्पकलादर्शनम्
- समरांगणसूत्रधार (रचयिता : राजा भोज ; कुल ८४ अध्याय, ८००० से अधिक श्लोक)
- वास्तुकर्मप्रकाशम्
- मत्स्यपुराणम्
- गरुणपुराण
- कश्यपशिल्प (कुल ८४ अध्याय तथा ३३०० से अधिक श्लोक)
- भविष्यपुराण (मुख्यतः वास्तुशिल्प, कुछ अध्याय कला पर भी)
- अलंकारशास्त्र
- अर्थशास्त्र (खिडकी एवं दरवाजा आदि सामान्य शिल्प, इसके अलावा सार्वजनिक उपयोग की सुविधाएँ)
- चित्रकल्प (आभूषण)
- चित्रकर्मशास्त्र
- मयशिल्पशास्त्र (तमिल में)
- विश्वकर्मा शिल्प (स्तम्भों पर कलाकारी, काष्ठकला)
- अगत्स्य (काष्ठ आधारित कलाएँ एवं शिल्प)
- मण्डन शिल्पशास्त्र (दीपक आदि)
- रत्नशास्त्र (मोती, आभूषण आदि)
- रत्नपरीक्षा (आभूषण)
- रत्नसंग्रह (आभूषण)
- लघुरत्नपरीक्षा (आभूषण आदि)
- मणिमहात्म्य (lapidary)
- अगस्तिमत (lapidary crafts)
- अनंगरंग (काम कलाएँ)
- कामसूत्र
- रतिरहस्य (कामकलाएँ)
- कन्दर्पचूणामणि (कामकलाएँ)
- नाट्यशास्त्र (फैशन तथा नाट्यकलाएँ)
- नृतरत्नावली (फैशन तथा नाट्यकलाएँ)
- संगीतरत्नाकर ((फैशन, नृत्य तथा नाट्यकलाएँ)
- नलपाक (भोजन, पात्र कलाएँ)
- पाकदर्पण (भोजन, पात्र कलाएँ)
- पाकविज्ञान (भोजन, पात्र कलाएँ)
- पाकार्णव (भोजन, पात्र कलाएँ)
- कुट्टनीमतम् (वस्त्र कलाएँ)
- कादम्बरी (वस्त्र कला तथा शिल्प पर अध्याय हैं)
- समयमात्रिका (वस्त्रकलाएँ)
- यन्त्रकोश (संगीत के यंत्र Overview in Bengali Language)
- चिलपटिकारम् (शिल्पाधिकारम्); दूसरी शताब्दी में रचित तमिल ग्रन्थ जिसमें संगीत यंत्रों पर अध्याय हैं)
- मानसोल्लास (संगीत यन्त्रों से सम्बन्धित कला एवं शिल्प, पाकशास्त्र, वस्त्र, सज्जा आदि)
- वास्तुविद्या (मूर्तिकला, चित्रकला, तथा शिल्प)
- उपवन विनोद (उद्यान, उपवन भवन निर्माण, घर में लगाये जाने वाले पादप आदि से सम्बन्धित शिल्प)
- वास्तुसूत्र (संस्कृत में शिल्पशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रन्थ; ६ अध्याय; छबि रचाना; इसमें बताया गया है कि छबि कलाएँ किस प्रकार हाव-भाव एवं आध्यात्मिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के साधन हैं।)
अन्य भारतीय भाषाओं के शिल्पशास्त्रीय ग्रन्थ
- शिल्प प्रकाश - रामचन्द्र भट्टारक (ओड़िया में , इसमें विस्तृत चित्र तथा शब्दावली भी दी गयी है।)
काव्यशास्त्र से सम्बन्धित ग्रन्थ
संपादित करें- नाट्यशास्त्र -- भरतमुनि
- काव्यप्रकाश -- मम्मट
- टीकाएँ
- अलंकारसर्वस्व -- रुय्यक
- संकेत टीका -- माणिक्यचंद्र सूरि (रचनाकाल ११६० ई.)
- दीपिका -- चंडीदास (१३वीं शती)
- काव्यप्रदीप -- गोविंद ठक्कुर (१४वीं शती का अंतभाग)
- सुधासागर या सुबोधिनी -- भीमसेन दीक्षित (रचनाकाल १७२३ ई.)
- दीपिका -- जयंतभट्ट (रचनाकाल १२९४ ई.)
- काव्यप्रकाशदर्पण -- विश्वनाथ कविराज (१४वीं शती)
- विस्तारिका -- परमानंद चक्रवर्ती (१४वीं शती)
- साहित्यदर्पण -- विश्वनाथ
- काव्यादर्श -- दण्डी
- काव्यमीमांसा -- कविराज राजशेखर (८८०-९२० ई.)
- दशरूपकम् -- धनंजय
- लोचन -- अभिनवगुप्त (ध्वन्यालोक की टीका)
- काव्यप्रकाशसंकेत -- माणिक्यचंद्र (११५९ ई)
- अलंकारसर्वस्व -- राजानक रुय्यक
- चंद्रालोक—जयदेव
- अलंकारशेखर -- केशव मिश्र
रसविद्या के प्रमुख ग्रन्थ
संपादित करेंइस विद्या के संस्कृत में बहुत से ग्रन्थ हैं।
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नीतिशास्त्र के ग्रन्थ
संपादित करें- चाणक्य नीति -- चाणक्य
- नीतिद्विषष्ठिका
- नीति शतक -- भर्तृहरि
- वैराग्य शतक -- भर्तृहरि
- मोहमुद्गर -- आदि शंकराचार्य
- कुट्ट्नीमत -- दामोदर गुप्त
- सुभाषितरत्नसन्दोह -- अमितगति ( ने 994 ई0)
- धर्मपरीक्षा -- अमितगति
- कला विलास -- क्षेमेन्द्र ( 1050 ई0 )
- दर्पदलन
- चारूचर्या
- चतुर्वर्गसग्रह
- सेव्यसेवकोपदेश -- क्षेमेन्द्र
- समयमातृका
- देशोपदेश
- नर्ममाला
- योगशास्त्र -- हेमचन्द्र ( 1088- 1172 ई0)
- मुग्धोपदेश -- जल्हण (1130 ई0 )
- शान्तिशतक -- शिल्हण ( 1205 ई0)
- शृंगार वैराग्यतरङ्गिणी -- सोमप्रभ (1267 ई0)
- सुभाषित नीवी -- वेदान्त देशिक (1268- 1269 ई0)
- दृष्टान्तकलिकाशतम् -- कुसुम देव
- नीति मञ्जरी -- द्याद्विवेद (1492 ई0)
- भामिनी विलास -- पण्डितराज जगन्नाथ ( 1590 - 1665 ई )
- कलि विडम्बन—नीलकण्ठ दीक्षित (१६३०)
- सभारञ्जनशतक—नीलकण्ठ दीक्षित
- शान्ति विलास-- नीलकण्ठ दीक्षित
- वैराग्यशतक—नीलकण्ठ दीक्षित
- उपदेश शतक
- सुभाषित कौस्तुभ -- कटाध्वरी ( 1650 ई0 )
- लोकोक्ति मुक्तावली -- दक्षिणा मूर्ति
संगीत ग्रन्थ
संपादित करेंशब्दकोश
संपादित करें- निघण्टु -- यास्क—वैदिक शब्दकोश
- निरुक्त—यास्क -- निघण्टु पर शब्दार्थ कोश
- अमरकोश ('नामलिंगानुशासन' या 'त्रिकांड') -- अमरसिंह
- विश्वप्रकाश
- मेदिनी
- नानार्थार्णवसंक्षेप
- वर्णदेशना
- षडर्थनिर्णयकोश -- 'राक्षस' कवि
- षड्मुखकोश
- बृहत अमरकोश -- राजमुकुट कृत अमरकोश टीका
- बृहानन्द अमरकोश -- सर्वदानन्द
- बृहत् हारावली -- भानुदीक्षित
- हारवली
- शब्दार्णवसंक्षेप
- कल्पद्रुकोश
- धातुपाठ -- पाणिनि
- गणपाठ -- पाणिनि
- धन्वन्तरिनिघण्टु -- धन्वन्तरि
- अनेकार्थसमुच्चय—शाश्वत—इसी को 'शाश्वतकोश' भी कहते हैं
- अभिधानरत्नमाला -- भट्ठ हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्धी ई०)
- वैजयन्ती कोश -- यादवप्रकाश (समय १०५५ से १३३७ के मध्य)
- पाइयलच्छी नाममाला --
- देशीनाममाला -- हेमचंद्र -- (प्राकृत—अपभ्रंश—कोश)
- अभिधानचिंतामणि या 'अभिधानचिंतामणिनाममाला' -- हेमचंद्र -- प्रसिद्ध पर्यायवाची कोश
- लिंगानुशासन—हेमचंद्र
- यशोविजय—हेमचंद्र -- 'अभिधानचिंतामणि' पर उनकी स्वविरचित टीका
- व्युत्पत्तिरत्नाकर (देवसागकरणि) --हेमचंद्र -- टीकाग्रन्थ
- सारोद्धार' (वल्लभगणि) -- प्रसिद्ध टीका
- अनेकार्थसंग्रह -- हेमचन्द्र
- विश्वप्रकाश - महेश्वर (११११ ई०) -- इसे 'विश्वकोश' भी अधिकतः कहा जाता है।
- शब्दभेदप्रकाश -- महेश्वर—वस्तुतः विश्वप्रकाश का परिशिष्ट है।
- अनेकार्थ -- मंख पंडित (१२ वीं शती ई०)
- नानार्थसंग्रह—अजयपाल (लगभग १२ वीं—१३ वी शती के बीच)
- नाममाला -- धनञ्जय (ई० १२ वी० शताब्दी उत्तरार्ध के आसपास अनुमानित)
- हारावली -- पुरुषोत्तमदेव (समय ११५९ ई० के पूर्व)
- त्रिकांडकोश -- पुरुषोत्तमदेव -- यह अमरसिंह के त्रिकाण्डकोश से अलग है।
- वर्णदेशन—पुरुषोत्तमदेव
- एकाक्षरकोश -- पुरुषोत्तमदेव
- द्विरूपकोश -- पुरुषोत्तमदेव
- वर्णदेशना -- पुरुषोत्तमदेव
- त्रिकांडकोष -- पुरुषोत्तमदेव
- हारावली -- पुरुषोत्तमदेव
- द्विरूपकोश -- श्रीहर्ष (उपरोक्त ग्रन्थ से अलग ग्रन्थ)
- नानार्थार्णव—केशवस्वामी (समय १२ वीं या १३ वीं शताब्दी)
- नानार्थशब्दकोश -- मेदिनि -- (लगभग १४ वी शताब्दी के आसापास) ; यह 'मेदिनिकोष' नाम से अधिक विख्यात है।
- अपवर्गनाममाला -- जिनभद्र सुरि -- इसको 'पंचवर्गपरिहारनाममाला भी कहते है।
- शब्दरत्नप्रदीप -- कल्याणमल्ल (समय लगभग १२९५ ई०)
- शब्दरत्नाकर—महीप (लगभग १३७४ ई०)
- भूरिकप्रयोग -- पद्यगदत्त
- शब्दमाला -- रामेश्वर शर्मा
- नानार्थरत्नमाला -- भास्कर अथवा दंडाधिनाथ (१४ वी शताब्दी के विजयनगर के राजा हरिहरगिरि की राजसभा में थे)
- अभिधानतंत्र -- जटाधर
- अनेकार्थ या नानार्थकमंजरी -- नामांगदसिंह का लघु नानार्थकारी है।
- रूपमंजरीनाममाला -- रूपचंद्र (१६वीं शती)
- शारदीय नाममाला -- हर्षकीर्ति
- शब्दरत्नाकर—वर्मानभट्ट वाण
- नामसंग्रहमाला -- अप्पय दीक्षित
- नामकोश -- सहजकीर्ति (१६२७)
- पंचचत्व प्रकाश -- सहजकीर्ति (१६४४)
- कल्पद्रुमकोश -- केशव -- 'केशवस्वामी' से ये भिन्न हैं।
- नानार्थर्णव—केशवस्वामी
- शब्दरत्नावली -- मथुरेश (समय १७वी शताब्दी)
- कोशकल्पतरु -- विश्वनाथ
- नानार्थपदपीठिका -- सुजन
- शब्दलिंगार्थचंद्रिका -- सुजन
- पर्यायपदमंजरी --
- शब्दार्थमंजूषा --
- पर्यायरत्नमाला -- महेश्वर (संभवतः पर्यायवाची कोश 'विश्वप्रकाश' के निर्माता महेश्वर से भिन्न हैं।
- पर्यांयशब्दरत्नाकर—धनंजय भट्टाचार्य
- विश्विमेदिनी -- सारस्वत भिन्न
- विश्वनिघंटु -- विश्वकवि
- लोकप्रकाश -- क्षेमेन्द्र
- अनेकार्थमाला -- महीप
- पर्यामुक्तावली -- हरिचरणसेन
- पंचनत्वप्रकाश -- वेणीप्रसाद
- राघव खांड़ेकर—केशावतंस
- अनेकार्थध्वनिमंजरी -- महाक्षपणक
- आख्यातचीन्द्रिक -- भट्टमल्ल (क्रियाकोश)
- लिंगानुशासन—हर्ष
- शब्दभेदप्रकाश -- अनिरुद्ध
- शिवकोश (वैद्यक) -- शिवदत्त वैद्य
- गणितार्थ नाममाला --
- नक्षत्रकोश --
- लैकिकन्यायसाहस्री -- भुवनेश (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
- लौकिक न्यायसंग्रह -- (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
- लौकिक न्याय मुक्तावली -- (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
- लौकिकन्यायकोश -- (लौकिक न्याय की सूक्तियाँ)
- शब्दकल्पद्रुम -- राधाकान्त देव (१८८६-९४)
- वाचस्पत्यम् --
कामशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ
संपादित करेंइसकी तीन टीकाएँ प्रसिद्ध हैं-
- (1) जयमंगला प्रणेता का नाम यथार्थत: यशोधर है जिन्होंने HQ (1243-61) के राज्यकाल में इसका निर्माण किया।
- (2) कंदर्पचूडामणि बघेलवंशी राजा रामचंद्र के पुत्र वीरसिंहदेव रचित पद्यबद्ध टीका (रचनाकाल सं. 1633; 1577 ई.)।
- (3) कामसूत्रव्याख्या — भास्कर नरसिंह नामक काशीस्थ विद्वान् द्वारा 1788 ई. में निर्मित टीका। इनमें प्रथम दोनों प्रकाशित और प्रसिद्ध हैं, परंतु अंतिम टीका अभी तक अप्रकाशित है।
वात्स्यायन के पश्चात रचित ग्रन्थ
संपादित करें- (क) नागरसर्वस्व पद्मश्रीज्ञान कृत :- कलामर्मज्ञ ब्राह्मण विद्वान वासुदेव से संप्रेरित होकर बौद्धभिक्षु पद्मश्रीज्ञान इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ३१३ श्लोकों एवं ३८ परिच्छेदों में निबद्ध है। यह ग्रन्थ दामोदर गुप्त के "कुट्टनीमत" का निर्देश करता है और "नाटकलक्षणरत्नकोश" एवं "शार्ङ्गधरपद्धति" में स्वयंनिर्दिष्ट है। इसलिए इनका समय १०वीं शताब्दी का अंत में स्वीकृत है।
- (ख) अंनंगरंग कल्याणमल्ल कृत:- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध कल्याणमल्ल ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ४२० श्लोकों एवं १० स्थलरूप अध्यायों में निबद्ध है।
- (ग) रतिरहस्य कोक्कोक कृत :- यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा कोक्कोक को कश्मीरी स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्ररुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर पारिभद्र के पौत्र तथा तेजोक के पुत्र कोक्कोक द्वारा रचित यह ग्रन्थ ५५५ श्लोकों एवं १५ परिच्छेदों में निबद्ध है। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोक्कोक ७वीं से १०वीं शताब्दी के मध्य हुए थे। यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण कामशास्त्र के पर्याय के रूप में "कोकशास्त्र" नाम प्रख्यात हो गया।
- (घ) पंचसायक कविशेखर ज्योतिरीश्वर कृत :- मिथिलानरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर ज्योतिरीश्वर ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार ग्रहणकर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। ३९६ श्लोकों एवं ७ सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। आचार्य ज्योतिरीश्वर का समय चतुर्दश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
- (ड) रतिमंजरी जयदेव कृत :- अपने लघुकाय रूप में निर्मित यह ग्रंथ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। रतिमंजरीकार जयदेव, गीतगोविन्दकार जयदेव से पूर्णतः भिन्न हैं। यह ग्रन्थ डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी द्वारा हिन्दी भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
- (च) स्मरदीपिका मीननाथ कृत :- २१६ श्लोकों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
- (छ) रतिकल्लोलिनी सामराज दीक्षित कृत :- दाक्षिणात्य बिन्दुपुरन्दरकुलीन ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न एवं बुन्देलखण्डनरेश श्रीमदानन्दराय के सभापण्डित आचार्य सामराज दीक्षित द्वारा १९३ श्लोकों में निबद्ध इस ग्रन्थ का प्रणयन संवत १७३८ अर्थात १६८१ ई० में हुआ था। यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
- (ज) पौरूरवसमनसिजसूत्र राजर्षि पुरुरवा कृत :-यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
- (झ) कादम्बरस्वीकरणसूत्र राजर्षि पुरुरवा कृत :-यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
- (ट) शृंगारदीपिका या शृंगाररसप्रबन्धदीपिका हरिहर कृत :- २९४ श्लोकों एवं ४ परिच्छेदों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
- (ठ) रतिरत्नदीपिका प्रौढदेवराय कृत :- विजयनगर के महाराजा श्री इम्मादी प्रौढदेवराय (1422-48 ई.) प्रणीत ४७६ श्लोकों एवं ७ अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है। श्री इम्मादी प्रौढदेवराय का समय पंचदश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
- (ड) केलिकुतूहलम् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित कृत :- आधुनिक विद्वान् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित द्वारा ९४८ श्लोकों एवं १६ तरंगरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित कृष्णदास अकादमी, वाराणसी से प्रकाशित है।
अन्य
संपादित करेंइन बहुश: प्रकाशित ग्रंथों के अतिरिक्त कामशास्त्र की अनेक अप्रकाशित रचनाएँ उपलब्ध हैं -
- तंजोर के राजा शाहजी (1664-1710) की शृंगारमञ्जरी;
- नित्यानन्दनाथ प्रणीत कामकौतुकम्,
- रतिनाथ चक्रवर्तिन् प्रणीत कामकौमुदी,
- जनार्दनव्यास प्रणीत कामप्रबोध,
- केशव प्रणीत कामप्राभ्ऋत,
- कुम्भकर्णमहीन्द्र (राणा कुम्भा) प्रणीत कामराजरतिसार,
- वरदार्य प्रणीत कामानन्द,
- बुक्क शर्मा प्रणीत कामिनीकलाकोलाहल,
- सबलसिंह प्रणीत कामोल्लास,
- अनन्त की कामसमूह,
- माधवसिंहदेव प्रणीत कामोद्दीपनकौमुदी,
- विद्याधर प्रणीत केलिरहस्य,
- कामराज प्रणीत मदनोदयसारसंग्रह,
- दुर्लभकवि प्रणीत मोहनामृत,
- कृष्णदासविप्र प्रणीत योनिमञ्जरी,
- हरिहरचन्द्रसूनु प्रणीत रतिदर्पण,
- माधवदेवनरेन्द्र प्रणीत रतिसार,
- आचार्य जगद्धर प्रणीत रसिकसर्वस्व
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Acharya P.K. (1946), An Encyclopedia of Hindu Architecture Archived 2016-04-10 at the वेबैक मशीन, Oxford University Press
- ↑ Bibliography of Vastu Shastra Literature, 1834-2009 Archived 2016-03-03 at the वेबैक मशीन CCA